क्या लोगों ने इसका सही आंकलन किया ?
इसके पीछे खड़े मूल को देखने का सार्थक प्रयास किया ? नहीं !
सभी ने केवल वही देखा जो मीडिया ने दिखाया ,
वही सुना जो मीडिया ने सुनाया।
कई रचनाकारों ने इस पर आधारित माफ़ कीजिएगा ,मीडिया को सत्य का आधार मानकर रचनायें भी रच डालीं।
गुस्ताख़ी के लिए पुनः क्षमा प्रार्थी हूँ।
संभवतः यह उनके मन की आवाज़ रही होगी।
मैं आपको स्मरण कराना चाहूँगा कि मन की आवाज़ सदैव सत्य हो आवश्यक नहीं। कभी -कभी आत्मसंयम भी हमारी सोच को एक नई दिशा प्रदान करती है बाक़ी आपसब स्वयं ही इतने निपुण हैं मुझे कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है।
इसके पीछे क्या कारण हैं और कारक भी ?
इन छात्रों को छात्र न कहकर किसी तथाकथित राजनीतिक पार्टी
का सड़क छाप कार्यकर्ता कहें ज्यादा उचित होगा।
विश्वविद्यालयों के माननीय कुलपति महोदयों की नियुक्ति
वर्तमान सरकार पर निर्भर करती है।
सत्ता में जो राजनीतिक पार्टी विराजमान विश्वविद्यालय उसी का।
अब चुनावी रणभेरी के दौरान विश्वविद्यालय में चुनाव का शंखनाद करने वाले प्यारेमोहनों को उचित-अनुचित कार्य करने से रोकेगा तो
छात्राओं ही नही छात्रों के लिए भी हितकर नहीं !
'काशी हिन्दू विश्वविद्यालय'
में मेरे छात्र जीवन के अनुभव पर आधारित है।"
आप सभी का।
दे दिया होगा
सूरज को महाशाप
नियमित, अनवरत, बेशर्त
जलते रहने का
दूसरों को उजाला देने का,
कही कविता........आदरणीया ''नूपुरम'' जी
माँ को सदा गृहस्थी के
उलटे - सीधे फंदों में
रहीम के दोहे बुनते देखा।
दाल-भात, खीर और फुल्के
रसखान के रस में पगते देखा।
प्यार का मतलब .....चंचलिका शर्मा
आदरणीय "दिग्विजय अग्रवाल" द्वारा संकलित
तुम कहते हो
मैं जिद्दी हूँ
और थोड़ी सी
हूँ मनचली ...
हाँ , मैं हूँ
स्वीकार है मुझे
मैं जिद्दी हूँ
सड़क पर हादसे आपका इंतज़ार करते है .....
आदरणीय "विक्रम प्रताप सिंह सचान''
घर से निकला करो बहुत दुआयेँ लेकर
सड़क पर हादसे आपका इंतज़ार करते है ।
प्रेम पथ........
आदरणीया डा. ''किरन मिश्रा''
और तुमने हस कर कहा था
बिना संकट के कुछ भी सार्थक की प्रति संभव कहां
संभव तभी है
जब मन के पथ में दूसरे की गंध भरी हो
एक ग़ज़ल : छुपाते ही रहे अकसर---
आदरणीय "आनंद पाठक"
ख़िजाँ का है अगर मौसम ,दिल-ए-नादाँ परेशां क्यूँ
सभी मौसम बदलता है ,बदल जायेगा ये मौसम
फोटोग्राफी : पक्षी 28 (Photography : Bird 28 )
आदरणीय राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"
खड़ी लंबी पूंछ आमतौर पर आयोजित की जाती है और पूंछ के पीछे का रंग शाहबलूत जैसा और शरीर का गहरा रंग, इन्हें काला पिद्दा
(पाइड बुशचैट) और ओरिएंटल मैग्पी रोबिन में से
आसानी से पहचाना जा सकता है।
वैज्ञानिक नाम: कॉप्सिकस फॉलिकेटस
फोटोग्राफर: राकेश कुमार श्रीवास्तव
अब आज्ञा दें
धन्यवाद।
"एकलव्य"
आभार आपके
जवाब देंहटाएंवस्तुस्थिति से अवगत करवाया
आभार
शुभ प्रभात
शुभ प्रभात..
