।। भोर वंदन ।।
"ये सर्द मौसम, ये शोख लम्हे
फ़िजा में आती हुई सरसता,
खनक-भरी ये हँसी कि जैसे
क्षितिज में चमके हों मेघ सहसा।
कहीं पे सूरज बिलम गया है
कोई तो है, जो है राह रोके,
किसी के चेहरे का ये भरम है
हो जैसे पत्तों में सूर्य अटका..!!"
ओम निश्चल
चलिये बदलते मौसम और मिज़ाज के साथ खुद को महफ़ूज़ रख ..
नज़र डालिये चुनिंदा लिंकों पर..✍️
🌎
इस दिल का सबर हो,
हो नाम चाहे अब गुमनामी में बसर हो
गुज़र जाए हयात जैसे भी गुज़र हो।
क्या चाहिए जो यूँ भटकता फिरता है
किसी सूरत तो इस दिल का सबर हो,
उभरता है, स्मृतियाँ बिखरती हैं
एक दौर था जबकि सुलेख पर बहुत ध्यान दिया जाता था.
अब एक दौर ऐसा आया है जबकि लिखने पर ही बहुत ध्यान नहीं दिया जाता है.
जो पीढ़ी अपने अनुभवों को लेकर आई है वह भी कंप्यूटर की चपेट में आ चुकी है,
अक्सर, इस ऊँचे दरख़्त के नीचे
बैठ कर मैं, उसे क़रीब से
महसूस करना
चाहता
हूँ
उसकी फुसफुसाहट से ज़िन्दगी
का तत्व ज्ञान समझना
चाहता हूँ, उसकी
ऊर्ध्वमुखी
शाखा
मैं कोरोना
कुछ कहूंं..
सुनो न!!
ठुमक ठुमक
और लचक मचक
मैं आऊं...
गजब जुल्म ढाया जा रही है जिंदगी
और खाए जा रहे हैं हम
कितने खा लिए कितने खाने बाकी है
फिर भी नहीं होते ये कम...
।। इति शम ।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️
व्वाहहहहहह..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक..
शुभकामनाएँ..
सादर..
बेहतरीन..
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर..
सराहनीय प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसाधुवाद
बहुत सुंदर भूमिका और सराहनीय सूत्रों से सजी
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति दी।
सादर।
हमारी कविता गजब जुल्म को चयनित करने के लिए शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंउम्मीद है पसन्द आएगी
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर भूमिका के साथ सुंदर संकलन। बधाई!!!
जवाब देंहटाएंआकर्षक प्रस्तावना, सुन्दर संकलन व प्रस्तुति में गुथा हुआ अंक मुग्ध करता है, मुझे स्थान देने हेतु हार्दिक आभार - - नमन सह।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंnice
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