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सोमवार, 21 दिसंबर 2020

1984 ..आसां नही, किसी के किस्सों में समा जाना

 सादर अभिवादन

धीरे -धीरे बीत रहा है साल
बीतेगा
रुक तो सकता नहीं
आसान नहीं रुक जाना
....
आज की रचनाएँ..



बुल्ले से अच्छी अँगीठी है,
जिस पर रोटी भी पकती है,
करी सलाह फ़कीरों ने मिल जब
बाँटे टुकड़े छोटे-छोटे तब।


तुम मेरे हो


तुम मेरे हो
ताउम्र मेरे ही रहोगे
मेरी आखिरी सांस तक
तुम मेरे हो
ताउम्र मेरे ही रहोगे


आसां नहीं



मन की किताबों पर, कोई लिख जाए कैसे!
मौन किस्सों का हिस्सा, बन जाए कैसे!
कपोल-कल्पित, सारगर्भित सा मेरा तराना,
आसां नहीं, किसी और का हो जाना!




रतजगे वो इश्क़ के भी खूब थे ।
दिलजलों के अनकहे भी खूब थे।।

ख़्वाब पलकों पर सजाते जो रहे,
इश्क़ तेरे फलसफे भी खूब थे ।

टलते-टलते ..
सालो पहले अंदाजा हो जाता है



समझदार
अपनी
आँखों पर दूरबीन
नाक पर कपड़ा
और
कान में रुई
अंदर तक
घुसाता है

उसका
दिखाना
दूर
आसमान में
एक
चमकता तारा
गजब का माहौल
बनाता है

तालियों की
गड़गड़ाहट में
सारा आसमान
गुंजायमान
हो जाता है

‘उलूक’
आदतन अपनी

अपने
अगल बगल
के
दियों से चोरे गये
तेल के
निशानों
के पीछे पीछे 
....
बस
सादर..

10 टिप्‍पणियां:

  1. आसां नही, किसी के किस्सों में समा जाना।।।। मेरी रचना के अंश को शीर्ष रूप देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
    शुभ प्रभात।।।।।।

    जवाब देंहटाएं
  2. सस्नेहाशीष असीम शुभकामनाओं के संग छोटी बहना
    उम्दा लिंक्स चयन

    जवाब देंहटाएं
  3. सराहनीय प्रस्तुति दी।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  4. अच्छी रचनाओं का चयन..
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  5. शानदार लिंक शानदार प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुंदर प्रस्तुति
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत आभार आदरणीया

    जवाब देंहटाएं

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