सादर अभिवादन।
देश में इस समय न्याय-व्यवस्था में वबाल चल रहा है।
तकलीफ़ दायक ख़ेमेबंदी से आहत है आम नागरिक ।
देश में न्याय के लिए अंतिम दरवाज़े पर चल रही उठापटक ने न्याय -व्यवस्था में समाहित पूर्वाग्रहों की ओर हमारा ध्यान खींचा है।
इस बीच आपका ध्यान ग्रामीण भारत में शिक्षा के स्तर की पड़ताल करती एक और ख़बर पर आकृष्ट करना चाहूँगा -
14 से 18 साल के 36% किशोरों को नहीं पता
चलिए अब चलते हैं चिंतन के धरातल पर जहाँ आपकी प्रतीक्षा में हैं
कुछ पसंदीदा रचनाऐं -
आदरणीय जयकृष्ण राय तुषार जी की रचना में
बसंतोत्सव का आनंद लीजिये -
एक गीत-यह बसंत भी प्रिये!
तुम्हें परखने
और निरखने में
सूखी कलमों की स्याही ,
कालिदास ने
लिखा अनुपमा
हम तो एक अकिंचन राही ,
तू बच्चों की
लोरी ,सुखदा
प्रियतम का आह्लाद है |
ज़िन्दगी की पेचीदगियों को उभारती आदरणीया अलका गुप्ता जी की विविधा पर प्रकाशित एक बेहतरीन ग़ज़ल मुलाहिज़ा कीजिये-
आइना तो झूठ बोला ही नहीं था !
उस दिखावे में अदाकारी बहुत है!!
शोखियाँ जर-जर हुईं हैं भारती क्यूँ ?
नोचता अब फ़कत फुलवारी बहुत है !!
हम "पाँच लिंकों का आनन्द" परिवार की ओर से "उलूक टाइम्स" को अशेष शुभकामनाऐं प्रेषित करते हैं 1300 वीं पोस्ट के प्रकाशन पर। पढ़िए कुछ अलग ढंग की आम और ख़ास बातें
आदरणीय डॉ. सुशील सर की इस रचना में -
कुछ नजर आये तो बताइये .... प्रोफ़ेसर डॉ. सुशील कुमार जोशी
हिन्दी और
उर्दू से मिलिये
इस गली की
इस गली में
उस गली की
अंगरेजी
उस गली में
रख कर आइये
समय परिवर्तनशील है। आदरणीय दिगंबर नासवा जी समय के
साथ अपनी स्मृति को कोमल भावों में सहेजकर प्रस्तुत कर रहे हैं
अपनी ताज़ा रचना में -
ओर याद है वो “रिस्ट-वाच”
“बुर्ज खलीफा” की बुलंदी पे तुमने उपहार में दी थी
कलाई में बंधने के बाजजूद
कभी बैटरी नहीं डली थी उसमें मैंने
वक्त की सूइयां
रोक के रखना चाहता था मैं उन दिनों
भाषा के प्रति विशेष सतर्कता आदरणीय विश्व मोहन जी
ख़ासियत है। अपनी विशिष्ट शैली एवं विद्वता के साथ उपस्थित हैं अपनी इस रचना में -
देवालय.... विश्वमोहन
“अयं निजः परो वेत्ति गणना लघुचेतसाम
उदार चरितानांतु वसुधैव कुटुम्बकम.”
इसके मूल में यह सार्वभौमिक मान्यता है कि‘आत्मवतसर्वभुतेषु यः पश्यति सः पण्डितः’. हिंदु दर्शन का आधार है प्रकृति के समस्त परमाणु में परम पिता परमेश्वर का वास होता है. तो फिर, उसके आवास यानि देवालयों में भी प्रत्येक परमाणु समान हैं. वहां कोई भेदभाव क्यों? चर-अचर, जड़-चेतन, सजीव-निर्जीव सभी वस्तुएं उसकी नैसर्गिक आभा के विस्तार हैं. तो फिर शिव निवास में शरणागत को किसी धर्म या सम्प्रदाय की संज्ञा के उच्छृंखल बंधन में क्यों बांधे!
