|||सादर नमस्कार|||
कोयल की मीठी तान और पुरवाई की गुनगुनाहट के साथ क्षितिज पर लाल,पीले,सुनहरे छींटों के साथ सूरज का उगना, गरम थपेड़ों से परेशान दिन का अलसाना, धूप के कर्फ्यू में दोपहरीभर सोना, शाम को छतों पर चाँद का बादलों के साथ लुका-छिपी निहारना,चमकीले फीके तारों को गिनना, बेली और रातरानी की महक को फ़िज़ाओं में महसूस करना,विभिन्न प्रकार के आम की भीनी खुशबू, ठंडी लस्सी,कुल्फी,आइस्क्रीम,नींबू पानी की लज़्जत, आँधियों और हवाओं के साथ उड़ते बादलों के साथ बारिश का इंतज़ार करना,
कौन कहता है गर्मियाँ खूबसूरत नहीं होती?
पर सच्चाई तो ये है न......
पर्यावरण के असंतुलन से बिगड़ता तापमान,तेजी से सूखते पीने के पानी के सोते, बीमारियों का बढ़ता प्रकोप, असहनीय,जर्जर लाइट की अव्यस्था से छटपटाते ए.सी,फ्रिज, कूलर और पंखें के उपभोक्ता। पसीने से तरबतर, बार-बार सूखे होंठों पर जीभ फेरते लोग, सच ये गर्मियाँ
कितनी बुरी होती है न?
अब तो गर्मी हर मौसम के पृष्ठभूमि में होने लगी है। ठंड कम हो तो गरमी,बारिश ठीक से न हो तो गरमी। मतलब स्थायी ऋतु गरमी है
बाकी मौसम का आना-जाना लगा हुआ है।
आपने सोचा नहीं था न?....
पर इस असंतुलन के लिए हम ही जिम्मेदार है,
सुविधायुक्त जीवन जीने की लालसा में।
चलिये अब चलते है आपके रचनात्मकता के संसार में
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आदरणीय कुलदीप जी
पिड़ित या निरजीव शव को
ये हमारे मजहब का था,
मारने वाले दूसरे मजहब के......
निरभया का नाम छुपाया गया,
गुड़िया का नाम भी दबाया गया,
देदेते आसिफा को भी कोई और नाम।
वो केवल मासूम बेटी थी,
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आदरणीय संजय भास्कर जी
मैं जब भी निराश हो जाता हूँ
टूटकर कहीं बैठ जाता हूँ
दिल यूँ भर आता है
पलकों से बहने लगे समंदर
जब सारी कोशिशे नाकाम हो
उम्मीद दम तोड़ देती है
तन्हाई के उस मंज़र में
माँ तेरी बहुत याद आती है !
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आदरणीय अमित निश्छल जी
मैं उस धार में घुलता हूँ, जिस धार में तुम मुस्काती हो
वो धार बैठ, कागज़ पर अब, चली है पतवारें खेते
पतवार तूलिका मेरी, तुम-हम मिलें अमर उजाला हो
मैं एक पुतला हूँ मिट्टी का, तुम निर्मल निर्झर धारा हो।
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आदरणीया आँचल पाण्डेय जी
और ना आए कभी वो काला कल
जब पेड़ों की ना कोई छाँव होगी
बगिया में भौंरो की ना गूँज होगी
कोयल की ना कोई कूक होगी
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आदरणीया अभिलाषा अभि
युवा जीवन की परिणति....
बादलों के सुरमई माथे पर
भोर की नारंगी किरणें
अल्हड़ सा अंगड़ाई लेता
बाहें पसारे दिन
चिरयुवा सा दमकता
एकाएक विलीन हो जाता है
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आदरणीय रवींद्र जी
कभी ढलकता है
कजरारी आँख से
उदास काजल,
कहीं रुख़ से
सरक जाता है
भीगा आँचल।
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आदरणीय दिलबाग सिंह विर्क जी
सकूं की तलाश में मुसल्सल बेचैन होता गया मैं
मुक़द्दर से लड़े जो, क्या कोई मुझ-सा सरफिरा होगा।
तुम्हारे जश्न में कैसे शामिल होंगे वो परिंदे
इन बारिशों में जिनका आशियाना बिखरा होगा
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चलते-चलते उलूक के पन्नों से
आदरणीय सुशील सर
अपने
पागलपन की
खुद कोई
पगलाई हुई सी
एक पागल
मोहर बना
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आप सभी की बहूमूल्य प्रतिक्रिया उत्साह बढ़ाती है।
आप सभी की सुझावों की प्रतीक्षा में
शुभ प्रभात..