जवाब देंहटाएंसही सोच
मीडिया के
दुष्कर्मो को उजागर करता अग्रलेख
आभार
सादर
सुप्रभात।
जवाब देंहटाएंसुंदर सरस रचनाओं से परिपूर्ण अंक प्रस्तुत करने के लिए बधाई ध्रुव जी। बेहतरीन लिंक संकलन से अंक की शोभा निखार पर है। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाऐं।
आज आपकी भूमिका अति भावुकता का परिचय दे रही है। आमतौर पर सभी को अपने शिक्षण संस्थानों के प्रति अगाध श्रद्धा और भावुकतापूर्ण जुड़ाव जीवनभर रहता है। बनारस( काशी) हिन्दू विश्वविद्यालय में 21 सितम्बर 2017 को हुई एक छात्रा के साथ अभद्र घटना और उससे उपजे आंदोलन पर आपने मीडिया से लेकर रचनाकारों तक को नहीं बख़्शा। आपने सत्ताधारी पार्टी ,राजनीति और कुलपति की नियुक्ति पर भी खुलकर बात रखी है। मैं आज यहाँ बात को विस्तार इसलिए भी दे रहा हूँ क्योंकि इस घटना पर एक रचना और लेख मेरे भी प्रकाशित हुए हैं। अतः मैं आहत होकर कोई स्पष्टीकरण नहीं दे रहा हूँ बल्कि आपके गुवार पर चर्चा करना चाहता हूँ। मुझे अच्छा लगा कि आपने खुलकर पूरी आक्रामकता के साथ "गुस्ताख़ी माफ़" लिखते हुए पूरी रचनाकार बिरादरी को कठघरे में खड़ा करते हुए नसीहत दे डाली। लेकिन यहाँ इस बात के लिए आपको सचेत करता हूँ कि किसी एक व्यक्ति की सोच ही सर्वोपरि नहीं हो सकती......अतः संभावना के प्रति हमारा आग्रह विलुप्त न हो।
देश-विदेश से सभी रचनाकार बीएचयू का मुआयना करने के बाद अपनी रचना घटना से जुड़े सामाजिक सरोकारों पर लिख सकें ऐसा संभव नहीं। मीडिया के बताये आधार पर रचना लिखने की बात बचकानी और हास्यास्पद है। हर किसी का अपना दृष्टिकोण है मुद्दों को देखने ,समझने और परखने का उसे सामने आने दीजिये लानत-मलानत, विश्लेषण के लिए हम स्वतंत्र हैं।
राष्ट्रीय मीडिया घटना पर चालाक चुप्पी साधे था क्योंकि उसे तो प्रधानमंत्री के दौरे (22 और 23 सितम्बर 2017 ) से सम्बंधित विज्ञापनों से कमाई करनी थी। मीडिया का अब कोई सामाजिक दायित्व नहीं रहा है। मामला सोशल-मीडिया में आया और जब विकराल हो गया तब 23 सितम्बर( प्रधानमंत्री के लौटने के बाद आंदोलनकारी छात्र -छात्राओं पर लाठीचार्ज़ ) के बाद राष्ट्रीय मीडिया को शर्म आयी।
सच मानिये आपका और हमारा बीएचयू कतई बदनाम नहीं हुआ बल्कि वहां शुचिता ने अब पैर पसार लिए हैं बेटियों के आंदोलन के बाद। बाहरी तत्व बेनक़ाब हो चुके हैं। 5 अक्टूबर 2017 को पुनः एक छात्र ने छात्रा के साथ बदसलूकी की। सुरक्षा गार्ड ने अपना, विश्वविद्यालय प्रशासन ने अपना ,पुलिस ने अपना और छात्रा ने अपना दायित्व निभाया और आरोपी अब सलाख़ों के पीछे है। यही प्रक्रिया 21 सितम्बर 2017 की अभद्र घटना के वक़्त भी अपना ली गयी होती तो बेगुनाह छात्राओं को न लाठी खानी होती , न विश्वविद्यालय का नाम इस तरह उछलता और न ही कुलपति महोदय की भूमिका पर सवाल उठते। लेकिन कुलपति महोदय सत्ताधारी पार्टी से अपनी निकटता की ठसक में थे जिन्हें अंततः जाना ही पड़ा। सीधी-सी बात है अनुशासन के नाम पर स्त्री पर अत्याचार को छुपाने के और असामाजिक तत्वों पर कार्यवाई को लेकर ख़ामोशी के सरकारी प्रयास ग़लत हैं , निंदनीय हैं। पूरा देश ही उबल पड़ा जब लोगों ने जाना कि विश्वविद्यालय की ओर से उस पीड़ित 17 वर्षीया छात्रा से यह कहा गया - "तुम्हें सिर्फ़ छुआ ही तो है" अर्थात चुप रहो...