आइये अब करते हैं चर्चा अपने नए कार्यक्रम "हम-क़दम" की -
एक क़दम आप.....एक क़दम हम
हम-क़दम का दूसरा कदम
इस सप्ताह का बिषय है
"बवाल "
वबाल शब्द पर
प्रख्यात शायर मिर्ज़ा ग़ालिब
का एक शेर आपकी नज़र-
फ़िक्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँ
मैं कहाँ और ये वबाल कहाँ
इस बिषय को अपनी टिप्पणियों (16 जनवरी अंक 914) से रोचक बना दिया है इस मंच की वरिष्ठ चर्चाकार आदरणीया विभा दीदी ने -
विभारानी श्रीवास्तव
16 जनवरी 2018
vabaal
वबाल
وبال
calamity, ruin
बोझ, मुसीबत
बवाल meaning in hindi
[सं-पु.] - 1. तमाशा खड़ा करना 2. बखेड़ा; फ़साद।
तुम्हरा रेत पर भी नाम अब लिखूँ कैसे
मैं जानता हूँ समंदर बवाल करता है
- अस्तित्व अंकुर
हद की सीमांत ना करो सवाल उठ जाएगा
गिले शिकवे लाँछनों के अट्टाल उठ जाएगा
लहरों से औकात तौलती स्त्री सम्भाल पर को
मौकापरस्त शिकारियों में बवाल उठ जाएगा
इस बिषय पर आप अपनी रचनाऐं शनिवार
(20 जनवरी 2018 ) शाम 5 बजे तक भेज सकते हैं।
चुनी गयी श्रेष्ठ रचनाऐं आगामी
सोमवारीय अंक (22 जनवरी 2018 ) में प्रकाशित होंगीं।
इस विषय पर सम्पूर्ण जानकारी हेतु हमारा पिछला गुरुवारीय अंक
(11 जनवरी 2018 ) देखें या नीचे दिए लिंक को क्लिक करें-
909...एक क़दम आप.....एक क़दम हम बन जाएँ हम-क़दम
चलते-चलते -
कल अपनी प्रस्तुति के साथ आ रही हैं
आदरणीया श्वेता सिन्हा जी।
रवीन्द्र सिंह यादव
शुभ प्रभात....
जवाब देंहटाएंसही कह रहे हैंं....
हम जब कक्षा पांचवीं मे थे तो हमारे गुरुजी
प्रतिदिन एक सवाल किया करते थे
प्रदेश की राजधानी
व देश की राजधानी
हमारे जिले का मुख्यालय कहां है
अच्छी प्रस्तुति बनाई आज आपने
आभार
सादर
सुप्रभातम्,
जवाब देंहटाएंआज की भूमिका सच में बेहद विचारणीय है। आपने तो बच्चों की तस्वीर रखी है इनके कुछ शिक्षकों का हाल तो और बुरा है जो बस वेतन लेने से भर का नाता रखते है। इतनी बड़ी संख्या में जो आने पीढ़ी के बीज तैयार हो रहे है वो कैसे वृक्ष बनेगे ये अहम प्रश्न है।
बहुत सुंदर प्रस्तुति रवींद्र जी।सभी रचनायें खास हैं। सराहनीय अंक।
सार्थक चिंतन का एक मंच बन गया है पाँच लिंकों का आनंद ... सच कहा है आज ७० सालों बाद देश की अवस्था देख कर की बार ये लगता आही कुछ नहीं हुआ देश में ... क्यों महि हुआ इस का उत्तर खोजने की आवश्यकता है ...
जवाब देंहटाएंआज के लिंक लाजवाब सचनाएँ ... आभार मेरी प्रस्तुति को सम्मान देने के लिए ...
वाह...
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति
शिक्षा का स्तर
घर से शुरु होता है
विद्यालय को दोष नही
शासन द्वारा पालित विद्यार्थी ही कमजोर होते है
क्योंकि उन्हें रुचि मात्र दोपर भोजन में ही होती है
यो ध्रुव सत्य है
सादर
बहुत ही विचारणीय शुरुआत के साथ सुन्दर प्रस्तुतिकरण
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक संकलन...
लिखना वबाल पर है या बबाल पर
जवाब देंहटाएंयहीं पर कर दिया एक बबाल आपने :)
वबाल(उर्दू) और बबाल (हिन्दी) दो अलग अलग शब्द हैं। आभार रवींद्र जी 'उलूक' की 1300वीं बकवास को आज की हलचल में स्थान दिया।
मेरा भी यही प्रश्न है आदरणीय यशोदा दीदी ! मंगलवार के अंक में जो शब्द दिया गया था, वह 'बवाल' शब्द था, ना कि 'वबाल'....दोनों शब्दों का अर्थ भी अलग है। कृपया स्पष्ट करें ।
हटाएंआदरणीय सखी मीना जी
हटाएंआप भ्रमित न हों
विषय बवाल ही है
हमारी बड़ी दीदी ने सिर्प हमारे सामान्य ज्ञान में वृद्धि की है
व्याख्या करके....उनके उदाहरण देखिए
उन्होंनें बवाल का ही उल्लेख किया है
सादर
सादर प्रणाम सर.
