आज कल लगता है कि सोमवार बहुत जल्दी आ जाता है ..... न जाने बाकी छः दिन कैसे इतनी जल्दी बीत जाते हैं ... और मैं सोचती ही रह जाती हूँ कि इस बार क्या दिया जाये पाँच लिंक के आनन्द में अपने पाठकों को ..... और अचानक याद आता है कि अरे कल तो सोमवार है .... अब बताइए भला ऐसे कोई विशेष चर्चा लग सकती है ?... मैं अपने प्रिय पाठकों से करबद्ध क्षमा प्रार्थना कर रही हूँ कि अब तो ये सठियाना भी ख़त्म होने वाला है तो ज़रा मेरी भूलने की आदत को आप बर्दाश्त कर लीजियेगा . पता नहीं सत्तर का होने पर क्या होगा ?
खैर ये तो भूल चूक होती रहेगी शायद ...... चलते हैं आज के पाँच लिंकों पर .
प्रारंभ करते हैं आक्रोश से ---- हमारी विभा जी यूँ तो बहुत शांत स्वाभाव की हैं ..... लेकिन कभी कभी सही बात पर आक्रोश तो बनता है ......
तालाब पाटकर शजर काटकर
अजायबघर बनाने से मन नहीं भरा।
स्मार्टसिटी बनाने के जुनून में
ओवरब्रिज का जाल बिछा देने का चस्का चढ़ा।
अटल पथ पर बने फुट ब्रिज पर सेल्फी ले आऊँ |
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अभी आक्रोश को झेल ही रहे थे कि संदीप कुमार शर्मा जी ले कर आ गए विशाल नदी ...... और खुद कुछ नहीं कह रहे बस इतना ही कि ----- नदी सवाल करती है ...... अब भला ये क्या बात हुई ? आप ही पूछ लो न .......
नदी
कह रही है
प्राण हैं
उसमें
जो तुम्हारे
प्राण की भांति ही
जरूरी हैं।
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लीजिये ........ नदी ने सवाल क्या किया कि झरोखा पर निवेदिता जी न जाने किसकी बात कर रहीं कि वो भला बन्दा कह रहा कि ...... मैं चाहता हूँ .....
जहाँ तक चाहत की बात है तो आज शायद ये बात सबको ही समझ आ गयी होगी कि हमें अपने पर्यावरण को बचाना है ..... जीव , जंगल , मिटटी , पानी सबसे जुड़ना है ..... केवल फेसबुक पर या ब्लॉग पर रचनाएँ लिख देने मात्र से पर्यावरण का संरक्षण नहीं होने वाला ...... फिर भी प्रयास के लिए बार बार इन सभी बातों को याद कराते रहना भी ज़रूरी है ..... इसी सन्दर्भ में जेन्नी शबनम जी कुछ हाइकु के माध्यम से चेतना जगाने की कोशिश कर रही हैं .....
मुझे याद है जब वरुण क्लास वन में आया था तो उसे पहली बार स्कूल ड्रेस के साथ मुझे भी गले में बाँधना अनिवार्य हो गया था ! वरुण कितना खुश था ! सुबह जल्दी जल्दी तैयार होकर मुझे उठा कर पापा के पास पहुँच जाता,
“ ये टाई आप बाँध दीजिये ना पापा ! मम्मी को अच्छी नॉट बाँधनी नहीं आती |
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ये टाई की बात पर यही कहना है कि जिसका काम उसी को साजे ...... और करे तो डंका बाजे .......
चलिए जी .... बज गया डंका और हम भी समापन करते हैं आज की चर्चा का .....
आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतज़ार रहेगा .
नमस्कार
संगीता स्वरुप .
शुभ प्रभात..
जवाब देंहटाएंविविध रचनाओं से सुसज्जित अंक
अचानक नींद खुली तो मैं आ गई..
तो देखी एक दीदी चमक रही है
दो दीदियां चमका रही है..
एक दीदी सरकार को तो
दूसरी दीदी मैं को हम बनवाने
के चक्कर में है...
फिर से सोऊँगी..
सभी को सादर नमन..
😄😄😄 अब तो आँख खोल कर देख लिया न ?
हटाएंशुक्रिया ।
वन्दन संग हार्दिक आभार आपका
जवाब देंहटाएंसादर । 🙏🙏🙏
हटाएंसगीता जी बहुत आभार आपका..मेरी रचना को सम्मान देने के लिए। आभारी हूं...इस मंच का। सभी को बधाई।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया संदीप जी । आप अलख जगाई हुए हैं । हमारे तो ये छोटा सा प्रयास है कि आपकी बात ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचा सकें ।
हटाएंसभी को सुप्रभात 🙏🙏। !
