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शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020

1988 ..ओस भी तो एक सच्चाई है यह बात अलग है कि ओस क्षणिक है

शुक्रवारीय अंक में आप सभी का 
स्नेहिल अभिवादन
-–---



जिंगल बेल,जिंगल बेल




आज कवि अटलबिहारी वाजपेयी
का जन्मदिन है।
पढ़िये उनकी रचना
हरी-हरी दूब पर
सूर्य एक सत्य है
जिसे झुठलाया नहीं जा सकता
मगर ओस भी तो एक सच्चाई है
यह बात अलग है कि ओस क्षणिक है
क्यों न मैं क्षण क्षण को जिऊँ?
कण-कण मेँ बिखरे सौन्दर्य को पिऊँ?

-------/////-------

आइये अब आज की रचनाओं का आनंद लें-


 बिना प्रयास अब न होगा प्रभात

हे रणभूमि में मौन खड़े 
कविवर क्यों रण से विमुख हुए?
जब लूटे दिनकर को व्यभिचार 
निकालो तुम भी तरकश से बाण,
और जला लो क्रांति की मशाल 
बिन प्रयास न होगा अब प्रभात।


सफलता की सीढ़ी 
स्वर्ग की सीढ़ी 
फ़ायर ब्रिगेड की सीढ़ी 
बिजली विभाग की सीढ़ी
पर्वतारोहियों की सीढ़ी 
सैनिकों की सीढ़ी 
बाढ़ में बने सैनिक सीढ़ी
हवाई जहाज़ की सीढ़ी 
हेलीकॉप्टर से लटकती सीढ़ी
चोरों -आतंकवादियों की सीढ़ी


ये कायनात इश्क़ में डूबी हुई मिली


बिखरा जो काँच काँच तेरा अक्स छा गया ,  
तस्वीर अपने हाथ जो टूटी हुई मिली.
 
कितने दिनों के बाद लगा लौटना है अब ,
बुग्नी में ज़िन्दगी जो खनकती हुई मिली.
 
सुनसान खूँटियों पे था कब्ज़ा कमीज़ का,
छज्जे पे तेरी शाल लटकती हुई मिली.


शंख चटखे 


रोज़ सूरज 
घूमता है सिर झुकाए
बंद मुट्ठी में 
उजाले को दबाए
टूटता है एक तारा
फूंकने को सिर्फ़
अपना ही बसेरा।


छिन्न-संशय



फिर क्या हिंसा का प्रत्युत्तर
प्रतिहिंसा के अग्नि-दहन में,
लाशों की अगणित बोटियाँ,
जब बिखर जाएँ धरा - गगन में?
तभी शूरता नियत करती रही है
मुकुट-मणि स्थान जन-जन में?
तभी नर-पुंगव पूजित हुआ है,
उच्च सिंहासन अवस्थित इस भुवन में?




भय लगता है

जीवन भर का दण्ड
पग पग चलना भी कठिन हो जाये
दयाभाव से भरे लोगों के नयन
व्यंग्य करें और स्वयं से सहे न जाएँ
तब लोकेशनाओं का विशाल वृक्ष
विषैली दग्ध छाँव बरसाता
प्रेम के अंकुर रिश्तों की दूब को दहता
दम्भ के ज्वालामुखी का लावा
जीवन के पल पल पर छा जाता
तो भय लगता है


बुरे काम का बुरा नतीजा

बच्चों वो दर्जी बहुत ही दयालू भी था ! एक हाथी से उस की बड़ी पक्की दोस्ती थी ! गाँव के पास ही एक नदी बहती थी ! वह हाथी रोज़ उस नदी में नहाने के लिए जाता था ! रास्ते में उसके दोस्त दर्जी की दूकान पड़ा करती थी ! जैसे ही हाथी उसकी दूकान के सामने आता अपनी सूँड उठा कर दर्जी को सलाम करता और दर्जी रोज़ उसकी सूँड को हाथों से सहला कर उसे केले खाने के लिए देता ! हाथी नदी से नहा कर लौटता तो फिर से दर्जी को सलाम करने के लिए उसकी दूकान के सामने थोड़ी देर के लिए रुकता और फिर अपनी राह चला जाता ! आसपास के दुकानदार भी दर्जी और हाथी की इस प्यार भरी दोस्ती के बारे में जानते थे ! उनके लिए यह रोज़ की दिनचर्या का हिस्सा था !


अपर्णा जी का बच्चों के लिए किया जा रहा सराहनीय प्रयास

आप सभी को अवश्य प्रोत्साहित करना चाहिए।
इसी श्रृंखला में सुनिये



कल मिलिए आदरणीय विभा दीदी से
लेकर आ रही हैं एक विशेष प्रस्तुति
-श्वेता





11 टिप्‍पणियां:

  1. राजनीति के भद्र पुरुष अटल जी के जन्मदिन की बधाई
    और
    हैप्पी क्रिसमस डे
    उम्दा संकलन हेतु साधुवाद छुटकी

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभकामनाएं ही शुभकामनाएं..
    अप्रतिम..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रिय श्वेता सिन्हा जी,
    मेरा नवगीत 'पांच लिंकों का आनंद' में शामिल के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं आभार !!!
    यह मेरे लिए अत्यंत प्रसन्नता का विषय है।
    - डॉ शरद सिंह

    जवाब देंहटाएं
  4. सभी उत्कृष्ट पठनीय लिंक्स के लिए आभार 🙏
    Merry Xmas 💐💐💐

    जवाब देंहटाएं
  5. बेहतरीन रचना प्रस्तुति, गीता जयंती और क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  6. संक्षिप्त किन्तु सार्थक सूत्रों से सुसज्जित आज का संकलन ! मेरी बाल कथा को आज के संकलन में स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार प्रिय सखी श्वेता जी ! सप्रेम वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  7. उत्तम प्रस्तुति। सभी रचनाकारों को बधाई और शुभकामनाएं ।

    जवाब देंहटाएं
  8. मेरी कविता को इस मंच पर स्थान देने के लिए आभार।
    सभी रचनाकारों को भी शुभकामनायें और उनका उत्तम संकलन करने वाले को भी सम्मान।
    जय माँ शारदे

    जवाब देंहटाएं
  9. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  10. अटल जी के जनम दिन की बधाई ...
    अछे सूत्र ..
    आभार मेरी गज़ल को जगह देने के लिए ...

    जवाब देंहटाएं

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