करीबी बताते हैं कि उनकी महफिलों का मतलब है किस्से, चर्चे, साहित्य की बातें, कुछ गॉसिप, चुहुलबाजी, सामयिक विषयों पर चर्चाएं, राजनीति की भी बातें और घर मेंही मशीन पर बनते सोडा के साथ कांच के सुंदर गिलासों में भरती शराब, उनकी खुद की तैयार की हुई कोई नानवेज डिश और रोटी बनाने की मशक्कत से बचने के लिए पास कीब्रेकरी से मंगाए हुए पाव। उनके घर में निंदा रस की भी गुंजाइश रहती थी। इसकी चपेट में कवि, समीक्षक, साहित्यकार फिल्म जगत और अखबारी लोग ही आते थे। या फिरकथित सांप्रदायिक आचरण वाले लोगों पर उनका गुस्सा बरसता था। गीत संगीत साथ-साथ चलता और जब उनकी इच्छा हो तो राजनीति पर भी बातें हो जाती थीं।निदा जी का जीवन, दुनिया को देखने, समझने की तहजीब देता है। लोगों तक पहुंचने के लिए वे आवरण नहीं बनाते, लेकिन थोड़ी-सी परख हो तो निदा समझ में आने लगते हैं।सुना है शायरी-गजल लिखने के लिए शायद ही कभी वह अपना खास मिजा़ज बनाते हों। कब लिखते हैं, पता नहीं चलता । जब भी कुछ नया लेकर आते, उस दिन कुछ देर की संगत केबाद उसे धीरे-धीरे तर्ज में यार दोस्तों को सुनाने लगते। लोग वाह ! वाह ! ही करते। दूसरों को भी खूब सुनते हैं। युवाओं की कविता-कहानी, गीत,गजल को वह बहुत दिलचस्पीसे सुनते थे। निदा जी के चले जाने की खबर वाकई पीडादायक है, लेकिन एक कलमकार यही कह सकता है कि निदाजी .. हम तुम्हें मरने ना देंगे, जब तलक जिंदा कलम है।
अनारक्षित आदमीआज लोकतंत्र में गुम हैउसे तंत्र की तरफ सेइतनी भीसुविधा नहींकि वह अपना दुख प्रकट करेअपने आंसू छलकाएअपनी पीड़ा व्यक्त करेवह देखता हैसारा तंत्रसारी व्यवस्थासारा लोकतांत्रिक बुद्धि-विवेककेवल आरक्षित श्रेणीमें चढ़ने को है आतुर
sweat यानि पसीना और इस से जुडी बदबू की समस्या किसी को भी हो सकती है और यह कोई बड़ा health issue तो नहीं है लेकिन अगर बदबू थोड़ी ज्यादा हो तो जिस व्यक्तिको यह समस्या है उसके पास खड़ा रहना भी असहनीय हो जाता है | वैसे तो हम सबकी शारीरिक दशा अलग अलग होती है किसी को कम पसीना आता है किसी को अधिक लेकिन जब हम किसीpublic place पर होते है तो जरुरत से अधिक पसीना और पसीने की बदबू आपको थोडा शर्मशार कर सकती है |
इसी एक रंग से रंगती हैं सरकाररँगा-रँगाया , रंगबाज़ , रंगरसिया, रंगदारजिनके हाथों के बीच के हम मच्छड़जाने कब ताली पीट दे या दे रगड़इनसे बचने का तो एक भी उपाय नहींहाँ! जी हाँ! हम मच्छड़ ही हैं कोई दुधारू गाय नहीं .
बागों के भौरों की गुंजनफ़ैल रही खुश्बू बन बनमधुबन में तो गुंज रहा हैपुष्पित स्वासों का स्पंदनबसंतराजा सजकर आएप्रकृति रोम रोम हरषाएतुम कब गठरी खोलोगेपरिचय से पहले बोलोगे
ग्राम पंचायत रानी डोंगरी नाम लोकदेवी देवी रानी माई के नाम से है, रानी माई आस पास के सात आठ गाँव की देवी हैं। जो टिकरापारा से लगभग 3 किमी की दूरी पर जंगलमें डोंगरी की गुफ़ा में विराजती हैं, ग्राम परम्परा के अनुसार वहाँ पूजा करने के लिए बैगा किरपा राम सोरी नियुक्त है। जब भी देवी की पूजा करनी होती है या उन्हेंग्राम में आमंत्रित करना होता है तो बैगा के माध्यम से ही इस कार्य को सम्पन्न किया जाता है। मड़ई के दिन सारे गाँव वासी रानी माई होम धूप देकर गाँव आने का निमंत्रणदेते हैं, तथा उसके आदेश के बाद मड़ई की डांग लेकर गाँव आया जाता है, देवी मड़ई के कार्य को सफ़ल बनाने के लिए गाँव में पधारती हैं, साथ ही अनुषांगी देवता भी ग्राममें पहुंचते हैं।
हाँ, ज्ञात है अंतर साहस और दुस्साहस कारीत-रिवाज के नाम पर होते शोषण के विरुद्दमेरे भीतर बसती स्त्रीत्व की चेतनापरम्पराओं से जद्दोज़हदकरने के खेल मेंछद्म आधुनिकता के जाल से बचने काविवेक रखती है ।
यशोदा दीदी का भरपूर सहयोग मिला
आभारी हूँ......
जो लम्हा साथ हैं, उसे जी भर के जी लेना.
निदा जी की आवाज़ जीवित है
सुरक्षित कर लीजिए
जगजीत पैदा हुए और निदा जी चल दिए
एक ही दिन....
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंवाह...
मैं सिर्फ वीडियो पोस्ट की हूँ
और सहयोगी होने का श्रेय ले गई
बड़प्पन है आपका कुलदीप भाई
आभार
waaaah bht hi badhiya
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंजगजीत सिंह जी की गायकी और निदा फ़ाज़ली जी का गजल लेखन बेजोड़ संयोग है ...
सुंदर सूत्रों का आनंद लिया । हार्दिक आभार ।
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