जवाब देंहटाएंसार्थक, विचारणीय अंक प्रिय दीदी,
नदी ही क्यों, ये समस्त धरा, पहाड़, बूढ़े जवान वृक्ष, दूषित होते हवा और जल सब प्रश्न कर रहे हैं , इस वीवैभव का क्या किया जाए, जो सबका अस्तित्व मिटाने पर उतारू है। पन्ना का जंगल जिसमें दो लाख़ पुराने पेड़ हैं वो प्रश्न पूछ रहें हैं कि जिस भूमि से पैदा होकर उन्होंने हज़रों लोगों का पेट भरा, आजीविका दी, फल फूल प्रदान किया हवा को शुद्ध कर इन्सान की सांसों का मोल बढ़ाया , आज उसकी कीमत उसी भूमि में दबे कुछ करोड़ के हीरों से अधिक कैसे हो गई। कोई जंगल के योगदान का हिसाब क्यों नहीं लगाता? जंगल सदियों से जो दे रहे हैं उनका मूल्यांकन किया जाए। हीरों से पेट नहीं भरता! मानव मन को नाजाने दुलारते , पोषते इन वृक्षों का कोई सानी कहां!! संदीप जी जैसे अलख जगाते चिंतकों की बात सुननी होगी। जन आंदोलनों का हिस्सा बनना होगा तभी पर्यावरण बच सकता है। नहीं तो निरंकुश सरकारें पत्थर सरीखे हीरो के बदले अनमोल थाती की कुर्बानी दे देंगी। सार्थक अंक । एक बार फिर आग्रह संदीप जी के दोनों ब्लॉग पढ़ें। कुछ दिनों से मैं भी प्रतिक्रिया नहीं दे पा रही पर जल्द ही नियमित होगा सब। अभी इतना ही बाकि समय मिलते ही लिखती हूं। सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🙏
मैं आपकी इस प्रतिक्रिया पर निशब्द हूं...मैं आपका आभार इसलिए व्यक्त करना चाहता हूं कि आपने मुझे और लेखनी और मेरे उददेश्य को संबल प्रदान किया है। मैं चाहता हूं इस दौर में अधिक से अधिक प्रकृति लिखी जाए, उसे महसूस किया जाए और उसके सुधार के लिए कृतसंकल्पित होकर आगे आया जाए...। आभार आपका रेणु जी...ये शब्द मेरे जीवन के अच्छे शब्दों में समाहित हैं क्योंकि इन्होंने मुझे भरोसा दिलवाया है कि हम बदलाव कर सकते हैं, हम प्रयास करें...हम जैसे हमारे साथ स्वतः ही आते हैं...दोबारा आभार....और आभार पांच लिंकों के आनंद की पूरी टीम का...जिन्होंने एक सार्थक मंच तैयार किया है जिस पर हम अपने मन की और बदलावों की बयार को महसूस कर सकते हैं।
हटाएंप्रिय रेणु ,
हटाएंअंक पसंद करने का शुक्रिया ।
सवाल लिए तो बहुत लंबी कतार लगी है । बिना सोचे समझे जो प्रकृति से खिलवाड़ हुआ है तो भुगतना तो पड़ेगा सबको ।।यदि विकास के लिए वृक्षों को काटना भी था तब भी कहीं संरक्षण भी होना चाहिए था । संदीप जी के दोनो ब्लॉग देखती हूँ। बहुत प्रभावित हूँ ।
पुनः शुक्रिया
वृक्ष हमें देते है जीवन , ये जीवन सफल बनाओ ।
जवाब देंहटाएंतीरथ व्रत और यज्ञ के पहले ,एक एक वृक्ष लगाओ ।।
वृक्ष धरा के भूषण है , ये करते दूर प्रदूषण ।
वसुधा का श्रंगार करो तुम ,पहना पादप भूषण ।।
देते प्राण वायु जो तुम को , दूषित को हर लेते ।
अर्थ धर्म अरु काम मोक्ष , ये चार पदार्थ देते ।।
"राजेश तिवारी Makkhn जी" की लिखी ये स्वर्णिम पंक्तियाँ "पर्यावरण संरक्षण" के लिए बहुत ही सुंदर संदेश दे रही है।
पूजा-पाठ , व्रत-तीर्थ,यज्ञ-अनुष्ठान सब निरर्थक है यदि आप एक वृक्ष नहीं लगा रहे है तो,नहीं लगा पा रहे है तो संरक्षण ही कर ले।
सिर्फ किताबी बातें करने से इस समस्या का समाधान नहीं होगा।रेणु जी ने सही कहा "जन आंदोलनों का हिस्सा बनना होगा"
