नमस्कार
सोचता हूँ
जबरदस्ती कहे या मेरा खालीपन
खींचकर ले आया
ब्लॉग जगत में
सीख भी गया कुछ
लिखना-पढ़ना
ये मॉब कोरोना का
लिया तो जरूर
पर दिया भी बहुत कुछ
जिसमें सावधानी अहम है
चलिए पिटारा खोलें
धुंध ही धुंध है जिधर नज़र जाए,
निःशब्द सा है,
अदृश्य बहता हुआ आदिम झरना,
मीठी धूप की यादें यूँ तो हैं काइयों में
ढकी छुपी, कुछ ऊँचे चिनारों की तरह
चाहती हैं बादलों से दिल की बात कहना,
मौन सा है,
मेरी दुनिया ...
लोग पूछते हैं यार
तू कविता क्यों लिखता है?
तो उत्तर देना लाजिमी है।
बन्धु कविता लिखना सरल है
इसलिए कविता लिखता हूँ।
एक दो चार छः पंक्तियाँ या
जितनी मर्जी हो लिख दो।
तुक-बेतुक, हेतु-अहेतुक,
गद्य-पद्य-गदापद्य
सब कविता में समाहित हो जाता है।
नमस्ते ...
आप ही गुपचुप.. स्वतः
प्राणों में समा जाती है,
कल्पना में बिखर जाती है,
जीवन में घुल-मिल जाती है,
प्रफुल्लित फूलों की सुगंध ।
काव्य कूची ....
रतजगे वो इश्क़ के भी खूब थे ।
दिलजलों के अनकहे भी खूब थे।।
ख़्वाब पलकों पर सजाते जो रहे,
इश्क़ तेरे फलसफे भी खूब थे ।
"सोच का सृजन" ...
सूरज से कोई आँख नहीं मिला सकता,
ग्रहण के समय लोग उससे आँखें चुराते हैं।
अपनी लड़ाई खुद अकेले ही तो लड़ना है,
लेकिन बिंदास रहना उससे ही सीखना!
आवश्यक हो गया अकेलेपन के लिए नहीं मरना।
कविताएँ ...
बस थोड़ी देर में
शाम होने को है,
उतर रहा है झील में
लहूलुहान सूरज,
बेसब्री से देख रहे हैं
किनारे पर खड़े लोग.
आज इतना ही
सादर
शानदार चयन..
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर..
असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंपूरी जिन्दगी सीखने में कट जाती है
श्रमसाध्य कार्य हेतु
साधुवाद
सुन्दर लिंक्स.मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंसब कविता में समाहित हो जाता है ।
जवाब देंहटाएंजी हल्का हो जाता है ।
इस कविता का लिंक नहीं खुल रहा है ।
कृपया सहायता करें ।
https://vkspihani.blogspot.com/2020/12/blog-post.html
हटाएंअब खुल जाएगा देखिए
लिंक भी साथ है
कवितामय आलेख है
दिग्विजय जी, आज क़रीब-करीब सारी रचनाएं विचार प्रेरक हैं । मर्म की विवेचना । इनके मध्य स्थान देने के लिए आभारी हूँ ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअसाधारण रचनाओं से सुसज्जित पांच लिंकों का आनंद, हमेशा की तरह अपना अलग अंदाज़ छोड़ जाता है,मुझे जगह देने हेतु हार्दिक आभार आदरणीया यशोदा जी - - नमन सह।
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