हम सब ब्लॉग-जगत में माहौल और विचार का निर्माण करते हैं अतः विमर्श का आधार सबका कल्याण और स्वस्थ समाज का निर्माण हो।
मेरे ज़ेहन में भी बीएचयू की सुंदर तस्वीर 2002 से ही है जब एक कॉन्फ्रेंस के दौरान वहां 3 दिन बिताये थे।
आप सभी से क्षमा चाहूँगा विस्तृत टिप्पणी के लिए।
सही व सटीक अनुभव...
जवाब देंहटाएंस्कूल व कालेज को राजनीति का अखाड़ा बनाना..
बड़े शर्म की बात है..
सादर
सही व सटीक अनुभव...
जवाब देंहटाएंस्कूल व कालेज को राजनीति का अखाड़ा बनाना..
बड़े शर्म की बात है..
सादर
उम्दा रचनाएं, बेहतरीन संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई
आदरणीय ध्रुवजी,
जवाब देंहटाएंमै आपकी चिंता से पूरी सहानुभूति रखता हूँ. मै सबसे पहले तो ये बता दूँ कि शिक्षण संस्थानों में किसी भी तरह के पंथ या राजनितिक दुराग्रहों के प्रवेश के सख्त खिलाफ हूँ. इसलिए यदि आपमें से कोई यदि किसी भी तरह का राजनितिक पंथी हो तो इस शैक्षणिक परिसर की बदहाली पर कुछ बोलने से पहले ही माफ़ी मांग लूँगा.मैंने इस प्रकरण पर अपने एक घनिष्ट मित्र जो आई आई टी, बी एच यु में केमिकल इंजिनीयरिंग के वरिष्ठ प्राध्यापक हैं से मौकाए वारदात का हाल लिया. उनके अनुसार गलती विश्वविद्यालय के कुलपति और तथाकथित "पन्थवादी असामाजिक तत्वों " की थी. इस छेड़खानी जैसे गंभीर अपराध पर कुलपति को अविलम्ब छात्राओं से मिलना चाहिए था, अपराधियों के विरुद्ध त्वरित कार्यवाही होनी चाहिए थी और छात्राओं में विश्वास कायम करना चाहिए था.राजनितिक रोटी सेंकने वाले कथित पंथियों ( चाहे वो दाम हो या वाम) से भी अपराधियों की तरह निबटना चाहिए था. इसमें थोड़ी गलती छात्राओं के एक गुट का भी सुनने को मिला है. अब भला उन आधे दर्ज़न मरे मरीजों की ज़िन्दगी वापस कौन लायेगा जो इन छद्म बुद्धिजीवियों द्वारा मुख्य द्वार जाम कर दिए जाने से बीएचयु के अस्पताल नहीं पहुँच पाए. रही बात कुलपतियों के पदस्थापन में राजनितिक आकाओं की दादागिरी, तो सदियों की इस सड़ी परंपरा( और ये बात केवल बीएचयु के साथ ही नहीं है)में सुधार के आसार तो कम ही दिख रहे हैं. फिलहाल अपने महान दार्शनिक राष्ट्रपति राधाकृष्णन की उन बातों में खोकर थोड़ा सुख का अनुभव कर लेता हूँ. राष्ट्रपति पद से अवकाश ग्रहण करने पर उनसे पूछा गया कि सर्वोच्च पद का सुख ले चुकने के बाद अब और किस पद को चाहेंगे. उन्होंने छूटते ही कहा ' बीएचयु के कुलपति पद का गौरव'. और अब हम कहाँ आ गये!
