आज हम नहींं
कहेगी तो कलम ही
मुझको मेरी कलम का अधीन लिख दिया,
भावना का मेरा सारा सीन लिख दिया,
मेरी और इस कलम की ऐसी दोस्ती है कि,
मैंने लिखा कोरोना इसने चीन लिख दिया,
कहने-सुनने के लिए रचनाएँ हैं न
तारे नभ के लाऊँ
तेरे लिए गोर गजधन
एक ताज बनवाऊँ
लेकर हाथ फूल की अवली
आगे पीछे डोलूँ ।।
एक दुआ ....सदा
पावन सी एक दुआ
तेरे हक में
कच्चे सूत की
पक्के रँग वाली बाँध दी है
उम्मीद की गठानें मारकर!
हँसना ज़रूरी है ...ओंकार केडिया
हँसो कि हँसना ज़रूरी है.
बाहर नहीं, तो अन्दर ही सही,
खुले में नहीं,तो बंद कमरे में सही,
कहीं भी सही,पर हँसना ज़रूरी है.
घिन्दुड़ी ....विकास नैनवाल
छोड़कर पीछे
सूना आँगन
और एक मौन
जो खड़ा रहता है
हँसी टठ्ठों के बीच और
ताकता रहता है मुझे
उलूक टाईम्स से
अखबार
रोज का रोज
सबेरे
दरवाजे पर
टंका मिलेगा
खबरें
छपवाने वालों
की ही छपेंगी
साल भर
की समीक्षा
की किताब के
हर पन्ने पर
वही चिपकी हुई
नजर आयेंगी
हर साल
इसी तरह
दिसम्बर की
विदाई की जायेगी ।।
.....
बस
कल फिर
सादर
सस्नेहाशीष असीम शुभकामनाओं के संग छोटी बहना
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्स चयन
आभार यशोदा जी।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स. मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंवाह ! क्या जादू है आपकी कलम में जो कोरोना को चीन लिख दिया । बहुत बढ़िया ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन लिंक्स एवम प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआज का अंक बहुत प्रभावशाली रहा ।
जवाब देंहटाएंसभी लिंक सुंदर।
सभी रचनाकारों को बधाई।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।