।।प्रातःवंदन।।
" निर्धन जनता का शोषण है
कहकर आप हँसे
लोकतंत्र का अंतिम क्षण है
कहकर आप हँसे
सब के सब हैं भ्रष्टाचारी
कह कर आप हँसे
चारों ओर बड़ी लाचारी
कहकर आप हँसे
कितने आप सुरक्षित होंगे मैं सोचने लगा
सहसा मुझे अकेला पाकर फिर से आप हँसे..!!"
विरले शब्द शिल्पी,निडर आलोचक,रघुवीर सहाय (9 दिसंबर 1929- 30 दिसंबर 1990) जन्म जयंती 🙏🌸आज के प्रस्तुतिकरण को बढाते हुए..
बीती रजनी की अलस छोड़
जीवन संघर्ष से अमृत खोज
करुणा प्रेम दया का सोता
नदियों में बहता गंगाजल ..
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शोभना बड़े पशोपेश में थी ! सोमवार को उसके मोहल्ले की किटी पार्टी थी ! इस बार सारी महिलाओं ने मिल कर ड्रेस कोड रख लिया था ! किटी के दिन सबको लाल बॉर्डर की नीली साड़ी पहननी थी !
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बटमारों ने चुन-चुन मारा।
अब केवल रतजगा हमारा।
मेरे सुख-दुख नहीं बांटना,
मेरी उन्नति नहीं चाहना,
कष्ट पड़े तो दूर भागना,
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हैरत हुई ना किश्तों उधार मिली यादों दरारों में l
इल्तिजा ठहरी नहीं चहरे शबनमी बूँदों दरारों में ll
खोई सलवटें सूने आसमाँ तुरपाई गलियारों में l
छुपा गयी गुस्ताखियां आँचल पलकों सायों में ll
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कोई भी साया
बस यूँ ही देवद्वार तक नहीं जाता
भटकन उसे भी
खारी लगने लगती है।
मन की मरुस्थली देह पर
जब बहुत दिनों तक
कोई रोशनी नहीं उतरती,
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह ' तृप्ति '...✍️
वाह ! सुन्दर सार्थक सूत्रों से सुसज्जित आज की हलचल ! मेरी लघुकथा, 'आप तो ऐसे न थे' को भी इसमें स्थान दिया आपका हृदय से बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार पम्मी जी ! सप्रेम वन्दे !
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