जय मां हाटेशवरी.....
उलझी हुई दुनिया को पाने की ज़िद करो,
जो न हो अपना उसे अपनाने की ज़िद करो,
इस समंदर में तूफ़ान बहुत आते हैं तो क्या हुआ,
इसके साहिल पर घर बनाने की ज़िद करो।
सादर अभीवादन......
पेश है....
आज के लिये मेरी पसंद.....
रास्ते की सुंदरता का लुत्फ़ उठा, मंजिल पर जल्दी पहुचने की कोशिश न कर....
आदरणीय मो. मनव्वर अशरफ़ी द्वारा रचित
वाह ! हाजी साहब, खुद्दारी का सबक कोई आपसे सीखे | बड़े से बड़ा तकलीफ़ों का पहाड़
आपने हँसते-हँसते फ़तह कर ली, मगर औलादों के सामने ख़ुद को मोहताज होने न
दिया | आपने बता दिया कि अगर इरादे बुलंद हो, तो बूढ़ी हड्डियों में भी
शेर जैसी ताकत समा जाती है........ |
आदरणीय प्रीति अज्ञात जी द्वारा रचित
गँवार लड़की कहाँ जानती है
अपने मौलिक अधिकार!
लड़की दौड़ रही है
जैसे दौड़ा करती थी उसकी माँ
और उसके पहले नानी
आदरणीय शांतनु सान्याल जी द्वारा रचित,
उतरन। सूखे पत्तों का वजूद जो भी
हो, मौसम को तो है हर हाल में
बदलना, मेरे घर का पता
तुम्हें याद रहे या न
रहे, हर मोड़ पर
है कहीं न
कहीं
पुरअसरार दहलीज़ ! ऐ दोस्त, दस्तक से पहले
आदरणीय अनीता जी द्वारा रचित
जबकि दूसरे प्रकार की चेतना वाले व्यक्ति कर्म को भार भी समझ सकते हैं और अपने अहंकार
को बढ़ाने का साधन भी. कर्म चाहे कोई भी हो, सेवा, दान, धर्म अथवा खेती,
नौकरी और व्यापार, इसे करने वाले के मन की स्थिति कैसी है इस बात पर उस कर्म का फल
उसे मिलेगा. स्वयं को जाने बिना हम यह कभी नहीं जान पाएंगे कि किस कर्म का
कौन सा फल हमने अपने लिए नियत कर लिया है. इसीलिए योग साधना का इतना महत्व है.
आदरणीय शशी गुप्ता द्वारा रचित
फिर से दर्द दे जाती है । विचित्र सफर है जिंदगी का भी, इंसान अपने ख़्वाबों को सच करने
के लिये क्या नहीं करता है। हर कोई दिवास्वप्न ही नहीं देखता है,
अनेक ऐसे भी हैं कि अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिये कितनी भी कठिन राह क्यों न हो,
उस पर चलते हैं, बढ़ते हैं। सांप- सीढ़ी के खेल की तरह उन्हें कोई गॉड फादर
नहीं मिलता कि वह पलक झपकते ही आसमान से बातें करने लगे। वह तो बड़े धीरे-धीरे
कदम जमा कर लक्ष्य की ओर बढ़ता है,
आदरणीय रवीन्द्र भारद्वाज जी द्वारा रचित
दूभर लगता हैं
सांस लेना
साँसों में
नाइट्रोज हो जैसे समायी
एकदिन वो भी था
जब हँस-हँसके
तुम बातें किया करती थी
आज का यह अंक आपको कैसा लगा?
अपनी बहुमूल्य टिप्पणियों द्वारा
हमे अवश्य अवगत कराएं....
धन्यवाद।
शुभ प्रभात..
जवाब देंहटाएंबढ़िया और बेहतर प्रस्तुति
आभार..
सादर...
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर संकलन ।
बेहतरीन लिंक्स एवम प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाहः
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन
धन्यवाद भाई साहब,
जवाब देंहटाएंमेरे संस्मरण,अनुभूतियों और प्रबुद्ध वर्ग के दृष्टिकोण से इस तरह के नकारात्मक चिंतन को अपने उस प्रतिष्ठित ब्लॉग पर स्थान देने के लिये, जिसका नाम ही आनंद है।
पुनः हृदय से आभार, शुक्रिया,शुभ रविवार।
सुन्दर हलचल प्रस्तुति कुलदीप जी।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुती
जवाब देंहटाएंखुबसुरत अंक
उम्दा रचनाएं
मुझे यहाँ जगह देने के लिए आभार आदरणीय सादर
बहुत ही सुंदर संकलन ,सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंसुंदर और सार्थक संकलन। बधाई।
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