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शनिवार, 6 फ़रवरी 2016

अभिनंदन


सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष


बर्फ़ की सफ़ेद चादर पर जगह -जगह
ख़ून के धब्बे!
उसी लहू के कुछ छींटे,
कुछ लिख गए हैं इन पर भी!
मोती-जड़ी नीलम - घाटी में उगे थे कभी,
बारूदी धुएँ से झुलसे,
उड़ रहे हैं सब तरफ़
उन्ही चिनारों के पते
~प्रतिभा सक्सेना~

काव्य मन्दिर


स्वामीनारायण अक्षरधाम,समूचा देख मन्त्र-मुग्ध थी |
शिल्प-कला कौशल की, यह कृति अनुपम अदभुत थी ||

आधुनिक युग को प्राचीन युग से, प्रभावित यहाँ देखा |
आयें यहाँ तो ज्ञानचक्षु भी, खुल जायें अनेकों का ||


जिन्दादिली


शत्रुओं की घेराबंदी में जब पल-
पल मौत मेरी ओर बढ़
रही थी, मैंने
उसी समय निश्चय कर लिया था कि यदि मैं
जीवित बच गया तो अपने जीवन के
हर पल को जिंदादिली और
खुशी से जिऊंगा।


हमिंग बर्ड


एक चहचहाहट सुनी
एक पल को लगा भ्रम हो मेरा
बाहर जाकर देखा
एक विलुप्तप्राय प्रजाति की नन्ही सी चिड़िया 'हमिंगबर्ड'
मेरे आँगन में फुदकती हुई कलरव करती नज़र आई



कितनी बार


जाने कितने बार मुझे इस मृत्यु ने आलंगन किया
जाने  कितने बार मैंने इस मृत्यु का वरन किया
अब थक गया हूँ मैं प्रभु इस भवसागर की धार में
अब बस करो हे  प्रभु इस भवसागर की जंजाल से



अभिनंदन


बीत गई रात
रात बहुत गहरी थी
अंधेरा था घना
इतना घना
बहुत बार कर गया
मन अनमना



प्रेमगीत

शीतल थाप पवन की लेकर
महकती भाप उपवन की लेकर
हम तेरी बातो में खो जाते हैं ।
और बस मंद मंद मुस्काते हैं ।
ओस में भीगा विपुल पात
उजियारे की ये दिव्य रात
सिरहन सी कर जाते हैं ।



कल्पवृक्ष


कुछ ऐसे भी किस्से हैं
लौट आते हैं जिनमें वे
जो गए थे नई दुनिया में,
आखिर बदली सम्भावनाओं का
असर गहरा पड़ता है
दूर तक फैलता है
भयावह लगता है।


फिर मिलेंगे .... तब तक के लिए

आखरी सलाम


विभा रानी श्रीवास्तव


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