भारत स्वतंत्र हो गया हर्ष का विषय ! लोकतंत्र प्रस्तुत है अपार सफलता का द्योत्तक ! स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार एक संकल्प ! परन्तु क्या न्याय सभी जन के लिए बराबर हुआ नहीं ना ,
तो फिर क्यों हम स्वतंत्रता का राग अलापते रहे सदियों से। हमारे वे वीर क्रांतिकारी किसके लिए सहर्ष फाँसी पर झूल गए ?
क्या इस लिए कि एक निरंकुश शासक से सत्ता दूसरे अपने ही जैसा आचरण करने वाले जो अपने आप को भारतीय कहता है उसके हाथों में चली जाए ? हम पहले भी गुलाम थे आज भी हैं इसमें कोई संदेह नहीं !
क़ानून पहले अंग्रेज़ बनाते थे कुछ इस तरह कि उसकी दिशा उनके पक्ष में सकारात्मक किन्तु भारतीयों के नकारात्मक।
क्या आज कुछ भी बदला है नहीं ना ! वैसे भी बदलना कौन चाहेगा मैं ,
जो एक आधी भरी स्याही से दुनिया बदलने चला हूँ अथवा
वे जो बदलना ही नहीं चाहते।
कोई कहता है बापू को इस लिए मार दिया गया क्योंकि वे किसी अतिविशिष्ठ पार्टी को भंग करना चाहते थे जो आज़ादी की लड़ाई लड़ते -लड़ते स्वयं आज़ादी का महत्व खो चुकी थी। कुछ का कहना है किसी सिरफिरे ने बापू की हत्या कर दी। मेरा प्रश्न है इतिहास को याद करना और उससे शिक्षा लेते हुए भूत में किए गए गलत कार्यों की पुनरावृति न करना यहाँ तक तो ठीक किन्तु उस इतिहास को बार -बार लोगों को स्मरण कराना केवल अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए कहाँ तक ज़ायज़ है !
आज हम पंगु हो गए हैं।
हमारी सोच कहाँ जाये ?
क्या करे ?
किस पार्टी पर विश्वास करे ?
और करे भी तो क्यूँ ?
कौन सरकार ईमानदार है ?
कौन बेईमान ?
सोच -सोच कर नसें फटी जा रहीं हैं।
क्यों सही कहा ना क्योंकि हम कुछ नहीं कर सकते !
मुझे मरने से बहुत डर लगता है ,मैं जीना चाहता हूँ
उन भेड़ों की तरह
रेंगना चाहता हूँ !
उन कीड़ों की तरह
दौड़ना चाहता हूँ !
घोड़ों की तरह
परन्तु
दूसरों के इशारों पर
और दौड़ भी रहा हूँ, बड़े शान से। और क्यों न दौड़ू ?
मेरे पैरों में मेरे माननीय मालिक ने सोने के नाल जो ठुकवाए हैं।
बड़े ही दयालु हैं मेरे मालिक जिन्होंने मेरी ही सम्पति पर देखभाल का हवाला देकर कब्ज़ा जमा रखा है। आज मैं निश्चिंत होकर खुले आसमान में दौड़ रहा हूँ और उनके दिए हुए रोटी को खाकर गुजारा कर रहा हूँ। अलग बात है वो रोटी मेरे ही घर के आटे की बनी थी। चलो अच्छा हुआ खाना बनाने के उस ताम -झाम से छुटकारा मिला।
ठीक है बस करो अब जाने दो !
कल सुबह जल्दी उठना है
मालिक को लेकर दौड़ना भी तो है। और वैसे भी वर्ष में लगभग
तीन से छः बार नौकरी है उनकी।
ओ हो कितना काम करते हैं मालिक !
हमारे लिए कानून बनाना आसान तो नहीं और वो भी वातानुकूलित कक्ष में आराम कुर्सी पर बैठ कर।
मैं तो नहीं कर सकता !
मुझे तो जानवर की तरह दौड़ना अच्छा लगता है।
चलो भाई दौड़ते रहो !
