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रविवार, 20 जून 2021

3065..मजबूत थे मेरे पिता, फिर उन्हें सख़्त किसने कहा

सादर नमन
**

पिता किसी बच्चे के जीवन में
सूरज की तरह होते हैं जो भोर की 
कोमल किरणों की तरह 
स्नेह से माथा चूमकर हाथ पकड़कर जीवन के कोलाहल से परिचित करवाते हैं। 
दोपहर की तीक्ष्ण धूप की तरह हर 
परिस्थिति में कर्मपथ पर 
तपकर कठोर बनकर जुझारू और संघर्षरत रहना सिखलाते हैं और शाम होते ही 
दिन-भर इकट्ठा किये गये सुख की शीतल छाँव में छोड़कर पथप्रदर्शक सितारा बन जाते हैं। 
समुंदर की तरह विशाल हृदय पिता जीवनभर सुख-दुःख की लहरों को बाँधते हैं लय में, 
रेत बनी अपनी आकांक्षाओं को छूकर बार-बार लौट जाते हैं अपनी सीमाओं में, 
अपने सीने की गहराइयों में ज़ज़्ब कर खारापन पोषते हैं अनमोल रत्न।

सागर-सा मुझको लगे, पिता आपका प्यार।
ऊपर बेशक खार सा, अंदर रतन हजार॥
**
विशाल वृक्ष
जैसे देता है छाया
पिता ही तो हैं ।
**
विशाल वृक्ष
जैसे देता है छाया
पिता ही तो हैं ।


**
वो पिता हैं, जिन्हें बच्चे तब समझते हैं
जब वे स्वयं अभिभावक बन जाते हैं
**

बहुत याद आता है
अल्हड़पन में लिपटा बचपन
बे-फ़िक्री का आलम
और मासूम लड़कपन
निकलता था
जब गाँव की गलियों से
बैठकर पिता जी के कन्धों पर


***
पिता से ही सारा जहाँ है,
पिता से ही सारे सपने हैं।
पिता से ही यह जीवन है,
पिता से ही सारे रिश्ते अपने हैं।
पिता नहीं है तो कुछ नहीं लगता अपना,
***


हमारे समाज और संस्कृति को आज बेहद जरूरत है. स्वच्छ वातावरण व 
मानसिक विकास दोनों एक दूसरे के साथ गहनता से जुड़े हुए विषय हैं. .

**
पिता क्या है...?
ये एक ऐसा प्रश्न है
जिसका जवाब शायद है मेरे पास
पर मैं समझा नही पाऊँगा क्यों कि
मेरे तरकश में शब्दों के इतने तीर नही है।
**

अब तुम्हारा ये कहना कि
"कभी मेरे बारे में भी सोचिए जरा !!!"
या फिर ये उलाहना कि
"आप मेरे लिए अब तक किए ही क्या !?"
बिल्कुल सच कह रहे हो तुम
इसमें भला झूठ है क्या !!!!
बेटा ! प्यार कर ही पाया कहाँ
मैं तुम्हारा एक पापा जो ठहरा ...

**
जेब खाली हो फिर भी मना
करते नहीं देखा
मैंनें पापा से अमीर इंसान
कभी नहीं देखा
**

वो थे हम पर इतराने वाले ,
प्यार से सर सहलाने वाले ;
उठाप्यार से सर सहलाने वाले ; 
है जब से उनका साया
किसी को हम पर  नाज़ नहीं है
कल थे पिता पर आज नहीं है -
माँ का अब वो राज नहीं है!!! 

**
ये जो मुस्कान लिए बैठे हैं
पिताजी की पहचान लिए बैठे हैं...
**

अपने
पिताजी भी
जब याद आते हैं
तो कुछ ऐसे जैसे
ही याद आते हैं

बहुत छोटे छोटे
कदमों के साथ
मजबूत जमीन
ढूँढ कर उसमें
ही रखना पाँव

दौड़ते हुऐ
कभी
नहीं दिखे
हमेशा चलते
हुऐ ही मिले

**
पापा भी ना
दिल अपने पास और धड़कने..
मेरे होठों की मुस्कान रखते हैं
**
....
और अंत में सभी को शुभकामनाएं
सादर...

26 टिप्‍पणियां:

  1. सर्वप्रथम सुबह-सुबह का रविवारीय नमन संग आभार आपका .. आज इस मंच पर अपनी प्रस्तुति में मेरी एक रचना/विचार को शामिल करने के लिए।
    मन को छू जाने वाली अर्थपूर्ण बातों से सजी भूमिका के साथ, संसार भर के पिताओं को समर्पित रचनाओं के संकलन से सजी आपकी आज की प्रस्तुति के लिए पुनः आभार आपका ...

    जवाब देंहटाएं
  2. नमस्कार,
    आदरणीय सुशील कुमार जोशी जी की रचना की हैडिंग के साथ कि "पिताजी आइये आपको याद करते है आज आप का ही दिन है" सभी को पितृ दिवस की हार्दिक बधाइयाँ.
    पिता के विषय में भी प्रकृति के विषय वाले ब्लॉग का लिंक भी फिट बिठाया है ये मेरे लिए सम्मान की बात है. आपका बहुत बहुत आभार प्रिय बहना.
    ये स्नेह बना रहे.

