भारतीय साहित्य के आँचलिक चित्रकार फणीश्वर नाथ रेणु जी का यह जन्म शताब्दी वर्ष है।
उनके प्रसिद्ध उपन्यास 'मैला आँचल' की कुछ अंतिम पंक्तियों को देखें।
कितना सच उतरता है आज के मातमी माहौल पर भी!
सच में, साहित्यकार युग-द्रष्टा होता है।
.........
"लेबोरेटरी! .......
विशाल प्रयोगशाला। ऊँची चहारदीवारी में बंद प्रयोगशाला।........
साम्राज्य-लोभी शासकों की संगीनों के साये में वैज्ञानिकों के दल खोज कर रहे हैं,
प्रयोग कर रहे हैं। .........
गंजी खोपड़ियों पर लाल-हरी रोशनी पड़ रही है। ..........
मारात्मक, विध्वंसक और सर्वनाशा शक्तियों के सम्मिश्रण से एक ऐसे बम की रचना हो रही है
जो सारी पृथ्वी को हवा के रूप में परिणत कर देगा .......
ऐटम ब्रेक कर रहा है मकड़ी के ........जाल की तरह!
चारों ओर एक महा-अंधकार! सब वाष्प! प्रकृति-पुरुष ........
अंड-पिंड! मिट्टी और मनुष्य के शुभचिंतकों की छोटी-सी टोली अँधेरे में टटोल रही है।
अँधेरे में वे आपस में टकराते हैं।
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दिवि सूर्यसहस्त्र ...."
साभार आदरणीय विश्वमोहन कुमार
सादर नमस्कार
भाई कुलदीप जी आज नहीं हैं
सह लीजिए आज हमें
आज की रचनाएँ....
सोच - विचारों की शक्ति जब कुछ उथल -पुथल सा करती हो उन भावों को गढ़ कर मैं अपनी बात सुना जाऊँ जो दिखता है आस - पास मन उससे उद्वेलित होता है
उन भावों को साक्ष्य रूप दे मैं कविता सी कह जाऊं.
सडकों के सन्नाटे में ये
हादसे क्यूँ कर हो रहे हैं ?
प्रगति के साथ - साथ ये
इंसानियत के जनाजे
क्यूँ निकल रहे हैं ?
.......
यह अनंत सृष्टि एक रहस्य का आवरण ओढ़े हुए है,
काव्य में यह शक्ति है कि उस रहस्य को उजागर करे या
उसे और भी घना कर दे! लिखना मेरे लिये
सत्य के निकट आने का प्रयास है.
बाहर ही बाहर यदि मन को लगाया
तो पीड़ा और संताप दिखेगा
अंतर गुहा में पल भर बिठाया
तो श्रद्धा का फूल स्वयं खिलेगा
......
जबकि नहीं है यह समय
स्थगित रहने का
क्योंकि
विश्वास, प्रेम, सुकून
सब कुछ तो है स्थगित।
......
बंजारा घर में बंधकर नही रह सकता
भाई सुबोध जी अभी-अभी कौरेन्टाईन से उठे हैं
निकल लिए सैर के लिए..
अनवरत
हैं तर तेरी
यादों की
तरलता से
सोचें
हमारी ..
........................
खुश रह कर दूसरों को भी सदा खुश रखने का
कुछ असंभव सा कार्य करते हुए
खुशी पाने की भरसक कोशिश करता रहता हूं।
आस-पास कोई गमगीन ना रहे यही कामना रहती है। ...शर्मा गगन
भगवान श्रीकृष्ण जब गांधारी के सामने पहुंचे, तो गांधारी का अपने क्रोध पर वश नहीं रहा !
बिना कुछ सोचे-समझे उन्होंने श्रीकृष्ण को श्राप दे डाला !
“अगर मैंने प्रभु की सच्चे मन से पूजा तथा निस्वार्थ भाव से अपने पति की सेवा की है,
तो जैसे मेरे सामने मेरे कुल का हश्र हुआ है, उसी तरह तुम्हारे वंश का भी नाश हो जाएगा !''
सब सुन कर भी कृष्ण शांत रहे ! फिर बड़ी ही विनम्रता से बोले, मैं आपके दुःख को समझता हूँ !
यदि मेरे वंश के नाश से आपको शांति मिलती है, तो ऐसा ही होगा !
पर आपने व्यर्थ मुझे श्राप दे कर अपना तपोबल नष्ट किया !
विधि के विधानानुसार ऐसा होना तो पहले से ही निश्चित था ! तब कुछ क्रोध शांत होने पर गांधारी को भी पछतावा हुआ और
श्री कृष्ण से उन्होंने क्षमा याचना की ! पर जो होना था वह तो हो ही चुका था !
......
आज्ञा दें
दिग्विजय
बहुत सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंआभार...
सादर...
वाह! बहुत सुंदर अंक।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ अनुपम,सुंदर एवं संदेशपूर्ण।
मंच पर उपस्थित सभी आदरणीयजनों को सादर प्रणाम 🙏
दिग्विजय जी ,
जवाब देंहटाएंआज तो आपने अचंभित ही कर दिया ।
ये पंक्तियाँ पढ़ते हुए लगा कि ये तो मेरी लिखी हैं ---यानि पूरा परिचय ही छाप दिया ।
सोच - विचारों की शक्ति जब
कुछ उथल -पुथल सा करती हो
उन भावों को गढ़ कर मैं
अपनी बात सुना जाऊँ
जो दिखता है आस - पास
मन उससे उद्वेलित होता है
उन भावों को साक्ष्य रूप दे
मैं कविता सी कह जाऊं.
इतने सोचती कुछ एक और आश्चर्य सामने आ गया जिसे बहुत कम लोगों ने पढ़ा आप उसे ढूँढ़ लाये ।
आभारी हूँ । बाकी लिंक्स अभी पढ़ती हूँ । इस आश्चर्य के सदमे से बाहर तो आऊँ । 😄😄😄😄😄
गड़े मुर्दा उखाड़ने वाले मेरे सबकुछ
हटाएंपेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं..
कभी-कभी ही आते हैं..
आभार दीदी..
सादर नमन..
😄😄😄😄
हटाएंआभार,
हटाएंगड़ा-मुर्दा (छुपाए हुए कागजात)
देवी जी भी एम.काम.,एल.एलबी.,है
लिखने में वकीलगिरी दिखा गई
सादर वन्दे..
सर्वप्रथम, नमन संग आभार आपका, अपने मंच तक मेरी सोच/रचना को लाने के लिए ... साथ ही अपनी आज की भूमिका में वर्तमान के बहाने फणीश्वर नाथ रेणु जी और 'मैला आँचल' को याद करने के लिए धन्यवाद ...
जवाब देंहटाएंसार्थक भूमिका और नए अन्दाज़ में रचनाओं को प्रस्तुत करने का अनुपम प्रयोग, बहुत बहुत बधाई और आभार!
जवाब देंहटाएंसम्मिलित कर मान देने हेतु हार्दिक आभार ! स्नेह बना रहे
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
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बहित सुंदर लिंक संयोजन।
जवाब देंहटाएंशुभ संध्या..
जवाब देंहटाएंसभी को आभार..
सादर वन्दे...
दिग्विजय अग्रवाल जी, आभारी हूं कि आपने मेरी कविता को "पांच लिंकों का आनन्द" में स्थान दिया। हार्दिक धन्यवाद 🙏
जवाब देंहटाएंआपके द्वारा संजोए गए सभी लिंक्स अत्यंत रुचिकर हैं। आपके श्रम को साधुवाद 🙏
जवाब देंहटाएं