( प्रस्तुत विचार मेरे स्वयं के मौलिक विचार हैं। कृपया कोई भी व्यक्ति इसे हथियाने का प्रयास न करे ! )
नोट : ये शर्त बालकनी में बैठे माननीय लोगों पर लागू नहीं होतीं !
आपका अभिवादन।
मज़लूमों की इंसाफ़ की गुहार ,
हों ग़िरफ़्त में मुज़रिम-गुनाहगार ,
हादसों में हाज़िर सरकार ,
ख़ाकी को दिया ,
सम्मान और प्यार ,
संवेदनशीलता....व्हाट्स एप्प से 'लघु' कथा
आदरणीय ''दिग्विजय अग्रवाल'' द्वारा संकलित
एक दिन उन्हें एक चिट्ठी मिली, पता माधोपुर के करीब का ही था लेकिन आज से पहले उन्होंने उस पते पर कोई चिट्ठी नहीं पहुंचाई थी।
रोज की तरह आज भी उन्होंने अपना थैला उठाया और चिट्ठियां बांटने निकला पड़े। सारी चिट्ठियां बांटने के बाद वे उस नए पते की ओर बढ़ने लगे।......दरवाजे पर पहुँच कर उन्होंने आवाज़ दी, “पोस्टमैन!”
ओ! शरद पूर्णिमा के शशि नवल !! -कविता --
आदरणीया ''रेणु बाला'' जी की एक सुन्दर कृति
तुम्हारी आभा का क्या कहना !
ओ! शरद पूर्णिमा के शशि नवल !!
कौतुहल हो तुम सदियों से
श्वेत , शीतल , नूतन धवल !!!
हम-तुम....
आदरणीय राकेश कुमार श्रीवास्तव ''राही''
चलो फिर से वही अपने,
सुहाने दिनों को लें आयें।
चलो फिर से वही अपने,
ख़ुशी के पलों को लें आयें।
शरद हंसिनी...आदरणीय ''पुरुषोत्तम सिन्हा''
नील नभ पर वियावान में,
है भटक रही.....
क्यूँ एकाकिनी सी वो शरद हंसिनी?
शरद का चांद....आदरणीय "ज्योति खरे"
फक्क सुफेद चांद
जब भी उछलकर
तुम्हारी गोद में गया
तुमने झिड़क दिया
मेरे स्नेही सागर !....आदरणीया ''मीना शर्मा"
किंतु मैं तो दौड़ी आती हूँ
सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए !
मुझे तुम्हारे मुक्ता मणियों की
ना आस है ना चाव !
**खूँटी पर बँधी है रस्सी**...
आदरणीया ''ऋतु आसूजा''
जीवन की डोर पहुँच रही है,ना जाने
किस-किस की धर्मराज के ,ओर
मौत की खूँटी पर लटकी है,गर्दन
पैर लटक रहे हैं कब्र पर
उस पर असीमित जिज्ञासाओं का मेला
शाश्वत कटु सत्य ... !!!
आदरणीया '' रश्मि प्रभा''...
जब मेरे मुँह से ओह निकलता है
या रह जाती है कोई स्तब्ध
निःशब्द आकुलहट
उसी क्षण मैं मन की कन्दराओं में
दौड़ने लगती हूँ
कहाँ कहाँ कौन सी नस
दुख से अवरुद्ध हो गई"
मिट्टी के घरोंदे है, लहरों को भी आना है......
मनोज सिंह”मन”
आदरणीया ''यशोदा अग्रवाल" द्वारा संकलित
टूटी हुई कश्ती है, दरिया पे ठिकाना है,
उम्मीदों का सहारा है,इक दिन चले जाना है,
गीत "पथ का निर्माता हूँ"
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
ऐसे सम्मेलन में, खुद्दारों का होगा मान नहीं,
नहीं टिकेगी वहाँ सरलता, ठहरेंगे विद्वान नही,
नोक लेखनी की अपनी में, भाला सदा बनाऊँगा।
आज्ञा दें।
"एकलव्य"
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंशुक्रिया छुटकी
आप फोन न करती तो आज और देर हो जाती
आभार..
सादर
शुभ प्रभात भाई ध्रुव जी
जवाब देंहटाएंआज देर हो गई प्रकाशित होने में...
