।। उषा स्वस्ति।।
बादलों से कहो बेरुखी ना करें।
हो सके तो तुरत गांव का रुख करें!
जल रही है धरा, जल रहा आस्मां
दूर तक है नहीं जल का नामोनिशां
कोई राही नहीं, कोई रस्ता नहीं
प्यास का कोई ठीहा भी दिखता नहीं..!!
ओम निश्चल
मौसमों का लुका छिपी तो चलता ही रहता है पर बहुत जरुरी है समय पर बूंदों की स्पंदन की,तो समय के बहाव के साथ लिजिए लिंकों का आनंद ब्लॉग मंथन से..✍️
जी करता है किसी से आज मिल करके देखें,
अपनों से दिल की बात हम करके देखें ।
खैर न खबर उनकी बीते जमाने से,
जा कर उन्हीं के पास हैरान करके देखें..
❄️❄️
दोस्त जो चले गए
❄️❄️
पुरातन अभिलेख देते हैं दस्तक, विलुप्त
दरवाज़ों का मिलता नहीं कोई भी
नामोनिशान, वही सीलन
भरी ज़िन्दगी, झूलते
हुए चमगादड़ों
की तरह
भीड़
भरी सांध्य लोकल लौट आती है कच्चे
रास्तों से हो कर सुबह
अनुराग-राग बरसाती है
जब सुख संध्या घिर आती है....
सूर्य किरण ढल जाती थककर
सांझ स्नेह बरसाती सजकर
जब से वे घर छोड़ मकानों में रहने लगे हैं।
घर, धाम था, देवस्थान था जहाँ प्रीत बसती थी
मकानों में रुतवा रुस्तम दर्प ठहरने लगे हैं।
थालियों से कोर लेनदेन का अप्रमेय नेह था घर में
मकानो की मेजों पर कोर एकला अकेले होने
बेहतरीन अंक
जवाब देंहटाएंबादलों से कहो बेरुखी ना करें।
हो सके तो तुरत गांव का रुख करें!
सादर
शुभ प्रभात ... सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसभी लिंक्स पर पढ़ आये । लेकिन अडिग शब्दों का पहरा पर शायद पहरा लगा हुआ है । ये पेज नहीं मिला । शायद लिंक लेने के बाद डिलीट कर दिया गया ।
जवाब देंहटाएंबाकी शानदार प्रस्तुती ।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंसंगीता स्वरूप (गीत) जी, अडिग शब्दों का पहरा पर पहरा नहीं लगा है। कहीं तकनीकी समस्या हो सकती है। सादर स्वागत है आपका महोदया। इसे खोलिये
हटाएंhttps://adigshabdonkapehara.blogspot.com/2021/06/blog-post_26.html?m=1
पांच लिंकों का आनन्द" का सुन्दर संकलन । संकलन में मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार पम्मी जी ।
जवाब देंहटाएंशानदार संकलन, संकलन में मेरी रचना को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार और धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंलाजबाव रचना संकलन
जवाब देंहटाएंसुंदर सराहनीय अंक ,सुंदर श्रमसाध्य प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक शुभकामनाएं पम्मी जी।
जवाब देंहटाएं