सटीक। आज की प्रस्तुति के लिये साधुवाद ध्रुव जी को । कब्र का हाल मुर्दे से पूछिये। जितना लिखा गया है वो वास्तविकता का मात्र 10 प्रतिशत है। हमारी शिक्षण संस्थाओं में क्या हो रहा है किसी को मतलब कहाँ हैं। भ्रष्टाचार के लिये अन्य सेवाओं के लोगों को निशाने पर लिया जाता रहा है पर शिक्षण संस्थाओं में चल रहे भ्रष्टाचारों और भ्रष्टाचारी शिक्षकों की बल्लै बल्लै है। मैं खुद जितना लिखता हूँ उसके केंद्र में ज्यादातर यही विषय और इससे जुड़े विषय रहते हैं । रवींद्र जी और विश्वमोहन जी ने भी सटीक आंकलन किया है।
जवाब देंहटाएंब्लैक होल बन रहा है सब कुछ समा जायेगा
देखने वाला भी कोई कहीं भी नहीं रह जायेगा।
ध्रुव भाई को इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही ध्रुव सिंह जी ,गड़बड़ी तो नींव में ही है
जवाब देंहटाएंनींव सही न हो तो हलचल होना स्वभाविक है।
विचरोत्तेजक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही...सत्य कहा आपने....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं'गड़बड़ी तो नींव में ही है'
जवाब देंहटाएंसबसे पहले तो आदरणीय ध्रुव जी को इस शीर्षपंक्ति के लिए बहुत बहुत साधुवाद । शिक्षणसंस्थान सचमुच देश की नींव हैं और वहाँ का आदर्श माहौल, वहाँ से मिले सुसंस्कार और वहाँ से मिला भावनात्मक आधार व्यक्ति के चरित्र की इमारत को जीवनभर मजबूती से सँभाले रहता है । इसके विपरीत होने पर इमारत खड़ी होने से पहले ही ढह जाती है । बीएचयू तो बहुत अधिक सम्मानजनक स्थान रखता है हर भारतीय के हृदय में,चाहे वह वहाँ का विद्यार्थी रहा हो या नहीं । इस प्रकार के कारनामों से शिक्षणसंस्थानों की साख गिरती है,शिक्षकों एवं शिक्षणक्षेत्र से जुड़े लोगों की साख गिरती है । आने वाली पीढ़ी नैतिक आधार के लिए किसकी ओर हाथ बढ़ाए ? किसे आदर्श माने? केवल विश्वविद्यालय ही नहीं, स्कूल भी राजनैतिक भ्रष्टाचार से अछूते नहीं हैं । सही कहा है आपने...
गड़बड़ी तो नींव में ही है।
इस विषय पर आदरणीय रवींद्रजी और आदरणीय विश्वमोहनजी की विस्तृत टिप्पणियाँ भी जागरूकता को विस्तार देती हैं । विषय पर अपनी प्रतिक्रियाओं से हमारा ज्ञानवर्धन करने हेतु आप तीनों का सादर विशेष आभार ।
सुंदर रचनाओं से सजा हलचल का अंक ! सभी रचनाएँ पढ़ीं । सभी बेहतरीन हैं । बधाई एवं सादर धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर उम्दा लिंक संकलन....
जवाब देंहटाएंनींव में गड़बड़ी होगी तो इमारत ढहेगी ही...सटीक...
सभी महानुभवियों के विचार विमर्श ज्ञानवर्धक.....
सादर आभार....
आदरणीय ध्रुवजी मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद । सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएं