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रविवार, 27 जून 2021

3072 ..पृष्ठों में हर बार ख़ुशी के पृष्ठ सजाए मैंने

आज रविवारीय अंक में
आप सभी को
सादर अभिवादन
....
तुमको मिल ही गया
कोई बेहतर
मुझसे !
मुझको भी मिल गया
कोई बेहतर
तुमसे !

पर कभी कभी दिल को यूँ भी लगता है …
हम जो इक दूसरे को मिल जाते
तो यक़ीनन वो होता बेहतर
सबसे !
.....

चलिए चलें आज की रचनाओं की ओर ...

फूल थे तुम, तो बड़े मुखर थे,
बंद थे, तो भी प्रखर थे,
विहँसते थे खिल कर, हवाओं में घुल कर,
बदल चुके हो, इतने तुम क्यूँ?


मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर
लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया।


अरे, कोई समझाए
उस पगली को
जहां भय हो
वहां
न होता है धर्म
और न प्रेम।


चकवा चकवी मिलवा लागा
फूल कमल का खिलवा लागा
रस पीवा की वेराँ जावे
जागो म्हारा भमरा कलियाँ जगावे
कलियाँ की गलियाँ में सोई लिदा जी आखी रातलड़ी
ओ आखी रातलड़ी
जागो म्हारा हिवड़ा का हार जागी जाओ सा
चटक चाँदणी चितचोर चाली


वास्तव में हमें शरीर की नैसर्गिक क्रिया में रूकावट डालने वाली किसी भी चीज से बचना चाहिए। विशेषज्ञों के अनुसार एकाध बार बहुत ही जरूरी वजह से गोली ली जा सकती है लेकिन किसी भी हालात में डॉक्टर की सलाह के बिना ये गोली नहीं लेनी चाहिए।

पहली सीढ़ी चढ़ी औ पहला पायदान लकड़ी का
जीवन की कड़ियों में जुड़ती हर एक एक कड़ी का
कर स्मरण सजाए मैंने अपने सपने
पृष्ठों के भी पृष्ठ कई देखे हैं मैंने
....
आज बस
कल बड़ी दीदी आएगी
सादर

 

11 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात ....
    सुन्दर रचनाओं की इस महफिल में, मुझे भी शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
    समस्त रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएँ। ।।।

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात...आभार आपका। सभी रचनाओं पर टिप्पणी पढ़ने के बाद...। सभी रचनाकारों को बधाई...।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर, सार्थक लिंक्स को संजोया है आपने...
    साधुवाद यशोदा अग्रवाल जी 🙏

    जवाब देंहटाएं
  4. मेरी कविता को शामिल करने के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं हार्दिक आभार यशोदा अग्रवाल जी 🙏

    जवाब देंहटाएं
  5. सुप्रभात!
    आदरणीय दीदी,प्रणाम,आज की वैविध्यपूर्ण सुंदर प्रस्तुति मन मोह गई,मेरी रचना की पंक्ति को शीर्षक बना कर आपने मेरी रचना का मान बढ़ा दिया, आपका बहुत बहुत आभार एवम नमन, सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह...

    जवाब देंहटाएं
  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  7. सम्मानीय यशोदा जी आपने ‘हरी हो वसुंधरा’ अभियान को इस चर्चा में शामिल किया है उसके लिए मैं विशेष तौर पर आभारी हूं, मैं जानता हूं कि ये साहित्य का मंच है और मैंने जो पोस्ट किया उसमें साहित्य जैसा कुछ नहीं है, एक अभियान की शुरुआत का प्रयास और जानकारी भर है, लेकिन मैं जानता हूं कि साहित्य भी बिना प्रकृति के परिपक्व नहीं हो सकता क्योंकि जब दुनिया सूख रही होगी, जब कंठ दो बूंद जल को तरस रहे होंगे, जब धरती सूखकर दरारों से उसी चीख सुनाई देगी, जब बादल केवल मूकदर्शक बनकर लौट जाएंगे, जब सबकुछ सब दूर सामान्य नहीं होगा...तब शायद साहित्य भी प्रभावित होगा क्योंकि अकाल के दौर में भूख अनाज मांगती है, शब्द नहीं, चिंतन भी नहीं...। मेरा उददेश्य केवल इतना था कि हममें से जो भी जिस भी स्तर पर प्रयास कर सकता है, छोटा, बहुत छोटा और कुछ नहीं हो सकता तो जो पौधे लगे हैं यदि हम उनमें से कुछ को रोज जल ही अर्पित करने की जिम्मेदारी उठा लें तब भी बहुत कुछ बदल सकता है...। आपने इसे ये मंच प्रदान किया मैं आभारी हूं और आभारी हूं अपने ब्लॉगर साथियों को जो वह इसे देखकर उतने ही सहज हैं जितनी सहजता से इसका यहां चर्चा के लिए चयन किया गया।

    जवाब देंहटाएं
  8. उम्दा संकलन। मेरी रचना को पांच लिंको का आनंद में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, यशोदा दी।

    जवाब देंहटाएं
  9. उम्दा लिंकों से सजी लाजवाब प्रस्तुति।
    सभी रचनाकारों को बधाई एव शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं

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