सादर अभिवादन
भाई संजय आज भी नहीे हैं
बीमा विक्रय अधिकारी हैं न वे
शायद इसीलिए...
आज की चुनी हुई रचनाओं के अंश......
सबके मन में ही बसते हैं
वे समग्र शास्वत आते हैं
मुरझाये मानव,जीवन में
गीतों का झरना लाते हैं
घने अँधेरे पर जाने कब ,
हौले हौले छा जाते हैं !
किसे ढूँढ़ते चित्र बनाये
लाखों देव देवताओं में ,
दिव्य और विश्वस्त रूप की, मानव को पहचान नहीं है !
हम खुद कुछ कर नहीं सकते
करना आता जो नहीं
मगर यकीन जानिये
जोड़ तोड़ में माहिर हैं
इसकी टोपी उसके सिर
करना हमारी पुरानी फितरत है
देह दीवानी
हुई रूप गर्विता
सत्य न जानी|
यह शहर.....
आदमी के साथ
जीता और मरता है
कुछ अलग सा में...गगन शर्मा
हवलदार अभी तक बेहोश है।
इस वार्तालाप को पढ़ कर हंसी तो आती है,
पर यह एक कड़वी सच्चाई है।
हालात में एक्का-दुक्का प्रतिशत बदलाव भले ही आया हो,
पर अभी भी लाखों ऐसे लोग हैं जो इस तरह के भंवर जाल में फंसे हुए हैं।
और ये है शीर्षक रचना का अंश
ग़ज़ल गंगा में...मदन मोहन सक्सेना
दर्द मुझसे मिलकर अब मुस्कराता है
जब दर्द को दबा जानकार पिया मैंने
वक्त की मार सबको सिखाती सबक़ है
ज़िन्दगी चंद सांसों की लगती जुआँ है
आज यहीं तक
आज्ञा दें दिग्विजय को
वक्त रहा तो फिर मिलेंगे
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्स आज पढ़ने के लिए |
मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंसुन्दर सूत्रो का संयोजन ।
बढ़िया संकलन ।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |सुन्दर सूत्रो का संयोजन ।
जवाब देंहटाएंSunder sankalan. Dhanywad
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