जवाब देंहटाएंवाह....
बढ़िया ग्रीष्म चिन्तन
अच्छी रचनाएँ पढ़वाई आपने
सादर
आदरणीय श्वेता जी, इस गर्मी में भी आप की प्रस्तुति दिल में ठंढक उतारती हुई महसूस हुई। सभी रचनाएं कमाल की हैं। आप प्रकृति के बीच लौट आयी हैं, सच आप की नज़र से प्रकृति का दीदार करने का अलग ही मज़ा है, जो आप देख लेती हैं वो कभी कभी हमें दिखाई ही नहीं देता। बेहतरीन भूमिका के साथ उत्कृष्ट रचनाओं का संकलन।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई
सादर
बहुत सही। हमेशा की तरह श्वेता जी अपनी शाश्वत सारस्वत शान शौकत में साहित्य की सुरभि से सराबोर करती
हटाएंसुन्दर हलचल। आभार 'उलूक'की कब्र के पेटेन्ट को आज की प्रस्तुति में स्थान देने के लिये श्वेता जी।
जवाब देंहटाएंवाह!!श्वेता , बहुत ही खूबसूरत हलचल प्रस्तुति । सही कहा आपने अब तो पर्यावरण के असंतुलन के चलते ,गर्मियों मेंं भी सर्दी -जुखाम से पीडित रहना पडता है😊
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ लाजवाब ।
अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसस्नेहाशीष व असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक बधाई हर पल
जवाब देंहटाएंआदरणीय दीदी
हटाएंसादर नमन
आपकी उपस्थिति
से आल्हदित हूँ
चोट ग्रस्त होने के बावजूद
आप सक्रिय हैं...ईश्वर हमारी उमर भी आपको दे
सादर
वाहह श्वेता जी, परेशान करनेवाली गर्मी भी आज खुशनुमा बन गई.. बहुत सुंंदर प्रस्तुति के साथ अच्छी लिंकों का चयन।सभी चयनित रचनाकारों को बधाई।
जवाब देंहटाएंआभार।
बहुत ही सुंदर.....
जवाब देंहटाएंआभार आप का......
कड़वा है पर सच है
जवाब देंहटाएंवाकई हम ही ज़िम्मेदार हैं पर्यावरण के हर पल बिगड़ते हालात के
बेहद उम्दा प्रस्तुति श्वेता दीदी जी
हमारी रचना को भी शामिल करने के लिए आभार
शुभ दिवस सादर नमन 🙇🙇
बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति गर्मी भी खुशनुमा बन गई...सभी चयनित रचनाकारों को बधाई।
जवाब देंहटाएंक्या बात प्रिय श्वेता जी ...काव्य यूं स्वयं छाँव सा सुख देता है पर आपकी ऋतु चर्चा शीतलता का अप्रेल माह की गर्मी मैं शीतलता का पर्याय बन गई ! नमन 🙏साधुवाद
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा रचनाएँ पढ़वाई आपने श्वेता जी हमे शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार !!
जवाब देंहटाएंआभार श्वेता जी,
जवाब देंहटाएंऐसा लगा जैसे गर्मी का कर्फ्यू कुछ देर विराम पर है। भीनी एवम मोहक प्रस्तुति।
मुझे स्थान देने हेतु पुनः आभार।
कुदरत के हर रंग मे एक अदृश्य लाभ है।
जवाब देंहटाएंजो दिखते हुवे भी नही दिखता हम बस कमियों को कोसते हैं।
पर सोचो आठ महीने आम लीची का कितने बेसब्री से इंतजार करते हैं😁
श्वेता हर बार की तरह मौसम के नैसर्गिक गुणों का क्या शानदार वर्णन किया आपने काबिले तारीफ। और पर्यावरण हम स्वार्थी इंसानों की देन है पर भुगत पशु पाखी तक रहे हैं। खैर..
सभी रचनाकारों को बधाई ।
ठंडक भरी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंप्रस्तावाना में मौसम के बदलते तेवर का काव्यात्मक विश्लेषन. सुन्दर प्रस्तुति के बधाई आदरणीया श्वेता जी. सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिये आभार.
धूप के कर्फ्यू में दोपहरी भर सोना, चाँद का बादलों संग लुकाछिपी निहारना, आदि ......
जवाब देंहटाएंइस मौसम की बहुत ही लाजवाब भूमिका के साथ उम्दा लिंक संकलन....
सच में श्वेता जी आपके उपमान बहुत खूबसूरत और हटकर होते है....