आज लिखना मैं बहुत ही आवश्यक नहीं समझता।
परन्तु भारत में इन जनप्रतिनिधियों की मनमानी देखकर हृदय में
इनके प्रति सम्मान घटता जा रहा है।
नित नये नियम - क़ानून केवल अपनी स्वार्थपूर्ति हेतु, संविधान की मर्यादा को दरकिनार करना, विचारों की अभिव्यक्ति को
कुचलने का षड़यंत्र !
इस अनोखे लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए कहीं से हितकर नहीं।
अतः कुछ न लिखने से बेहतर कुछ लिखना अतिआवश्यक है।
घूमने दो समय का पहिया !
चलने दो हमें भेड़ -चाल !
आशा है एक दिवस अवश्य पहुँच जायेंगे !
उस अँधेरी खाई की तरफ़
आवाज़ लगायेंगे और प्रतिउत्तर में हमारी ही ग़लतियों की
प्रतिध्वनि हमें सुनाई देंगी।
परन्तु अफ़सोस तब हम असमर्थ होंगे !
केवल अंधेरी खाई में गिरना ही हमारा भाग्य होगा।
सादर अभिवादन।
कवि : नितीश कुमार , कक्षा : 7th ,अपनाघर
ऐ खुदा कुछ ऐसा कर,
कि मेरी जिंदगी सुधर जाए |
काश कुछ ऐसा हो,
जिस पर मैं चल सकूं |
आदरणीय "ओंकार"
छूट गया पीछे स्टेशन,
ओझल हो गए परिजन,
जाने-पहचाने मकान,
गली-कूचे, सड़कें,
पेड़,चबूतरे- सब कुछ.
आदरणीय "जयन्ती प्रसाद शर्मा"
शाह झांकते है बगल, हावी रहते चोर।।
बागी-दागी तंत्र को, कर देते कमजोर।
शासन का इन पर नहीं, चल पाता है जोर।।
तुष्टिकरण समाज में, पैदा करता भेद।
आदरणीय "ज्योति खरे"
तुम्हारे खामोश शब्द
समुंदर की लहरों जैसा कांपते रहे
और मैं
प्रेम को बसाने की जिद में
बनाता रहा मिट्टी का घरोंदा
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
वक्त की रफ्तार ने जीना सिखाया,
जिन्दगी ने व्याकरण को है भुलाया,
प्यार-उल्फत के ठिकाने खो गये हैं।
"प्रकृति की कृपा"
विचारों का प्रभाव पड़े !
शुभ प्रभात..
जवाब देंहटाएंघूमने दो समय का पहिया !
चलने दो हमें भेड़ -चाल !
आशा है एक दिवस अवश्य पहुँच जायेंगे !
उस नए बने बागीचे तक..
जहाँ महक होगी जीवन की
होंगी पल्लवित आशाएँ मन की
आशावादी हूँ मैं...तभी तो प्राण है
तन मे
एक अच्छी प्रस्तुति
सादर
आदरणीय ध्रुव जी,
जवाब देंहटाएंसमसामयिक व्यवस्था पर आपकी खिन्नता और खीज भरी अभिव्यक्ति स्वाभाविक है।
सुंदर लिंकों का संयोजन,सभी रचनाएँ अति सराहनीय है।
शुभ प्रभात....
जवाब देंहटाएंसांप हैं...
अमृत की उम्मीद व्यर्थ है...
नेवलों का इन्तजार करिए...
वे आ रहे हैं...
अच्छी प्रस्तुति....
सादर....
बहुत उम्दा संकलन
जवाब देंहटाएंअपने अपने स्वास्थ की चिन्ता में डूबे हैं सनम (लोक) तंत्र बीमार होना ही है । बहुत सुन्दर प्रस्तुति ध्रुव जी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसस्नेहाशीष संग शुभप्रभात
जवाब देंहटाएंसाहित्यकारों का काम है समाज के हालातों को बताना बदलना नेताओं को है नेताओं का गर्दन नापना मतदाता का काम है
मतदाता सजग नहीं हालात बदल नहीं सकते
उम्दा लिंक्स चयन
सही कहा ध्रुव जी ,विचारों की अभिव्यक्ति को कुचलने के षड़यंत्र, इस अनोखे लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिये बिल्कुल हितकर नहीं , उस अंधेरी खायी की तरफ आवाज लगाएंगे और प्रतिउत्तर मे हमे अपनी ही गलतियों की प्रतिध्वनि सुनायी देंगी,अफसोस की तब हम असमर्थ होंगे केवल अंधेरी खायी मैं गिरना ही हमारा भाग्य होगा ।
जवाब देंहटाएंसही मैं ध्रुव जी बिल्कुल सही कहा
बहुत सुन्दर,उम्दा लिंक संकलन......
जवाब देंहटाएंअपनी ही गलतियों की प्रतिवनि सुनाई देगी....
बहुत खूब।
लाजवाब अभिव्यक्ति।
आदरणीय ध्रुव जी,
जवाब देंहटाएंसमसामयिक व्यवस्था पर तंज स्वभाविक है
सटीक और सार्थक प्रस्तुति, सभी रचनाकारों को बधाई।
आभार।
सादर अभिवादन भाई ध्रुव जी
जवाब देंहटाएंहम लिखते है
मीडिया चिल्ला-चिल्ला कर सुनाता है
फिर भी नहीं रेंगती जूँ
सरकार के कान में...
चारा इन्तजार के सिवा कुछ भी नहीं
करिए प्रतीक्षा..
आदर सहित
सहमत आपके विचार प्रवाह से ... वो समय्जल्दी ही आने वाला है अगर नहीं जागे तो ...
जवाब देंहटाएंअच्छा संकलन ...
आदरणीय ध्रुव जी सटीक और सार्थक प्रस्तुति,
जवाब देंहटाएंसुन्दर संकलन. मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंप्रिय ध्रुव -- सार्थक चिंतन से भरी भूमिका सहित बहुत ही सराहनीय है आपका संजोया आज का संकलन | सभी रचनाएँ पढ़ी | बहुत अच्छी लगी | नन्हे कवियों को आधार मंच प्रदान करने कू आपकी कोशिश की सराहना करती हूँ | सस्नेह शुभकामना आपको |
जवाब देंहटाएंविचारणीय भूमिका पर आपको बधाई। जनप्रतिनिधि अब जन भ़म प्रतिनिधि बन गए हैं। राजनीति का उद्देश्य अब समाज कल्याण नहीं खुद का कल्याण हो गया है। सुंदर लिंक्स। चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं। आभार सादर।
जवाब देंहटाएंकविवर दिनकर का कथन यहां मौजू हो उठा है- "राजनीति जब-जब फिसलेगी साहित्य उसे संभाल लेगा"
हटाएंबहुत सुंदर सूत्र संयोजन के लिए साधुवाद
जवाब देंहटाएंमुझे सम्मलित करने का आभार
सभी रचनाकारों को बधाई
सादर