मन तो मेरा भी नहीं है.....
मम्मी जी के लिए दो पंक्तियां....
रचनाएं और रचनाकार कभी भी पुराने नहीं होते हैं
इतिहास बन जाते हैं...फिर उसपर जमी धूल उड़ा कर
लोग अब भी पढ़ते हैं व अनुसरण करते हैं
बातें बहुुत हो गई......चलिए चलें......
धागा... रश्मि शर्मा
धागा,
जो प्रेम का होता है
धागा,
जो मोतियाँ पिरोता है
धागा,
जो फूलों की माला गूँथता है
रस्में जहाँ की कोई कैसे अब निभायेगा....नीतू राठौर
तू रोज-रोज ही कहती पियों न आँखों से
दरिया बनके तू दिल में समाई जाती है।
डूबें है रात से आँखों के तेरे अंजुमन में
ये बातें चाँद-सितारों से छुपाई जाती है।
पल दो पल में.........श्वेता सिन्हा
उम्र वक़्त की किताब थामे प्रश्न पूछती है,
ज़ख्म चुनते ये उम्र कैसे निकल जाती है।
दबी कोई चिंगारी होगी राख़ हुई याद में,
तन्हाई के शरारे में बेचैनियाँ मचल जाती है।
चाँद का दीदार...ऋतु आसूजा
आकाश में तो झिलमिलाते तारों की
बारात थी ,सितारों* का सुंदर संसार
असँख्य सितारे झिलमिला रहे थे।
मानों कोई जशन हो रहा हो....
आराम चाहिए....सुधा देवरानी
आज हर किसी को आराम चाहिए
न हो हाथ मैले,न हो पैर मैले....
ऐसा अब कोई काम चाहिए...
बिन हिले-डुले कुछ नया कर दिखायेंं!!
हाँ! सुर्खियों में अपना अब नाम चाहिए
मुझसे ऐसी उम्मीदे रखते है....जॉन एलिया
अपने किनारों से कह दीजो आंसू तुमको रोते है
अब मैं अपना सोग-नशीं हूँ गंगा जी और जमुना जी
मैं जो बगुला बन कर बिखरा वक्त की पागल आंधी में
ज्यादा मैं तुम्हारी लहर नहीं हूँ गंगा जी और जमुना जी
कूची है तारे....श्वेता सिन्हा
बिन तेरे है
ख़ामोश हर लम्हा
थमा हुआ सा
पुराने अखबार का पन्ना..सड़कों पर उड़ता हुआ मिला
इलाज किसका
होना चाहिये
आज के
विश्व मानसिक
स्वास्थ दिवस के दिन
‘उलूक’ बस यही बात
आज भी नहीं
समझ पा रहा है
....
ताजा अखबार भी आ गया
उसकी एक कतरन....
‘उलूक’
देखता है
समझता है
बस जानवर
जानवर खेल
नहीं पाता है
आदमी हो लेने
के प्रयास में
मायूस हो जाता है
साँप बना आदमी
आदमी को साँपों
की सोच से डराता है ।
आज बस
आदेश की अवहेलना नहीं हुई
पर मनमानी जरूर हुई है...
आज्ञा दें
दिग्विजय ..
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंनमन
सादर
शुभप्रभात आदरणीय सर,
जवाब देंहटाएंआपने सारगर्भित बात कही रचना और रचनाकार कभी पुराने नहीं होते।माँ के लिखी दो पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी।बहुत सुंदर लिंकों का संयोजन मेरी रचनाओं को मान देने के लिए अति आभार आपका।
बहुत उम्दा रचनायें
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन
बहुत सुन्दर हलचल । आभार 'उलूक' के उड़ते पन्नों को सम्मान देने के लिये दिगविजय जी ।
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात जीजू
जवाब देंहटाएंअच्छी रचनाएँ,,,
तुम तो हमें रुलाकर दूर चले गये..
किससे मैं पूछूँ, हमारी ख़ता क्या है..
आदराँजली....
आदर सहित
सादर अभिवादन। आज के इस वैचारिक विविधतापूर्ण संकलन से सजे अंक की प्रस्तुति के लिए आदरणीय दिग्विजय भाई जी को बधाई। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं। आभार सादर।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति के साथ सुन्दर लिंक संकलन....
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद...
सादर आभार...
Digvijay sir...maine aaj hi aapka comment dekha... Aapne meri rachna ko jagah di...uske liye thank you.. N sorry for late response
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन दिग्विजय अग्रवाल जी ,
जवाब देंहटाएंसभी रचनायें स्वयं में विशिष्ट है ,धन्यवाद मेरी रचना को भी आज के पाँच लिंको के आनंद में शामिल करने के लिये।
आदरणीय दिग्विजय साहब बहुत ही तार्किक संकलन ,सुन्दर सन्देश देती हुई। सादर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचनाएँ हैं । सादर धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन हलचल अंक। wahhhhh। सभी रचनाकार एक से बढ़कर एक।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर हलचल। मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत धन्यवाद
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