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बुधवार, 25 जुलाई 2018

1104..कोई खूशबू आती नहीं ..


।।प्रात:वंदन।।

भीड़ तंत्र पर बात चली है 
बेरोजगार भटके युवकों की राह बदली है

पर कहते हैं..


"भीड़ में सब लोग अच्छे कहाँ होते हैं

अच्छे लोगों की भीड़ भी कहाँ होती है"


इसी सोच के साथ रूख करते हैंं आज के लिंकों की ओर..✍




आदरणीया रश्मि शर्मा जी की संवेदनशील शब्दावली..



नहीं भीगी हूँ बौछारों में
बस ज़रा सी हरारत है, परेशान ना हो
सो जाऊँ , रख दूँ सीने पर सर
ओह, ये वो गंध नहीं
तुम्हारी देहगंध नहीं
जाने दो अब, कोई बुलाता है
आँखें झपकी जा रही
पहचान पा रही हूँ अच्छे से
चिरप्रतिक्षित, यह तो मृत्युगंध है




आदरणीया अजित गुप्ता जी..एक और विचारणीय प्रस्तुति..





लोकतंत्र में छल की कितनी गुंजाइश है यह अभी लोकसभा में देखने को मिली। कभी दादी मर गयी तो कभी बाप मर गया से लेकर ये तुमको मार देगा और वो तुमको लूट लेगा वाला छल अभी तक चला है,




आदरणीया अनुराधा चौहान जी की..






मकां तो सब बनाते हैं
खूब शान से सजाते हैं

रखते हैं हर साधन

धन भी खूब लगाते है

रंगते है महंगे कलर से

प्यार का रंग नहीं भरते




आदरणीय मीना शर्मा जी की अनुरोध करती रचना..

इक बार ज़ुबां से कह भी दो,
जो लेन-देन का नाता था
अब उसका मोल बता भी दो !
इतनी इनायत और करो.....








फूट रही है धार रसीली

सुरभित है बरखा की छाँव

डोले पात-पात,बोले दादुर

मोर,पपीहरा व्याकुल आतुर

और अंत करती हूँ आदरणीया श्वेता जी की मनमोहक बरखा ..आनंद ले..
और देखिए नये विषय की जगह
हम-क़दम के उन्तीसवें क़दम का विषय
इधर है


।।इति शम।।
धन्यवाद

पम्मी सिंह..✍


16 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात सखी
    "भीड़ में सब लोग अच्छे कहाँ होते हैं
    अच्छे लोगों की भीड़ भी कहाँ होती है"
    बहुत सुन्दर
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. विशिष्ट भुमिका सत्य और शिव ।
    कबीर दास जी का एक दोहा आज की भुमिका पर सही बैठ रहा है
    "सिहों के लेहँड़ नहीं, हंसों की नहीं पाँत ।
    लालों की नहि बोरियाँ, साधु न चलैं जमात।
    शानदार प्रस्तुति, सभी रचनाकारों को बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत बहुत धन्यवाद मेरी रचना को बेहतरीन रचनाओं में स्थान देने के लिए सुंदर प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई

    जवाब देंहटाएं
  4. भीड़ के चेहरों की शिनाख्त मुश्किल है...भीड़ का बिगड़ता चेहरा चिंता का विषय होता जा रहा है..सारगर्भित भूमिका..।
    बहुत सुंदर रचनाओं का शानदार संकलन है पम्मी जी।
    आभार आपका मेरी रचना को भी इस अंक मेंं शामिल करने के लिए।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति
    सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई

    जवाब देंहटाएं
  6. भीड़ के स्वभाव और प्रभाव की संक्षेप में तार्किक चर्चा प्रभावशाली है। सुन्दर रचनाओं से सजी बेहतरीन प्रस्तुति। बधाई आदरणीया पम्मी जी। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाऐं।

    जवाब देंहटाएं
  7. सुंदर संकलन आदरणीया पम्मी जी। मेरी रचना को हलचल में स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  8. प्रिय पम्मी जी -- सचमुच भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता | इस में अच्छे लोग कहाँ होते हैं ? भीड़ मात्र विवेकहीन मजमा बन कर रह गयी है | आज के समय में भीड़ का इकट्ठा होना किसी ना किसी दुर्घटना और अनहोनी का सबब बनता जा रहा है | सामूहिक हिंसा के रोजगार कैसे मिलेगा ? आज भी मेहनत करने वालों के लिए काम बहुत हैं |और अकर्मण्य लोगों के लिए बहानों की कमी नहीं | बेरोजगारी बेरोजगारी एक दर्द है पर इसका हल सामूहिक उत्पात बिलकुल नहीं | अत्यंत सार्थक और रोचक अंक के लिए आपको बधाई | सभी रचनाकारों को सस्नेह शुभकामनायें |

    जवाब देंहटाएं

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