हमारे देश के लिये......
यह वर्ष एक आंदोलन से ही प्रारंभ हुआ।.....
समाप्त भी एक दूसरे आंदोलन से हो रहा है......
वर्ष भर करोना का कहर जारी रहा.......
शायद यह वर्ष मेरी तरह अधिकांश के लिये अच्छा नहीं था......
इस वर्ष मैंने भी अपनी पूजनीय माता जी को खो दिया है......
आने वाला वर्ष सबके लिये अच्छा होगा......
देश व विश्व करोना मुक्त होगा.....
कोरोना काल के 9 महीने
-कुछ धंधे बंद हुए या मंद हुए तो कुछ नए धंधे भी शुरू हुए। रोजगार के नए आयाम
बने ।
-लोगों ने आम तौर पर स्वच्छता के महत्त्व को समझा और अब न केवल हाथ धोने का
प्रचलन बढ़ा, बल्कि बहुत से लोग दिन में दो बार नहाने भी लगे।
-और सबसे महत्त्वपूर्ण बात ये कि अब सब लोगों से मिलने पर हाथ जोड़ कर अभिवादन
करने लगे हैं। यानि अपनी संस्कृति को अपनाने लगे हैं।
बस अब यही आशा और अपेक्षा है कि लोगों में आये ये सुधार आगे भी यूं ही बने
रहें ।
इस आस के साथ पेश है.....आज की हलचल.....
चलते उनके पैर रहे,फिर भी नही थकान
आँखों मे भी नींद नही, रोता एक किसान
इसके पास मोबाइल के सिवा कोई अन्य उपकरण नहीं है। कम्पनी से मिला लैपटॉप है
जिसमें डीवीडी लगाने की सुविधा नहीं है।" होल्ली की सहेली ने कहा।
"अरे! इस ज़माने में कोई टीवी नहीं रखता हो , वो भी खास कर युवा?" रेड्डी
आश्चर्यचकित थे।
"आप चिन्ता नहीं करें सर! रेफ़ल ड्रा से मुझे डीवीडी प्लेयर मिल जाएगा। बच्चा
बने युवा को फिर से युवा हो जाने का एहसास कराने के लिए हार्दिक आभार आपका।"
काजू भुने प्लेट में,व्हिस्की गिलास में ,
जनता के पास एक ही चारा है बगावत,
अदमजी की समूची शख्शियत अनकी कविता के नायक के जीवन की तरह थी. सादा सा
कुर्ता ,मटमैली सी धोती और गले में मफलर ,उन्हें देखकर लगता जैसे कोई किसान
सीधे अपने खेतों से चला आ रहा हो. जैसे भीतर वैसे ही बाहर, एक दम रफ टफ से. वे असली धरती पुत्र थे, लेकिन उनकी आवाज देश की आवाज बन गई थी. शायरी की गूँज देश की सीमा
लांघकर पूरी दुनिया के कानों तक अपनी तरंगे पहुंचाने में कामयाब हो रही थीं. तमाम
शोहरत के बावजूद वे इसका कोई निजी लाभ लेने का मानस कभी नहीं बना पाए. अपने
गाँव ,अपनी मिट्टी ,अपने लोगों के मोह से सदा वे बंधे रहे,यही कारण रहा कि कभी वे समझौ़ता
परस्ती के शिकार नहीं हुए. शायद यही बात थी जो उन्हें ताकत देती थी
अशफाक उल्ला खान इंजीनियर थे। काकोरी की घटना को क्रांतिकारियों ने काफी
चतुराई से अंजाम दिया था। इसके लिए उन्होंने अपने नाम तक बदल लिए। राम प्रसाद
बिस्मिल ने अपने चार अलग-अलग नाम रखे और अशफाक उल्ला ने अपना नाम कुमार जी रख लिया। खजाने को लूटते समय क्रांतिकारियों को ट्रेन में एक जान पहचान वाला रेलवे का
भारतीय कर्मचारी मिल गया। क्रांतिकारी यदि चाहते तो सबूत मिटाने के लिए उसे मार
सकते थे लेकिन उन्होंने किसी की हत्या करना उचित नहीं समझा।
इससे तो यही लगता है कि इन्सान वर्तमान को देखते हुए भी सुधरने के, सुधार करने
के मूड में नहीं है. वह आने वाले कल के लिए इस कदर परेशान है कि अपने आज को
खराब कर रहा है. देखा जाये तो कोरोनाकाल का लॉकडाउन का समय ऐसा था जबकि इन्सान बहुत कुछ सीख सकता था. उसे समझ जाना चाहिए था कि भौतिक संसाधनों का उतना महत्त्व
नहीं
बंसवारी मकड़ी
मेले में आयी।
..........
सभी का कोविड टैस्ट कराया गया.......
यूं तो सभी स्वस्थ हैं.......
न किसी में लक्षण दिख रहे हैं........
महिला व बालविकास के सभी कर्मचारियों का ये टैस्ट.....
पूरे प्रदेश में किया जा रहा है......
आज शाम तक रिपोर्ट आ जाएगी।......
धन्यवाद।
सभी का कोविड टैस्ट कराया गया.......
जवाब देंहटाएंयूं तो सभी स्वस्थ हैं.......
न किसी में लक्षण दिख रहे हैं...
–हर पल मंगलकारी हो... रिपोर्ट जानने की उत्सुकता और प्रतीक्षा है
सस्नेहाशीष व असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार पुत्तर जी
जवाब देंहटाएंउम्दा संकलन
श्रमसाध्य कार्य हेतु साधुवाद
बेहतरीन..
जवाब देंहटाएंआप सभी स्वस्थ रहें
यही मंगलकामना..
सादर..
बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं