भारत आतंकवाद-पीड़ित देश है...
यहां राष्ट्र विरोधी नारे लगना...
अवश्य ही संशय पैदा करता है...
पिछले दिनों कई जयचंद सामने भी आये हैं...
जो राष्ट्र विरोधी नारे लगाने वालों का समर्थन कर रहे हैं....
वो भी खुद को देशभक्त कह रहे हैं...
राष्ट्र की बात करने वालों को...
साम्प्रदायिक कह कर प्रताड़ित किया जा रहा है...
ये जहर उगलने वाले कौन हैं?...
वंदे मातरम या भारत माता की जय से....
हिंसा तो नहीं भड़कनी चाहिये....
मुझे आज के माहौल में केवल....
आलोक धन्वा की कविता...
सफेद रात याद आ रही है...
लखनऊ में बहुत कम बच रहा है लखनऊ
इलाहाबाद में बहुत कम इलाहाबाद
कानपुर और बनारस और पटना और अलीगढ़
अब इन्हीं शहरों में
कई तरह की हिंसा कई तरह के बाजार
कई तरह के सौदाई
इनके भीतर इनके आसपास
इनसे बहुत दूर बम्बई हैदराबाद अमृतसर
और श्रीनगर तक
हिंसा
और हिंसा की तैयारी
और हिंसा की ताकत
बहस चल नहीं पाती
हत्याएं होती हैं
फिर जो बहस चलती है
उनका भी अंत हत्याओं में होता है
भारत में जन्म लेने का
मैं भी कोई मतलब पाना चाहता था
अब वह भारत भी नहीं रहा
जिसमें जन्म लिया
क्या है इस पूरे चांद के उजाले में
इस बिखरती हुई आधी रात में
जो मेरी सांस
लाहौर और कराची और सिंध तक उलझती है?
क्या लाहौर बच रहा है?
वह अब किस मुल्क में है?
न भारत में न पाकिस्तान में
न उर्दू में न पंजाबी में
पूछो राष्ट्रनिर्माताओं से
क्या लाहौर फिर बस पाया?
जैसे यह अछूती
आज की शाम की सफेद रात
एक सचाई है
लाहौर भी मेरी सचाई है
कहां है वह
हरे आसमान वाला शहर बगदाद
ढूंढो उसे
अब वह अरब में कहां है?
पूछो युद्ध सरदारों से
इस सफेद हो रही रात मे
क्या वे बगदाद को फिर से बना सकते हैं?
वे तो खजूर का एक पेड भी नहीं उगा सकते
वे तो रेत में उतना भी पैदल नहीं चल सकते
जितना एक बच्चा ऊंट का चलता है
ढूह और गुबार से
अंतरिक्ष की तरह खेलता हुआ
क्या वे एक ऊंट बना सकते हैं?
एक गुम्बद एक तरबूज एक ऊंची सुराही
एक सोता
जो धीरे-धीरे चश्मा बना
एक गली
जो ऊंची दीवारों के साए में शहर घूमती थी
और गली में
सिर पर फिरोजी रूमाल बांधे एक लड़की
जो फिर कभी उस गली में नहीं दिखेगी
अब उसे याद करोगे
तो वह याद आएगी
अब तुम्हारी याद ही उसका बगदाद है
तुम्हारी याद ही उसकी गली है
उसकी उम्र है
उसका फिरोजी रूमाल है
जब भगत सिंह फांसी के तख्ते की ओर बढ़े
तो अहिंसा ही थी
उनका सबसे मुश्किल सरोकार अगर उन्हें कुबूल होता
युद्ध सरदारों का न्याय
तो वे भी जीवित रह लेते
बरदाश्त कर लेते
धीरे-धीरे उजड़ते रोज मरते हुए
लाहौर की तरह
बनारस अमुतसर लखनऊ इलाहाबाद
कानपुर और श्रीनगर की तरह
अब चलते हैं आज के आनंद की ओर...
मैं हिन्दू क्यों हूं?
