सभी को यथायोग्य प्रणामाशीष
वो लोग जो रह कर
साहिल पर
मझधार की बातें करते हैं
मन मैला ही रहा
अगर तो
उजला तन
अब हम प्रेम की जगह नफरत
सेवा की जगह तिरस्कार
त्याग की जगह अहंकार
सदाचार की जगह दुराचार
दान की जगह व्यापार
संस्कार की जगह विकार
प्रकृति का खेल समझने को,
प्रकृति के नियम निभाना है…….!
इतना सारा सब पास जो है,
हमे और की काहे जरूरत है,
सब सुख है इसमे, पास जो है,
इतना ही ज्ञान जरूरी है..……….!
एक भी आँसू न कर बेकार
व्यर्थ है करना खुशामद रास्तों की,
काम अपने पाँव ही आते सफर में,
वह न ईश्वर के उठाए भी उठेगा -
जो स्वयं गिर जाय अपनी ही नज़र में,
हर लहर का कर प्रणय स्वीकार -
जाने कौन तट के पास पहुँचा जाए!
कैसी अजीब दुनिया इन्सान के लिए
महफूज अब मुकम्मल हैवान के लिए
कातिल जो बेगुनाह सा जीते हैं शहर में
इन्सान कौन चुनता सम्मान के लिए
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पुन: भेंट होगी...
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बेहतरीन प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर नमन..
प्रभावशाली प्रस्तुति ..रुचिकर.बेकार
जवाब देंहटाएंवाह!बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह बहुत बढ़िया एक से बढ़कर एक ।
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