सुप्रभात दोस्तो
प्रस्तुत है आज की आनंद की पांच लिंक
उच्चारण पर........ रूपचन्द्र शास्त्री जी
महावृक्ष है यह सेमल का,
खिली हुई है डाली-डाली।
हरे-हरे फूलों के मुँह पर,
छाई है बसन्त की लाली।।
पाई है कुन्दन कुसुमों ने
कुमुद-कमलिनी जैसी काया।
सबसे पहले सेमल ने ही
धरती पर ऋतुराज सजाया।।
राजस्थान में मेवाड़ रा सीसोदिया राजवंस कुळ गौरव अर उण रै सुतंतरता री रक्षा रै खातर घणौ ऊंचौ, आदरजोग अर पूजनीक मानीजै। राजस्थान रा बीजा रजवाड़ां में मेवाड़ वाळा सदा अपणी मान मरोड़, कुरब कायदा कांनी ऊभा पगां रैवता आया है। इण सूं उण नै धन, मिनख री हाण अर घणी अबखाई रा कामां सू भटभेड़ियां भी लेवणी पड़ी। मेवाड़ रौ आडंबर तौ आखा बाईसा रजवाड़ां में नामी इज हौ।
पख हाड़ौती माळवौ, ढब देखै ढूंढाड़।
आखर परखै मुरधरा, आडंबर मेवाड़।।
अंकाक्षा पर......आशा सक्सेना
अपशब्दों का प्रहार
इतना गहरा होता
घाव प्रगाढ़ कर जाता
घावों से रिसाव जब होता
अपशब्द कर्णभेदी हो जाते
मन मस्तिष्क पर
बादल से मडराते
छम छम जब बरसते
नदी नाले उफान पर आते
शेष फिर पर.....डाॅ अजीत
कभी कभी खीझकर
पिताजी मुझे कहते थे
सियासती
खासकर जब मैं तटस्थ हो जाता
या फिर उनका पक्ष नही लेता था
उनके एकाधिकार को चुनौति देने वाली व्यूह रचना का
वो मुझे मानते थे सूत्रधार
उन्हें लगता मैं अपने भाईयों को संगठित कर
उनके विरोध की नीति का केंद्र हूँ
गर्मा गरम बातचीत में उन्हें लगता
मिलकर उनको घेर रहा हूँ
उनको जीवन और निर्णयों को अप्रासंगिक बताने के लिए
समालोचन पर .........अरूण जी
मैं इस मचान पर खड़ा हूं
चीरें फाड़ें तो लकड़ी का फट्टा ठस्स
नट इतराए तो सीढ़ी
मैं बेलाग हो चाहता हूं नीचे उतरना
ज़मीन पर खड़े होकर बात करना
मजमे की चौहद्दी तय हो जाती है
देखने सूंघने के फटीचर आयुर्विज्ञान में
निराकार से उद्भूत होती है
चीरें फाड़ें तो लकड़ी का फट्टा ठस्स
अब दीजिए अपने दोस्त विरम सिंह सुरावा को
आज्ञा
धन्यवाद
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |सेमल के फूल ने तो सेमलगुठे की सब्जी की याद दिला दी |
सुन्दर प्रस्तुति ।
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