स्नेहिल अभिवादन
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मौसम के बढ़ते तापमान को महसूस किया जा सकता है। तेजी से रंग बदलते हैरान-परेशान करते सियासी दाँव-पेंच आम आदमी की समझ से परे है। फिर भी,लोकतंत्र के इस महापर्व मेंं अपना योगदान करने के लिए सभी उत्सुक है।
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गर्मी के साथ-साथ, सरगर्मी भी तेज़ हो चली
दल-बदलुओं की ज़मात,काँटों की सेज़ हो चली
इस क़दर मची अफरा-तफ़री कुर्सी की होड़ में बैंगन कीमत में कीमा और मुर्गी भी वेज़ हो चली
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तो चलिए आज की रचनाएँ पढ़ते है-
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आदरणीय कालीपद प्रसाद जी
गीतिका
नयन से नीर बहना थम गया है
खुशी में गुनगुनाना चाहता हूँ |
छुपाए जख्म जो दुनिया हमें दी
निशानी को मिटाना चाहता हूँ |
निराली जिंदगी है जान लो यह
सभी को अब हँसाना चाहता हूँ |
आदरणीया प्रतिभा कटियार जी
अभिनय
छुट्टे पैसे के लिए सब्जी वाले से झिक-झिक करने
और सिनेमा देखते वक़्त चुपके से रो लेने
कॉफ़ी की खुशबू में डूबने
और उतरते सूरज के संग मुस्कुराने में
आदरणीय दिलबाग सिंह विर्क जी
उनको भी पता है, मुझको भी ख़बर है
मुहब्बत क्या है, बस एक दर्दे-जिगर है।
ये नज़र मिली थी उनसे मुद्दतों पहले
आज तक उस नशे का मुझ पर असर है।
दिल का चैनो-सकूं लूटकर ले गया जो
उसको हर जगह ढूँढ़ती मेरी नज़र है।
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आदरणीय कैलाश शर्मा जी
बिखरी हुई अशांत लहरें
यद्यपि हो जातीं शांत
समय के साथ,
लेकिन कितना कठिन है
लगाना अनुमान गहराई का
जहाँ देकर गया चोट
वह फेंका हुआ कंकड़ झील में
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आदरणीया नुपूर जी
आदरणीय अनंत विजय जी के ब्लॉग से
चुनाव के वक्त इस तरह की पुस्तकों के प्रकाशन का मकसद लगभग साफ होता है। एक तो पुस्तक की चर्चा हो जाए और जिसको केंद्र में रखकर प्रशंसात्मक या आलोचनात्मक किताब लिखी गई हो उसपर पुस्तक का प्रभाव पड़े। पुस्तक की मार्फत राजनीति का ये ट्रेंड भारत में नया है। अमेरिका में हर चुनाव के पहले राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों को केंद्र में रखकर प्रशंसात्मक और विध्वंसात्मक किताबें आती रही हैं। वहां तो संभावित उम्मीदवारों के निजी प्रसंगों तक पर किताबें लिखने का ट्रेंड रहा है। अब अगर हिंदी के लेखकों ने इस ट्रेंड को अपनाया है तो उनसे पाठकों की एक अपेक्षा यह बन रही है कि ये पुस्तकें भक्तिभाव से ऊपर उठकर वस्तुनिष्ठ होकर लिखी जाए ताकि फौरी तौर पर चर्चित होने के बाद ये किताबें गुमनाम ना हो जाएं।
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आज का यह अंक आप को कैसा लगा?
आप सभी की बहुमूल्य प्रतिक्रियाओं की
प्रतीक्षा रहती है।
हमक़दम के विषय के लिए
कल का अंक पढ़ना न भूले
कल आ रही हैं विभा दी अपनी विशेष
प्रस्तुति के साथ।
शुभ प्रभात...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अग्रालेखन
उत्तम प्रस्तुति..
सादर..
शुभ प्रभात..
जवाब देंहटाएंगर्मी के साथ-साथ, सरगर्मी भी तेज़ हो चली
दल-बदलुओं की ज़मात,काँटों की सेज़ हो चली
इस क़दर मची अफरा-तफ़री कुर्सी की होड़ में बैंगन कीमत में कीमा और मुर्गी भी वेज़ हो चली
बेहतरीन..
सादर..
बहुत बेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंअब कोई भी सियासतदान अपनी पेंच को आम आदमी की समझ से परे समझने की भूल न करे। जनता जागरूक है, भले ही भोली हो। अच्छा संकलन।
जवाब देंहटाएंप्रभावी चिन्तनयुक्त भूमिका और बहुत सुन्दर लिंक्स संयोजन ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंअति सुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सूत्र संकलन...
जवाब देंहटाएंचिन्तनशील भूमिका के साथ शानदार प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंको का संकलन...
जवाब देंहटाएंगर्मी के साथ-साथ, सरगर्मी भी तेज़ हो चली
दल-बदलुओं की ज़मात,काँटों की सेज़ हो चली
इस क़दर मची अफरा-तफ़री कुर्सी की होड़ में बैंगन कीमत में कीमा और मुर्गी भी वेज़ हो चली
वाह!!!
बेहतरीन संकलन। अच्छे पठनीय लिंक्स देने के लिए सादर धन्यवाद।
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