सादर अभिवादन
बीतेगा
रुक तो सकता नहीं
आसान नहीं रुक जाना
....
आज की रचनाएँ..
बुल्ले से अच्छी अँगीठी है,
जिस पर रोटी भी पकती है,
करी सलाह फ़कीरों ने मिल जब
बाँटे टुकड़े छोटे-छोटे तब।
तुम मेरे हो
तुम मेरे हो
ताउम्र मेरे ही रहोगे
मेरी आखिरी सांस तक
तुम मेरे हो
ताउम्र मेरे ही रहोगे
आसां नहीं
मन की किताबों पर, कोई लिख जाए कैसे!
मौन किस्सों का हिस्सा, बन जाए कैसे!
कपोल-कल्पित, सारगर्भित सा मेरा तराना,
आसां नहीं, किसी और का हो जाना!
रतजगे वो इश्क़ के भी खूब थे ।
दिलजलों के अनकहे भी खूब थे।।
ख़्वाब पलकों पर सजाते जो रहे,
इश्क़ तेरे फलसफे भी खूब थे ।
टलते-टलते ..
सालो पहले अंदाजा हो जाता है
समझदार
अपनी
आँखों पर दूरबीन
नाक पर कपड़ा
और
कान में रुई
अंदर तक
घुसाता है
उसका
दिखाना
दूर
आसमान में
एक
चमकता तारा
गजब का माहौल
बनाता है
तालियों की
गड़गड़ाहट में
सारा आसमान
गुंजायमान
हो जाता है
‘उलूक’
आदतन अपनी
अपने
अगल बगल
के
दियों से चोरे गये
तेल के
निशानों
के पीछे पीछे
बस
सादर..
आसां नही, किसी के किस्सों में समा जाना।।।। मेरी रचना के अंश को शीर्ष रूप देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात।।।।।।
सस्नेहाशीष असीम शुभकामनाओं के संग छोटी बहना
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्स चयन
आभार यशोदा जी।
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रस्तुति दी।
जवाब देंहटाएंसादर।
अच्छी रचनाओं का चयन..
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर..
सराहनीय प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशानदार लिंक शानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत आभार आदरणीया