संदीप जी जैसे लोग जो इसके लिए सच्चे दिल से प्रयासरत है उनका साथ देना होगा और नहीं तो इनका उत्साहवर्धन ही करना होगा।
अपने घरों से ही छोटे-गमलों के माध्यम से ही सही इसकी शुरुआत करनी होगी।
आदरणीय संगीता दी,बहुत ही सुंदर रचनाओं का संग्रह किया है अपने,सभी को हार्दिक शुभकामनायें एवं नमन
प्रिय कामिनी
हटाएंराजेश तिवारी जी की बहुत प्रेरणादायक पंक्तियाँ पढ़वाने के लिए आभार ।
वृक्षों के संरक्षण के लिए यही जज़्बा ज़रूरी है ।
शुक्रिया
बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अनुराधा जी ।
हटाएंअरे वाह ! सुन्दर रचनाओं और सुन्दर प्रतिक्रियाओं से ससुसज्जित आज का अंक ! मेरी मानवेतर बालकथा को स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार संगीता जी ! सप्रेम वन्दे !
जवाब देंहटाएंसाधना जी ,
हटाएंअंक पसंद करने का शुक्रिया । आशा है अब आप पूर्ण रूप से स्वस्थ होंगी । फिर भी ख्याल रखियेगा ।
पठनीय लिंक्स हैं। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया शिखा ।
हटाएंसुन्दर संकलन !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अनुपमा ।
हटाएंप्रणाम दी,
जवाब देंहटाएंआपने समय पर प्रस्तुति लगा दी यही महत्वपूर्ण है और आपकी कर्मठता का परिचायक भी।
समयानुसार आपकी तबियत और मनःस्थिति के कारण यह भूल सामान्य है क्षमा जैसी कोई बात नहीं है दी।
पाठकों ने तो नियत समय पर आपके अलग अंदाज़ में ही अंक का आनंद लिया है।
विभा दी के मन का आक्रोश,संदीप सर के द्वारा नदी का मानवीयकरण कर महत्वपूर्ण संदेश, निवेदिता मैम की रिश्तों की समझ पर आधारित लघुकथा, जैनी शबनम मैम के बेहतरीन हायकु और साधना दी की गहन संदेशात्मक टाई की आत्मकथा। सारी रचनाएँ बेहतरीन लगी।
कम समय में सराहनीय संकलन तैयार हुआ है।
सप्रेम
सादर।
और दी आपके द्वारा हर रचना पर लिखे आपके विचार विशेष रूप से पसंद आते हैं।
हटाएंप्रिय श्वेता ,
हटाएंआज का अंक तो तुमको ही समर्पित । तुम्हारे कारण ही संभव हो पाया । मुझे तो लग रहा था कि सोमवार आने में दो दिन का वक़्त है । खैर .... अब इसके लिए कोई शुक्रिया नहीं कह रही ।
सभी रचनाएँ पढ़ कर तुमने प्रतिक्रिया दी , मन तृप्त हुआ । इसके लिए शुक्रिया 😄😄😄😄
तारीफ का अंदाज़े बयाँ भी पसंद आया । ज़हेनसीब ।
बहुत ही सुंदर,सारगर्भित विषयों से सजा अंक, आदरणीय दीदी आपके श्रमसाध्य कार्य तथा सुंदर प्रस्तुति को हार्दिक नमन करती हूँ,शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह।
जवाब देंहटाएंप्रिय दीदी, सुन्दर सभी रचनाएं रात पढ़ी। टाई की वेदना , पर्यावरण पर हाइकु तो घर से काम करनी से घरों में उपजे असंतुलन को उकेरती कथा सब शानदार।। आक्रोश
जवाब देंहटाएंके प्रश्न जायज़ है।। कौन है जो पर्यावरण दिवस की बधाई के अधिकारी हैं। आपके भावपूर्ण प्रस्तुतिकरण के लिए मिर्वियाद रूप से आप सराहना की पात्र हैं। आपकों बधाई और शुभकामनाएं और 🙏🙏
रोचक प्रस्तुति की लिंक पढ़ने को विवश कर दे.
जवाब देंहटाएंसभी लिंक्स रोचक व पठनीय👌
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