हटाएंअब हम चाहते हैं कि हिन्दी में स्थापित शब्द "बवाल" ही हमारा हम-क़दम-2 का शीर्षक रहे. दोनों शब्दों बवाल और वबाल पर मिलीं रचनाओं को प्रकाशित किया जायेगा.
सादर.
बहुत सुन्दर!!!
जवाब देंहटाएंआपका हृदय से आभार भाई रवीन्द्र जी
जवाब देंहटाएंआपका हृदय से आभार आदरणीय रवींद्रजी ! आपने शिक्षा का विषय उठाकर हम शिक्षकों की दुखती रग को छेड़ दिया। अहम सवाल है कि क्यों बच्चे शिक्षा और ज्ञान के क्षेत्र में इतना पिछड़ रहे हैं ? जिम्मेदार कौन ? शिक्षक, अभिभावक, शिक्षा नीति के निर्धारक या समाज ? छोटी कक्षाओं में बिना परीक्षा पास करने या फेल ना करने की नीति ने बच्चों की नींव को ही कमजोर बना दिया है। आपने तो सिर्फ एक सवाल किया है, हम तो ऐसे बीसियों सवालों से हर रोज रूबरू होते हैं । मन तड़पता है, जब नौंवी कक्षा के बच्चे को पुस्तक पढ़ना तक नहीं आता। जब वह महात्मा गांधी की पत्नी का नाम ज्योतिबा फुले |लिखता है, जब उसे पहाड़े नहीं आते, जोड़, घटाना,गुणा, भाग नहीं आते....क्या क्या लिखूँ ? सभी शिक्षक कामचोर नहीं हैं । आज भी ऐसे शिक्षक हैं जो कहते हैं कि हमें दसवीं के बदले पाँचवीं कक्षा दो, ताकि हम बच्चों की नींव पर काम कर सकें। नौंवीं दसवीं में तो कोर्स पूरा करवाने का ही समय कम पड़ता है...
जवाब देंहटाएंबहुत कहा सुना जा सकता है इस विषय पर...
अब बात आज के अंक की । प्रभावपूर्ण और सुंदर रचनाओं का संगम है आज का अंक । हलचल के सभी चर्चाकारों की आभारी रहूँगी। आपकी मेहनत, लगन एवं समर्पण निश्चय ही प्रशंसनीय है । मुझे आप सभी से बड़ी प्रेरणा मिलती है । सादर ।
शिक्षा से सम्बंधित विषय निसंदेह विचारणीय है..
जवाब देंहटाएंसारगर्भित विषय
प्रभावपूर्ण प्रस्तुति एवम् संकलन
सभी चयनित रचनाकारों को शुभकामनाएं
धन्यवाद।
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशुभसंध्या रवीनद्र जी ...गहन चिंतन की और प्रेरित करती आपके द्वारा रखी गए जवंलत भुमिका विषय.सोचने पर विवश करती है. कि दिनो दिन शिक्षा का गिरता स्तर आखिर क्यो,शिक्षा को बच्चो की बुनियादी जरुरतो से क्यो जोड़ा गया,आप उसकी भुख तो मिटा रहे है,पर शिक्षको पर अतिरिक्त भार भी डाल रहे है,वो मिड डे मील बनाते रहे तो ,अक्षर ज्ञान देगा कौन....खैर खुशी हुवी आपके द्ववारा रखी गई सवाल पर अपने विचार दे पाई...रही बात न्याय व्यवस्था की तो होठों को अगर सीला जाएगा तो यकीनन विरोध के स्वर प्रस्फुटित होंगे... सभी चयनित रचनाएं अच्छी है ...सभो को बधाई ।
जवाब देंहटाएंनिसंदेह विचारणीय प्रभावपूर्ण प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसभी चयनित रचनाकारों को शुभकामनाएं
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंशैक्षणिक स्तर पर सटीक टिप्पणी। देश के भावी कर्णधार अज्ञान के अंधेरे मे गुम। अध्यापक वर्ग पर प्रश्नचिह्न सभी बहुत संतुलित पेश किया सही और मनन योग्य सुंदर प्रस्तुति सभी चयनित रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएं