सुप्रभात मैं संजय भास्कर एक बार फिर से हाजिर हूँ
पढ़िए मेरी पसदीदा रचनाएँ :)
वो तुम्हारा इन्तजार करना
सब कुछ छोड़ कर तुम्हे याद करना
खुद पर हँसती हूँ,
जब याद आता है वो बचपना मेरा
मेरा पागलपन सा लगता है !
कुछ बातें हैं दिल में,
जिनको मैं बताना चाहता हूँ।
पर कोई नहीं मिलता सुनने वाला,
इसलिए लिख देना जानता हूँ।
न डर तू सलोनी....
बहुत तेज है धूप संसार की
सुलभ छाँव तेरे लिए प्यार की
उदासी मिटा वेदना मैं हरूँ
अरी लाडली तू बता क्या करूँ !
किसी के हाथों में किताबें देख
किसी का दिल मचल रहा था
छोटी-छोटी ख़्वाहिशें पाले नन्हा दिल
ज़िंदगी की धूप में जल रहा था !
संध्या शर्मा
वो बुदबुदाती रहती है अकेली
जैसे खुद से कुछ कह रही हो
या दे रही हो, उलाहना ईश्वर को ?
स्वयं ही तो चुना था उसने
पति के जाने के बाद
शेखर सुमन
अपने देश से हर किसी को प्यार होता है
पर भारत के लोगों का प्यार थोड़ा अलग है,
उन्हें साफ-सुथरा देश चाहिए लेकिन सफाई नहीं करना चाहते, रिश्वत से उन्हें सख्त नफरत है
लेकिन कुछ रुपये देकर काम बन रहा हो तो ज़रा भी पीछे नहीं हटते
आज्ञा दें भास्कर को
अगले गुरुवार को फिर मिलेंगे तब तक के लिए अलविदा
संजय भास्कर
संध्या शर्मा
वो बुदबुदाती रहती है अकेली
जैसे खुद से कुछ कह रही हो
या दे रही हो, उलाहना ईश्वर को ?
स्वयं ही तो चुना था उसने
पति के जाने के बाद
शेखर सुमन
अपने देश से हर किसी को प्यार होता है
पर भारत के लोगों का प्यार थोड़ा अलग है,
उन्हें साफ-सुथरा देश चाहिए लेकिन सफाई नहीं करना चाहते, रिश्वत से उन्हें सख्त नफरत है
लेकिन कुछ रुपये देकर काम बन रहा हो तो ज़रा भी पीछे नहीं हटते
आज्ञा दें भास्कर को
अगले गुरुवार को फिर मिलेंगे तब तक के लिए अलविदा
संजय भास्कर