    जवाब देंहटाएं
  3. आभार..
    अशेष शुभकामनाएँ
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  4. दुनियांभर के समस्त पिताओ को पितृ दिवस की शुभकामनाएं। आभार यशोदा जी बकवास-ए-उलूक को जगह देने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  5. प्रिय यशोदा ,
    आज की प्रस्तुति बेहद खास बनाई है । शीर्ष पंक्तियाँ मन को छू रही हैं
    सागर-सा मुझको लगे, पिता आपका प्यार।
    ऊपर बेशक खार सा, अंदर रतन हजार॥
    **
    अब तो बस इस प्यार का एहसास ही बाकी है ।
    बीच बीच में पिता के लिए कही गयीं पंक्तियाँ मन मोह रही हैं ।
    सभी रचनाएँ बहुत खास हैं । सुबोध जी की और सुशील जी की रचनाओं ने अत्यंत प्रभावित किया । रेणु की रचना ने पिता की स्मृतियाँ ताज़ी कर दीं ।
    इस विशेष प्रस्तुति में शामिल करने के लिए शुक्रिया ।

    जवाब देंहटाएं
  6. आभार दीदी
    अशेष शुभकामनाएँ
    सादर नमन...

    जवाब देंहटाएं
  7. पिता को समर्पित एक से बढ़कर एक रचनायें
    बेहद सुंदर संकलन

    जवाब देंहटाएं
  8. सुंदर अंक। माता पिता पर कुछ लिखने से पहले ही मेरी आँखें भर आती हैं। हमेशा यही लगता है कि मैं उनके लिए बहुत कम कर पाई। पिता हो या माँ, उनके दिवस मत मनाइए, उनको मनाइए। उनको खुश रखिए। ईश्वर आपसे खुश रहेगा। मेरा तो यही अनुभव है। सुंदर रचनाएँ साझा करने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  9. पितृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ।।।।।
    पिता को समर्पित इस अंक हेतु मंच से जुड़े सभी गुणीजनों को नमन। ।।।

    जवाब देंहटाएं
  10. प्रिय दीदी, पितृ दिवस की अनूठी प्रस्तुति में भावपूर्ण ह्रदय स्पर्शी रचनाओं का संगम बहुत सराहनीय है। उलूक दर्शन में भावों से भरी प्रस्तुति मन को छू गई। पितृ सत्ता पर सुशील जी का चिंतन भी उलूक दर्शन की तरह अनूठा है। सुबोध जी की रचना एक पिता के भीतर ढके लिपटे  ज़ज्बातों को  बड़ी बेबाकी से बयान करती है तो पितृ सत्ता के सभी रंगों के साथ अनमोल सद्भावना समेटे  संगीता दीदी के हाइकु मन को स्पर्श का गए |सच कहूं तो सुबह लिखना चाहती थी पर समय ना मिल सका |ब्लॉग जगत से जुड़ने के बाद कितनी रचनाएं पिता पर ऐसी पढ़ी  जो कही भूलती नहीं |जिनमें अनु लान्गुरी की रचना जो एक खुशमिजाज़  पिताके अंतिम आठ सालों की विवशता का  जीवंतलेखा जोखा है ,  मुझे हमेशा याद रहती है |
     एक अदना-सी मेरी तस्वीर.....
    !!!https://anitalaguri38.blogspot.com/2017/12/blog-post_83.html
      तो जिज्ञासा जी के ब्लॉग पर बिना माँ के बच्चों को पालने वाले पिता के प्रति  सुंदर भावांजली है   
    मां की परछाईं (मेरे पिता जी)
    https://jigyasakijigyasa.blogspot.com/2020/10/blog-post_6.html

    इन सबके साथ आदरणीय विश्वमोहन जी रचना ,जो मध्यमवर्गीय  संघर्षशील पिता का मर्मस्पर्शी काव्य चित्र  है , जिन्होंने कम साधनों में भी ,अपनी संतान को सफलता के शिखर तक पहुँचाने के लिए , तन और मन से अपना अतुलनीय योगदान दिया है |
    बाबूजी --
    https://vishwamohanuwaach.blogspot.com/2016/07/blog-post_41.html
    इसके साथ सभी लोग अच्छे से अच्छा लिख रहे हैं | आज के सभी स्टार रचनाकारों को बधाई और शुभकामनाएं| समस्त पितृ सत्ता की सादर नमन | पांच लिंकों की ये महफ़िल यूँ ही सजी रहे |

    जवाब देंहटाएं
  11. आदरणीय दीदी,सादर प्रणाम !
    सारी रचनायें एक से बढ़कर एक, बहुत आभार आपका एक सुंदर,सजीव अंक सजाने के लिए।आपको मेरा सादर नमन।

    जवाब देंहटाएं
  12. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  13. लिखना भूल गई। अनुज रोहित के नए ब्लॉग का हार्दिक स्वागत है। आपकी खोजी नजरें उसे भी ढूंढ लाई ये कम अचरज की बात नहीं। रोहित को नए ब्लॉग की ढेरों बधाइयां और शुभकामनाएं।

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  14. प्रिय सखी रेणु जी,आपकी विशेष और विवेचनापूर्ण टिप्पणियाँ आपकी पारखी नज़र की परिचायक हैं,बड़ा ही संतोष और हर्ष मिलता है,जब आप मेरी शुरू के पोस्ट से मेरी बहुत अज़ीज़ रचना पटल पर रख देती हैं, शायद अब तक उस पर किसी की नज़र नहीं पड़ी ।बहुत आभार आपका।

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  15. आप सभी को हृदय से आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं

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