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शनिवार, 25 जून 2016

344 ..... आज नहीं ये काम चलो कल कर लेंगे




सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष


मुझे यकीन कल पे है
अगले पोस्ट पे जब हमारी भेंट होगी
इस ब्लॉग की सालगिरह होगी






अपनी आँखों का समन्दर पिया है मैंने !
दाग दामन में नहीं दिल पे लिया है मैंने !!

खामोश मोहब्बत को दम तोड़ने भी दो !
ये जुर्म कुछ ऐसा संगीन किया है मैंने !!





अपनी   जहां का जुल्म,
रिसते घाव खुरचता रहता है,
कभो कोइ मठाधीश,
कभी कोइ सत्ताधीश 
 सत्ताएँ स्वार्थ का केंद्र हो रही है





लाल हरिअर अनेको रंगक सभ
देखमे नीक लागै छै टिकली

पाँखि फहराक देखू जे उडि-उडि
दूर हमरासँ भागै छै टिकली






तेरेे दिल की धडकन ही 
सुनने के लिए काफी है--
शहनाईया बजती है कहा कैसे..बिन
रिशते तेरे हो कर जिए,
इतना ही मेरे लिए काफी है-




खिलौने और टाफियाँ नही हैं...मेहनत की रोटियाँ हैं सिर्फ़
खेल के मैदान नही हैं...कारखाने और कोठियाँ हैं सिर्फ़
वो जानता है कि क्या चीज़ ज्यादा ज़रूरी है
कि वो एक दिन की कमाई से बाप के लिए दवाई लाता है
और दो दिन की कमाई से वो बहन के लिए दुपट्टा लता है






याद रात पर भारी पड़ी थी, उजाला किसी नवजात शिशु सा 
खिड़की से झाँक रहा था। फजर के  अजान की ध्वनि 
दयाल बाबू को ईशा सी लग रही थी। जैसे वो अभी उठकर 
स्टेशन की ओर चल देंगे। कलाई पर बंधी घड़ी में टाइम देखते
 है और वाकई में वो उठकर चल देते है,





जो गीत नहीं हम होठों पर आ पाया आज
वो गीत चलो कल गा लेंगे
कल ज़ख्म यह सब भर जायेंगे
यह दुबला अश्क़ो में
कल जब खुशिया घर आएंगे


फिर मिलेंगे ..... तब तक के लिए
आखरी सलाम


विभा रानी श्रीवास्तव






6 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी रचनाएँ पढ़वा रही हैं आज
    सारे के सारे लिंक्स लिए जा रही हूँ
    सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात
    सादर प्रणाम
    सभी अच्छी लिंको का चयन

    जवाब देंहटाएं
  3. शुभप्रभात आंटी...
    सुंदर चयन हर बार की तरह....
    पुनः आभार....

    जवाब देंहटाएं
  4. बढ़िया हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं

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