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बुधवार, 18 जुलाई 2018

1097..पथ न भूले एक पग भी ....

।।उषा स्वस्ति।।
आज की सुबह आगाज़ करती  हूँ प्रस्तुत विचारपूर्ण उक्तियों से..

"नाश भी हूँ मैं अनंत विकास का क्रम भी
त्याग का दिन भी चरम आसक्ति का तम भी,
तार भी आघात भी झंकार की गति भी,
पात्र भी,मधु भी,मधुप भी,मधुर विस्मृति भी
अधर भी हूँ और स्मित की चाँदनी भी हूँ"
महादेवी वर्मा
इसी के साथ प्रथम लिंक  पर गौर फरमाएं ब्लॉग मेरी धरोहर से..✍

सिंधु का उच्छवास घन है 
तड़ित तम का विकल मन है 
भीति क्या नभ है व्यथा का 
आँसुओं में सिक्त अंचल 
स्वर अकम्पित कर दिशाएँ 
मोड़ सब भू की शिराएँ 
गा रहे आँधी प्रलय 
दूसरी प्रस्तुति के अंतर्गत है ब्लॉग ज्ञानवाणी से..


क्या आपको याद है कि अपने बचपन में विवाह, सगाई, बच्चे के जन्म, जड़ूला आदि पर होने वाले जीमन में नीचे बैठकर पंक्ति में खाना होता था .अभी भी कई स्थानों पर, अवसरों पर ऐसा जीमन होता है . ..


तीसरी प्रस्तुति में बहुत खूबसूरत रचना आदरणीया मीणा गुलियानी जी।


बहुत दूर है तुम्हारे घर से
हमारे घर का ये किनारा
पर हम हवा से पूछ लेते हैं
क्या हाल है अब तुम्हारा

यूँ तो आती जाती बदली
तुम्हारी राह पे जब कौंधती है
हम चौंक उठते हैं देखकर
छुपा है इसमें तुम्हारा इशारा



अब आनंद ले ब्लॉग गल थेथरई से जेएनयू ..

'अभिव्यक्ति के सारे खतरे उठाते हुए
( मुक्तिबोध, अँधेरे में)', अपनी लफ्फाजी के इस फुलौने को फूंकने के पहले 'मंगलाचरण' के अंदाज़ में मैं सुन्दरकाण्ड की एक चौपाई और एक दोहे का स्मरण करना चाहूँगा जिसका सम्बन्ध विभीषण रावण संवाद से है. दोहे से तुलसीदास ने संवाद का श्री गणेश किया है ..




कुछ दराज़ों में डाल रक्खी हैं ...


चूड़ियाँ कुछ तो लाल रक्खी हैं
जाने क्यों कर संभाल रक्खी हैं

जिन किताबों में फूल थे सूखे
शेल्फ से वो निकाल रक्खी हैं 
आदरणीय दिग्म्बर नासवा जी के खूबसूरत गज़ल

हम-क़दम के अट्ठाइसवें क़दम
का विषय...
...........यहाँ देखिए...........


से आज की बातें यहीं तक कल यहीं पर नई  लिंकों के साथ

।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह...✍

14 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात सखी
    एक शानदार प्रभात
    एक शानदार प्रस्तुति
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह!!बहुत खूबसूरत प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  3. आदरणीय महादेवी जी की क़लम को नमन है ..
    अच्छे सूत्र का संकलन ... आभार मेरी ग़ज़ल को जगह देने के लिए ...

    जवाब देंहटाएं
  4. कालजयी कवियित्री की पंक्तियों से आज के अंक की सुशोभित भूमिका और बेहद उम्दा पठनीय सामग्री से आज की प्रस्तुति विशेष बन गयी है पम्मी जी।
    बहुत बधाई इस सुंदर संयोजन के लिए।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह वाह वाह ...कालजई कवियत्री महादेवी जी का काव्य उनके जैसा ही अनुपम ...धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  7. तार भी आघात भी झंकार की गति भी,
    पात्र भी,मधु भी,मधुप भी,मधुर विस्मृति भी....... वाह! बहुत मोहक भूमिका!!बहुत बधाई और आभार आज के हलचल की झंकार की इस गति की ! मधु भी, मधुप भी!!!

    जवाब देंहटाएं
  8. मैं नीर भरी दुख की बदली
    विस्तृत नभ का कोई कोना की रचयिता महादेवी वर्मा
    का रचना संसार अद्भुत है। सादर नमन।
    आज का संकलन बेहतरीन है आदरणीया पम्मी जी
    इसके लिए आपका धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  9. बेमिसाल प्रस्तुति स्वयं आधुनिक मीरा बाई का आगाज है नमन उनको सश्रृद्धा ।
    सुंंदर संकलन सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  10. महान कवियत्री महादेवी वर्मा जी की मर्मस्पर्शी पंक्तियों के साथ आदरणीया

    पम्मी जी ने आज की

    शानदार प्रस्तुति का आग़ाज़ किया है। चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाऐं।


    जवाब देंहटाएं

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