मैं वंशानुगत गुणों के प्रभाव पर विश्वास रखता हूं, और मेरा जन्म एक हिन्दू परिवार में हुआ है इसलिए मैं हिन्दू हूं. अगर मुझे यह अपने नैतिक बोध या आध्यात्मिक
विकास के विरुद्ध लगे तो मैं इसे छोड़ दूंगा. अध्ययन करने पर जिन धर्मों को मैं जानता हूं उनमें मैंने इसे सबसे अधिक सहिष्णु पाया है. इसमें सैद्धांतिक कट्टरता
नहीं है, यह बात मुझे बहुत आकर्षित करती है क्योंकि इस कारण इसके अनुयायी को आत्माभिव्यक्ति का अधिक से अधिक अवसर मिलता है हिन्दू-धर्म वर्जनशील नहीं है, अतः
इसके अनुयायी न सिर्फ दूसरे धर्मों का आदर कर सकते हैं बल्कि वे सभी धर्मों की अच्छी बातों को पसन्द कर सकते हैं और अपना सकते हैं. अहिंसा सभी धर्मों में है
मगर हिन्दू-धर्म में इसकी उच्चतम अभिव्यक्ति और प्रयोग हुआ है. (मैं जैन और बौद्ध धर्मों को हिन्दू-धर्म से अलग नहीं गिनता). हिन्दू-धर्म न सिर्फ सभी मनुष्यों
की एकात्मकता में विश्वास करता है बल्कि सभी जीवधारियों की एकात्मकता में विश्वास करता है. मेरी राय में हिन्दू-धर्म में गाय की पूजा मानवीयता के विकास की दिशा
में उसका एक अनोखा योगदान है. सभी जीवों की एकात्मकता और इसलिए सभी प्रकार के जीवन की पवित्रता में इसके विश्वास का यह व्यावहारिक रूप है. भिन्न योनियों में
जन्म लेने का महान विश्वास, इसी विश्वास का सीधा नतीजा है. अन्त में, वर्णाश्रम धर्म के सिद्धान्त की खोज सत्य की निरन्तर खोज का अत्यन्त सुन्दर परिणाम है.
आतंकवाद के तरीके बदल रहे हैं
अब तो और भी बहुत सी ताकतें भारत की अखंडता की बैरी हो गयी हैं जिन्होंने अपने आतंकी युवा एजेंट भारत के प्रत्येक कोने में बैठा रखे हैं और विदेशों से प्रचुर
मात्र में काला धन इन स्लीपिंग सेल्स को पोषित करने के लिए आ रहा है ! ये लोग दलितों और गरीब परिवारों के महत्वाकांक्षी बच्चों को पैसों से खरीदकर उनसे मनमाना
काम करवा रहे हैं ! उन्हें देशद्रोह के आरोप में फंसाकर ये लोग फरार हो जाते हैं क्योंकि विदेशों में इनकी सुरक्षा का पुख्ता इंतज़ाम रहता है !
ज़रुरत है भारत को चेत जाने की ! इनके नापाक इरादों को पहचान लेने की ! इन लोगों पर पैनी दृष्ट रख संदेह होते ही इन्हें गिरफ्तार करने की ! चिंगाली, शोला बन
सब कुछ भस्म कर दे उससे पहले ही संभल जाने की ज़रुरत है !
वसुधैव कुटुम्बकम
माँ वसुंधरा तुम कितनी सहनशील हो
जो हमारे पांवों की चोट सह कर
भरती हो हमारे अंदर सुन्दरता
सिखाती हो हमें बिना रुके सृजन
ओ माँ हम तुम्हारे प्यारे बच्चे तुम्हें क्या दें?
हाथों में हाथ ले कर सम्मलित हंसी दे
या माँ तोड़ दे सारी सरहदे जो तुम्हें
तुमसे ही अलग करती है
या लिख दे तुम्हारे दिल पर
वसुधैव कुटुम्बकम
ग़ज़ल
अय्याशी में कटी जवानी, पाल न पाए बच्चों को,
अंत में गेरुवा बस्तर धारा, पल जाने की आशा में.
महशर के इन हंगामों को, मेरे साथ ही दफ़ना दो,
अमल ने सब कुछ खोया पाया, क्या रक्खा है लाशा में.
ज्ञानी, ध्यानी, आलिम, फ़ाज़िल, श्रोता गण की महफ़िल में,
'मुंकिर' अपनी ग़ज़ल सुनाए, टूटी फूटी भाषा में.
सुरभि
तभी तो कहा जाता है जो आगे की सोच कर चलता है और कठोर धरती को नहीं छोड़ता है वही सरल जीवन जी पाता है |
सदा भविष्य को ध्यान में रख कर आने वाले कल के लिए प्लानिग करना चाहिए और बचत करने की आदत डालना चाहिए |
लाल आतंक पर चुप्पी क्यों है?
ध्यान रहे कि वामपंथी शासन में विरोधी विचारधार के लोगों की हत्या लम्बे समय से की जाती रही है। भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया में वामपंथ का इतिहास हत्या
और हिंसा की राजनीति का है। केरल में ही आरएसएस और भाजपा के 200 से अधिक कार्यकर्ता लाल आतंक का शिकार हो चुके हैं। पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में हुई राजनीतिक
हत्याओं को इसमें जोड़ दें तो आम आदमी के रोंगटे खड़े हो जाएंगे। वामपंथी विचारधारा का करीब से अध्ययन किया जाए तो हम पाएंगे कि इसकी बुनियाद में ही हिंसा है।
कम्युनिस्टों के आदर्श ब्लादिमिर इल्या उल्वानोव उपाख्य लेनिन की सार्वजनिक घोषणा हमें याद करनी चाहिए-'जो कोई भी नई शासन व्यवस्था का विरोध करेगा, उसे उसी
स्थान पर गोली मार दी जाएगी।' वामपंथ में विरोधी विचारधारा के लिए किंचित भी जगह नहीं है। यही कारण है कि कम्युनिस्ट शासन व्यवस्था में विरोधियों के खून से
लाल क्रांति की जाती है। भाजपा के शासनकाल में कोई थोड़ा ऊपर-नीचे बयान भी दे दे तो बुद्धिवादी 'फासीवाद आ गया-फासीवाद आ गया' चिल्लाने लगते हैं। लेकिन, लाल
आतंक पर मासूम बन जाते हैं।
जेएनयू में देशद्रोही घटना पर उचित कार्रवाई होने पर वामपंथी नेता सीताराम येचुरी को आपातकाल का अनुभव होने लगता है। लेकिन, जब केरल में एक राष्ट्रभक्त
नौजवान की जघन्य हत्या कर दी जाती है तब उनके मुंह से बोल नहीं फूटते हैं। देश में जिन बुद्धिवादियों को अचानक से असहिष्णुता दिखाई देने लगी है, वे सब जान लें
कि यह असहिष्णुता नहीं है बल्कि इस दोगले चरित्र की मुखालिफत है। शोषण और अत्याचार पर बुद्धिवादियों की चुप्पी के खिलाफ अब देश बोलने लगा है। यह देश क्यों बोल
रहा है? यही बात बुद्धिवादियों को अखर रही है। लेकिन, अब देश इस तरह की घटनाओं के खिलाफ उठकर खड़ा हो रहा है। अवार्ड वापसी गैंग भले ही लाल आतंक पर खामोश रह
जाए लेकिन देश बोलेगा।
अब अंत में... पढ़ते हैं...स्वामी विवेकानन्द से संबंधित प्रेरक प्रसंग...
मन की स्थिति
शिक्षा - स्वामी विवेकानन्द ने उसे समझाया कि यही स्थिति हमारे मन की भी है। जीवन की दौड़-भाग वाली जिन्दगी कि परेशानी मन को परेशान हताश और निराश कर देती है। पर यदि कोई शांति और आराम से उसे बैठा देखता और समझता है , तो परेशानी अपने आप खत्म या कम हो जाता है और उसका हल हो जाता है।
धन्यवाद
सार्थक लिंकों के साथ। उम्दा चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम
आनंद हि आनंद आ गया
मैं हिन्दू क्यों हूँ
जवाब देंहटाएंये भी कोई
कुछ भी
उत्तर दे सकता है
मैं तो कहूँगी
हिन्दुस्तान की
पैदाइश है मेरी
तो मैं हिन्दू ही हुई न
बेहतरीन प्रस्तुति
भाई कुलदीप जी
सादर..
Bistrit aur sarthak prastutikarn ..
जवाब देंहटाएंबेहतर प्रस्तुति आभार।
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