शायद किसी ने प्रस्तुति में कुछ बदलाव किया है
और रि-शिड्यूल नही किया
सादर
आज का सच है आपके अग्रलेख में
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
शुभ प्रभात भाई ध्रुव जी..
जवाब देंहटाएंसोने की नाल
शानदार चम्मचालेख
सोने सा चमकता हुआ
आभार..
सादर
उत्कृष्ट संकलन!
जवाब देंहटाएंसुंदर रचनायें
जवाब देंहटाएंउम्दा संकलन
सभी रचनाकारों को बहुत बधाई
खूबसूरत संकलन .
जवाब देंहटाएंधारदार प्रस्तुति सुन्दर सूत्र।
जवाब देंहटाएंनमस्ते।
जवाब देंहटाएंखेद है कि सुधिजनों को आज का अंक देर से पढ़ने को मिला। मैं किन्हीं कारणों से आज प्रातः अंक नहीं देख पाया अन्यथा आदरणीया यशोदा बहन जी अथवा आदरणीय दिग्विजय भाई जी को फोन पर सूचित करता या फिर भाई ध्रुव जी से संपर्क करता।
ऐसी स्थिति दरअसल इस लिए पैदा होती है क्योंकि इसका तकनीकी कारण है। कोई भी चर्चाकार अपनी प्रस्तुति तैयार करके ड्राफ़्ट में सहेज देता है तो सभी चर्चाकारों के पास सूचना होती है कि किस चर्चाकार की प्रस्तुति किस तिथि में प्रकाशित होगी बशर्ते डेशबोर्ड पर सभी देखें। अब एडमिन की ओर से प्रस्तुति को शेड्यूल किया जाता है।समस्या तब पैदा हो जाती है जब शेड्यूल की गयी प्रस्तुति को पुनः उस चर्चाकार की ओर से संपादित किया जाता। ऐसा करने से प्रस्तुति पुनः ड्राफ़्ट में दिखाई देती है अतः इसे रिशेड्यूल करने के लिए एडमिन को सूचित करना होता है। अतः इसमें अन्य कोई चर्चाकार कोई फेरबदल नहीं कर सकता क्योंकि ऐसा विकल्प गूगल की ओर से केवल एडमिन और चर्चाकार को ही दिया गया है।
एक स्थिति देखिये -
ड्राफ़्ट - पूर्वावलोकन
प्रकाशित अंक (किसी अन्य चर्चाकार का)- दृश्य /साझा करें
चर्चाकार का स्वयं का प्रकाशित अंक - संपादित करें /दृश्य / साझा करें / हटाएं
चर्चाकार का ड्राफ़्ट या शेड्यूल अंक - संपादित करें / पूर्वावलोकन / हटाएं
अन्य चर्चाकार के पास डेशबोर्ड पर केवल पूर्वावलोकन ही विकल्प होता है।
सभी चर्चाकारों ( वर्तमान और भावी ) को सादर सूचनार्थ।
अभी-अभी आदरणीय दिग्विजय भाई जी से इस संबंध फोन पर भी बातचीत हुई।
आज का बेहतरीन अंक प्रस्तुत किया है भाई ध्रुव जी ने अपनी भूमिका में अनेकानेक प्रश्नों को उठाते हुए। ऐसी प्रासंगिक मुद्दों पर समाज में चिंतन की धारा बहती रहनी चाहिए ताकि समयानुकूल सामाजिक मूल्यों का पल्लवन होता रहे। विचारणीय भूमिका बेशक एक ओजपूर्ण रचना ही है। बधाई एवं शुभकामनाऐं ध्रुव जी। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाऐं। मेरी रचना को आज के अंक में स्थान देने के लिए हार्दिक आभार।
सादर।
आदरणीय रविन्द्र जी ---- कुछ भी सरलता से समझाने की कला आपकी विशेषता है | बहुत ही महत्वपूर्ण संदर्भ से अवगत करवाया आपने | इतनी मेहनत और गहन चिंतन से सजता है पञ्च लिंक तभी इतना विशेष है | सादर आभार आपका |
हटाएंआभार
जवाब देंहटाएंशुभ दोपहर....सुंदर भूमिका के साथ उत्तम प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंआभार आप का....
