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बुधवार, 7 फ़रवरी 2018

936..वर्तमान को वर्णित करो..

७फरवरी२०१८
उषा स्वस्ति 
                                 
बढ़ते अपराधों के  प्रति सहजता ,

संवेदनहीनता की प्रवृत्ति को ही बढ़ावा देता है।समय है ..

वर्तमान को वर्णित करो.. 
अब तो आवाज दो.. क्यों खतरे में है मासूमों की जिंदगी?

बच्चे ही देश का भविष्य है ।

आखिर कहाँ से आयी शिक्षा के 
मंदिर में ये खूनी खेल?


ज्यादा समय नहीं लूंगी.. 

चलिए अब रूख करते हैं,



 आज की लिंकों में शामिल रचनाओं पर...✍


डॉ. राजीव जोशी जी की कलम से ..





सोचता हूँ उसे कैसे ये हुनर आता है।


खूबियाँ कुछ तो रही होंगी मेरे भीतर भी
एब मेरा ही भला सबको क्यों दिख जाता है।


क़त्ल करता है हुनर से वो सितमगर साकी
और इल्ज़ाम मेरे सर पे लगा जाता है।

ब्लॉग  " किसी के इतने पास न जा"से...



आदतें नस्लों का पता देती हैं....
प्रस्तुतिः ज्योति अग्रवाल
          बादशाह के यहॉं एक अजनबी नौकरी के लिए हाज़िर हुआ । क़ाबिलियत पूछी गई, कहा, "सियासी हूँ " (अरबी में सियासी अक्ल ओ तदब्बुर से मसला हल करने वाले को कहते हैं )।

उसे खास "घोड़ों के अस्तबल का इंचार्ज" बना लिया। 

      चंद दिनों बाद बादशाह ने अपने सबसे महंगे और अज़ीज़ घोड़े के बारे में पूछा। उसने कहा,"नस्ली नहीं  हैं।"



:Cartoon: 

इसको भी बजट समझ नहीं आ रहा.




आदरणीय ज्योति खरे जी की संवेदनशील रचना..
गुम गयी है व्यवहार की किताब

धुंधली आंखें भी

पहचान लेती हैं

भदरंग चेहरे

सुना है

इन चेहरों में

मेरा चेहरा भी दिखता है--


आदरणीय मधुलिका पटेल जी
की सुंदर शब्द सृजन..




भीड़ में गुम हो जाने के बाद 
धीरे - धीरे तन्हा होता है 
धीरे - धीरे पंखुड़ियों से 
सूख कर बिखर जाते हैं यह रिश्ते 
प्यार स्नेह और अपनेपन की 
टूट जाती है माला 


खत्म करती हूँ आज की बातें..

ऋतू असूजा ऋषिकेश जी, की रचना...

जो आज और कल को बड़ी खूबसूरती से पिरोती ...  

      बेहतर है ,मेरा  तो मनाना है ,कि जो
      कल था वो आज से बेहतर था ।
    
     वो कल था,जब हम खुले आंगनो में
      संयुक्त परिवार संग बैठ घण्टों क़िस्से
      सुनते -सुनाते थे , बुर्जर्गो की हिदायतें
गुम गयी है व्यवहार की किताब..



।।इति शम।।
धन्यवाद

पम्मी सिंह..✍
...............
क़दम हम
सभी के लिए एक खुला मंच
आपका हम-क़दम  पाँचवें क़दम की ओर
इस सप्ताह का विषय है...
...यह चित्र
:::: पहाड़ी नदी  ::::
परिलक्षित हो रहे दृष्यों के आधार मानकर
आपको एक कविता लिखनी है
उदाहरणः
उम्र के-
एक पड़ाव के बाद
अल्हड़ हो जाती नदी
ऊँचाई-निचाई की परवाह के बग़ैर
लाँघ जाती परम्परागत भूगोल
हहराती- घहराती
धड़का जाती गाँव का दिल
बेँध जाती शिलाखंडों के पोर -पोर 
अपने सुरमई सौंदर्य, भंवर का वेग
और, विस्तार की स्वतंत्रता के कारण...!
आप अपनी रचना शनिवार 10 फरवरी 2018  
शाम 5 बजे तक भेज सकते हैं। चुनी गयी श्रेष्ठ रचनाऐं आगामी सोमवारीय अंक 12 फरवरी 2018  को प्रकाशित की जाएगी । 
इस विषय पर सम्पूर्ण जानकारी हेतु हमारे पिछले गुरुवारीय अंक 



18 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात
    बहुत बढ़िया प्रस्तुति
    सखी पम्मी...
    अपराध तो प्रचीनकाल से होते चले आ रहे है
    इसपर लगाम न पहले लगा पाए
    न अब लगा पा रहे हैं
    विवेचना व्यर्थ है
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभातम् पम्मी जी,
    संक्षिप्त भूमिका में सारगर्भित तथ्यों को समेट कर विचारणीय प्रश्न उठाए है आपने,आख़िर समाज कहाँ जा रहा सोचने की आवश्यकता है गंभीरता से। हम भी तो इसी समाज का हिस्सा है न।
    सारी रचनाएँ बहुत अच्छी है आज का अंक बहुत सुंदर पम्मी जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात पम्मी जी भूत सूँडेर संकलन सभी रचनायें बहतरीन
    सभी रचनाकारों को बधाई
    आभार मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिये ।

    जवाब देंहटाएं
  4. बच्चों को जो परोसा जा रहा है, वही तो वे लौटायेंगे, टीवी, फ़िल्में, कार्टून हर जगह हिंसा देख देख कर बड़े होते हैं आज के बच्चे.
    पठनीय पोस्ट्स से सजा है आज का अंक.. बधाई !

    जवाब देंहटाएं
  5. अपराध सिर्फ बढ़ नहीं रहे । ये घर कर रहे हैं हमारी नस्ल के मनो मस्तिष्क में । अपराधों का बढ़ता ग्राफ सभ्यता के ख़त्म होने की पहल जार रहा है। कई बार अपराध हमारे मन में ही घटित होते हैं और दूसरे को नुकसान पंहुचाते हैं। उसमें क़ानून कुछ नहीं कर सकता।
    अस्ज का अंक बेहद सराहनीय है। बहुत सुंदर भूमिका के साथ आपने संवेदना के तिल-तिल कर मरने का एक उदहारण दिया है अपराधों के बढ़ने के रूप हूँ।
    आज के अंक जी सभी रचनाएं पठनीय हैं। सभी रचनाकारों को बधाई।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत खूबसूरत प्रस्तुति
    सभी रचनाकारों को बधाई

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुंदर लिंक संयोजन
    शानदार भूमिका
    सभी रचनाकारों को बधाई
    मुझे सम्मलित करने का आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत खूबसूरत भूमिका ,सुंदर रचनाओं से सुसज्जित बहुत रोचक ।

    जवाब देंहटाएं
  9. आज की प्रस्तुति अपने आप मे विशिष्ट हैं क्योंकि बात संवेदनाओं की है जो अंत स्थल से सुखती जा रही है
    और आने वाले कल की भयावह तस्वीर पेश कर रही है
    हम वापस असभ्य दानव युग की तरफ बढ रहे हैं संस्कारों के स्रोत सुखते जा रहे हैं।
    शानदार प्रस्तुति।
    अर्थ प्रणव रचनाऐं ।
    सभी चयनित रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  10. इंसान अपना वक्त इंसानों के साथ कम और मशीनों के साथ ज्यादा गुजारेगा तो परिणाम संवेदनहीनता के रूप में ही सामने आएगा ना !
    सुंदर रचनाओं के चयन हेतु आदरणीय पम्मीजी को बधाई।
    बेहतरीन प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  11. इंसान अपना वक्त इंसानों के साथ कम और मशीनों के साथ ज्यादा गुजारेगा तो परिणाम संवेदनहीनता के रूप में ही सामने आएगा ना !
    सुंदर रचनाओं के चयन हेतु आदरणीय पम्मीजी को बधाई।
    बेहतरीन प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  12. आदरनीय पम्मी जी -- आज के संकलन में सार्थक संवाद और उस पर बेहतरीन चिंतन बहुत अच्छा लगा | सभी रचनाएँ सराहनीय हैं | सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई और आपको भी सफल संयोजन की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं |

    जवाब देंहटाएं
  13. सुन्दर प्रस्तुति।

    विविध बिषयों पर आधारित उत्तम लिंक संयोजन।

    समस्त चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाऐं।

    जवाब देंहटाएं
  14. शिक्षा के मन्दिर में खूनी खेल....बहुत ही चिंताजनक...
    शानदार पठनीय लिंक संकलन बेहतरीन प्रस्तुति करण ।

    जवाब देंहटाएं
  15. बहुत अच्छी भूमिका पम्मी जी , सार्थक संकलन

    जवाब देंहटाएं
  16. वाह ! लाजवाब लिंक संयोजन ! बहुत सुंदर प्रस्तुति आदरणीया ।

    जवाब देंहटाएं

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