भडका रहे हैं आग लब-ए-नग़्मगर से हम
ख़ामोश क्यों रहेंगे ज़माने के डर से हम
ले दे के अपने पास फ़क़त इक नज़र तो है
क्यों देखें ज़िंदगी को किसी की नज़र से हम
देगा किसी मक़ाम पे ख़ुद राहज़न का साथ
ऐसे भी बदगुमान न थे राहबर से हम
माना कि इस ज़मीं को न गुलज़ार कर सके
कुछ ख़ार कम तो कर गये गुज़रे जिधर से हम.
साहिर जी की इस प्यारी सी गजल के बाद....
पेश है आज के लिये...
मेरी पसंद...
कहानी - शम्भू रैदास--BRIJESH NEERAJ
क्या कहें? अचानक उन्हें लगा कि उस विशालकाय लम्बे व्यक्ति के सामने वह बिल्कुल बौने हो गए हैं। यदि शम्भू चाहता तो इस झोले की सामग्री से वह अपने घर की दीवाली
जगमग कर सकता था। आखिर उसके घर में भी तो अँधेरा था। उस अँधेरे को दूर करने की खातिर ही वह सबेरे मिन्नतें करने आया था। परन्तु, उस समय उनका दिल जरा भी नहीं
पसीजा था। इधर शम्भू को देखो, उसने इस घर की कितनी परवाह की। वह हमारे आने के बाद झोले की तलाश में भटका होगा। आखिर, उसने इस घर का नमक खाया है। उसके पुरखे
यहाँ की ड्योढ़ी पर पले थे। शायद, उसने अपना वही हक अदा किया है। मगर नहीं, संभवतः यह सम्पूर्ण सच नहीं है। सच तो यह है कि शम्भू के खून में ईमानदारी है, मानवता
है, चरित्र है और वह सब कुछ है जो एक सच्चे इंसान में होना चाहिए। शायद हम जैसे शहर की आडम्बरपूर्ण सभ्यता में आत्ममुग्ध रहने वालों में इसी निश्छल सच्चाई
की नितान्त कमी है।
असली देशभक्त कौन ?--Swarajya karun
यह सूची और भी लम्बी हो सकती है .जितना मुझे ख्याल आया , मैंने लिख दिया .अगर आप चाहें तो इसमें अपनी ओर से भी कुछ बिंदु जोड़कर सूची की लम्बाई बढ़ा सकते हैं
. इससे देशभक्तों की पहचान तय करना और भी ज्यादा आसान हो जाएगा
शिव को करना ही होगा विषपान--विकेश कुमार बडोला
अब सह न सकेंगे
मातृभूमि का अपमान
शिव को अब
करना ही होगा विषपान
जाने किस बहकावे में--शालिनी रस्तौगी
आक्रोश से फटी पड़ती है
कि भीतर के लावे से
सब कुछ ख़ाक कर देने को आतुर
वीर प्रसविनी आज
भक्ष रही निज पूतों को
जाने किस बहकावे में
इश्क का स्वाद ....--रश्मि शर्मा
बूंदों ने हाेंठो को छूकर
हवाओं के कान में बोला
इश्क का स्वाद बड़ा मीठा है
गढ़ की ऊंची दीवारों से झांक
सूरज मुस्कराने लगा
श्याम सलोने--Asha Saxena
नयनों में आ कर बसी
अनमोल भंगिमा तेरी
श्याम सलोने
तेरी कमली तेरी लाठी
तेरी धैनूं तेरे सखा
मुझको बहुत सुहाय
तू सबसे अलग लगे
मन से छवि न जाय |
ज़िन्दगी संभलती नहीं है ...--डॉ. मोनिका शर्मा
ये बातें "पाखी" के संपादक प्रेम भारद्वाज जी और विविध भारती में अपनी आवाज के लिए ख़ास पहचान रखने वाले यूनुस खान जी के संवाद का हिस्सा हैं जो हाल ही में जयपुर
में होने वाले साहित्यिक आयोजनों की श्रृंखला "सरस साहित्य संवाद" में सुनने को मिलीं | मुझे भी इस सार्थक संवाद को सुनने-गुनने का अवसर मिला | प्रेम भारद्वाज
जी ने अपने जीवन और रचनाकर्म से जुड़े कई पहलुओं पर खुलकर बात की |
अंत में पढ़े....
" कोई जित के हार जाता है , कोई हार के जित जाता है।
नही दिखते अकबर के ताबूत कोई , महाराणा प्रताप के घोडे प्रत्येक चौराहे पर नजर आते है ।"
बस आज यहीं तक...
धन्यवाद।
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंअच्छा चयन
पसंद आई सारी रचनाएँ
सादर..
शुभप्रभात
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुतिकरण
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंसुन्दर सुत्र
लिंक शामिल करने के लिए धन्यवाद
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंकोई जीत के हार जाते हैं
कोई हार के जीत जाते हैं।
नही दिखते अकबर के ताबूत कोई
महाराणा प्रताप के घोडे
प्रत्येक चौराहे पर नजर आते है ।
जिन्दगी संभलती नहीं..
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंक.
Bahut achhi rachnaye sanklit ki aapne. Meri rachna shamil karne ke liye dhnyawad
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