बहुत सुन्दर संकलन ध्रुव सिंह जी
जवाब देंहटाएंमुझे तो जानवर की तरह दौड़ना अच्छा लगता है
चलो भाई दौड़ते रहो ,बहुत अच्छे प्रगर्तिवादी, क्रान्तिकारी विचारधारा बेहतरीन
आज विश्व खाद्य दिवस है। इस आकड़ों पर भी ध्यान दें : 20 करोड़ से अधिक भारतीय आज रात भूखे सोएंगे। 10 लाख लोग हर साल भूख और भूख से संबंधित बीमारियों के मर जाते हैं। केवल आठ प्रतिशत भूकंप, सूखे और युद्ध के कारण भूख से पीड़ित हैं।
जवाब देंहटाएंधारदार भूमिका के साथ ध्रुव भाई द्वारा प्रस्तुत सुन्दर पांच लिंकों का आनन्द एवं इस चर्चा में सम्मलित सभी सारगर्भित रचनाओं के रचनाकार को हार्दिक शुभकामनाएँ एवं बधाई।
बहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशुभ संध्या
जवाब देंहटाएंसोने की नाल
सच है इन धावकों के पास
इनके मालिक से भी ज़ियादा धन है
सारी रचनाएँ उम्दा हैं
आदर सहित
प्रिय ध्रुव ------ हमेशा की तरह आज के संकलन से खुद को जुडा पा कर गर्व की अनुभूति हो रही है | आपको विशेष आभार कि आपने मेरी रचना को मान दिया | अपने आज के सभी सह रचनाकार मित्रों को हार्दिक बधाई और सस्नेह शुभकामनायें | आज के संकलन की भूमिका में आज का आपका चिंतन लाजवाब हैं | मानवीय संवेदनाओं से भरा ये क्रान्तिकारी आक्रोश सोचने पर मजबूर करना है कि राष्ट्र में सामान न्याय , समान अधिकार कैसे लागू हों | कोई तो हो जो चिंतन करे कि कोई भूखे पेट क्यों सोता है ? कौन लोग हैं जो अन्न - धनं के भंडार भरे होने के बावजूद भूख से मर रहे हैं ? किसी की कितनी पीढियां फूटपाथ पर पैदा हो वहीँ आधी -अधूरी जी मर - खप गयी !! ??!अनेक प्रगतिशील देशों ने अपने नागरिको को भूख से बचने और समान नागरिक अधिकार संहिता लागू करने में सराहनीय पहल की है | पर भारत में शायद इस बात पर चिंतन अभी अपेक्षित है | शायद आज भी किसी मसीहा की प्रतीक्षा में है देश !!!!!!!!!!!!! आपको बहुत बधाई और सस्नेह शुभकामना इस सुंदर सार्थक संकलन के लिए |
जवाब देंहटाएंआदरणीय ध्रुवजी,कल रात हुई तूफानी बारिश में नेट की समस्या निर्माण हुई अतः कल उपस्थिति संभव ना हो पाई। देर से आने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ । संकलन की सभी रचनाएँ पढ़ ली हैं। बहुत ही सुंदर रचनाएँ चुनी हैं आपने!
जवाब देंहटाएंआपके द्वारा लिखी गई भूमिका तो स्वयं अपने आपमें एक गज़ब का आलेख है । इसी तरह मुर्दों को जगाने का काम करते रहिए । सोए हुओं को तो जगाया जा सकता है पर मुर्दों को जगाना महाकठिन है। आपकी बात, आपके विचार सुप्त जनमानस को जागृत करें,ईश्वर आपको प्रेरणा एवं शक्ति देते रहें, यही शुभकामना ! सादर धन्यवाद ।
बहुत ही विचारणीय, क्रांतिकारी, प्रगतिशीलभावाभिव्यक्ति के साथ सुन्दर शुभारंभ.....
जवाब देंहटाएंवाह!!!!
उम्दा लिंक संकलन....
सार्थक लिंक
जवाब देंहटाएंआभार