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शनिवार, 30 नवंबर 2024

4323 ... प्रेम का वह मोती सागर में गहरे छिपा है

 सादर अभिवादन

शुक्रवार, 29 नवंबर 2024

4322 ..कई वर्षों से भारत में भी ब्लेक फ्राइडे को मान्यता दी है

 सादर अभिवादन

गुरुवार, 28 नवंबर 2024

4321...यूं सुलगते, बंजर मन के ये घास-पात...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में पढ़िए पसंदीदा रचनाएँ-

परदेसी से

उसके हरे-हरे पत्ते

हवाओं में मचलते हैं,

उसकी टहनियों पर बैठकर

पंछी चहचहाते हैं।

*****

जो धरा है वही चाँद

और सभी निरंतर होना चाहते हैं

वह, जो थे

जाना चाहते हैं वहाँ

जहाँ से आये थे!

*****

करें यकीं कैसे

यूं सुलगते, बंजर मन के ये घास-पात,

उलझते, खुद ही खुद जज्बात,

जगाए रात,

वो करे, यकीं कैसे?

*****

प्रतियोगिता

बहुत ही पीछे है कछुआ,

सोच खरगोश सो गया।

धीरे धीरे चल कछुआ🐢

मंजिल तक पहुँच गया।

*****

अजब परिंदे, गजब परिंदे

मैना अपने में मस्त रहती हैं ! मुख्य ढेर के अलावा बेझिझक इधर-उधर घूमते हुए, गिरे हुए कण भी चुग लेती हैं ! हर बार अपना ही घर समझ यह पाखी जोड़े में ही आता है। उपरोक्त सारे पक्षी जितने शान्ति प्रिय लगते हैं, तोते उतना ही शोर मचाते हैं ! हर समय चीखते-चिल्लाते इधर-उधर मंडराते हैं ! उनको कुछ खा कर भागने की भी बहुत जल्दी रहती है ! उनको पानी पीते नहीं देख पाया हूँ कभी ! जो भी हो पर होते बहुत सुन्दर हैं, प्रकृति की एक अद्भुत कलाकारी ! इन्हीं के बीच दौड़ती-भागती सदा व्यस्त रहने वाली गिलहरी का तो कहना ही क्या, उसके तो अपने ही जलवे होते हैं! 

*****   

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव  


बुधवार, 27 नवंबर 2024

4320..छांव में छिपे रंग..

।।प्रातःवंदन।।

 नये-नये विहान में

असीम आस्मान में-

मैं सुबह का गीत हूँ।

मैं गीत की उड़ान हूँ

मैं गीत की उठान हूँ

मैं दर्द का उफ़ान हूँ

मैं उदय का गीत हूँ

मैं विजय का गीत हूँ

सुबह-सुबह का गीत हूँ

मैं सुबह का गीत हूँ..!!

डॉ धर्मवीर भारती

बुधवारिय प्रस्तुतिकरण में शामिल रचना...✍️

सन् सत्तावन के बाद....

 क्या सन् सत्तावन के बाद किसी

सिहनी ने तलवार लिया नहीं कर मे

या माँ ने जननी बन्द कर दी

लक्ष्मीबाई अब घर-घर में..

✨️

लौटती नहीं नदियां

नदियां

नहीं निकलती

किसी एक स्रोत से 

कई छोटी बड़ी धाराओं के मिलने से

बनती है नदी

✨️

छांव में छिपे रंग


एक दिन तुम

गहरी नींद से जागोगे 

और पाओगे

मिथ्या, कल्पना जैसा कुछ नहीं होता,

जो सभी कुछ होता है, यथार्थ होता है।

✨️

कैंसर में जागरूकता जरूरी

आजकल एक पोस्ट बहुत वायरल हो रही है कि प्राकृतिक चिकित्सा से फोर्थ स्टेज का कैंसर ठीक हो गया। मैं ऐसे बहुत से लोगों को जानती हूँ जिन्होंने अपना एलोपैथी इलाज बीच में छोड़कर आयुर्वेदिक या नेचुरोपैथी अपनाया और नहीं बच सके। मेरी राय है कि कैंसर पेशेंट को पहले किसी अच्छे डॉक्टर से पूरा इलाज सर्जरी, कीमोथेरेपी, रेडिएशन वगैरह जो वो बताएं वह करवाना चाहिए,

✨️

वक़्त

मैंने बचपन से कहा -

“चलो ! बड़े हो जाए !”

उसने दृढ़ता से कहा - 

ऐसा मत करना ! 

।।इति शम।।

धन्यवाद 

पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️


मंगलवार, 26 नवंबर 2024

4319 ...भाई आप भीतर भेजने के लिये धन की आशा क्यों रखते हैं।

 सादर अभिवादन

सोमवार, 25 नवंबर 2024

4318...साहित्य में नर्क..

 "मज़हब में बहुत

बदकारियां हैं यक़ीनन!

सियासत में बहुत

मक्कारियां हैं यक़ीनन!!

जालिब की नज़्में

बर्बर हुक्मरानों के लिए

लफ़्ज़ों में गूंथी 

चिंगारियां हैं यक़ीनन!!"

हबीब जालिब

लफ़्ज़ों में गूंथी चिंगारियां हैं यक़ीनन..सामाजिक जीवन आजकल कुछ ऐसे ही हालात से गुजर रही..तो फिर इन सभी के बीच गुजारे कुछ लिंकों के साथ..✍️

साहित्य-महोत्सव और नया वाला विमर्श

पिछले दिनों शहर में हो रहे एक ‘साहित्य-महोत्सव’ के पास से गुजरना हुआ।इस दौरान एक बड़े-से पोस्टर पर मेरी नज़र ठिठक गई।महोत्सव में अनूठा विमर्श चल रहा था,जिसका विषय था, ‘साहित्य में नर्क’।

✨️



ख़्वाब दर ख़्वाब ज़िन्दगी तलाशती है

नई मंज़िलों का ठिकाना, वो

तमाम खोल जो वक़्त

के थपेड़ों ने उतारे,

उन्हीं उतरनों

को देख,

✨️

सपना, काँच या ज़िन्दगी ...

खुद पे पाबन्दी कभी कामयाब नहीं होती

कभी कभी तोड़ने की जिद्द इतनी हावी होती है

पता नहीं चलता कौन टूटा ...

✨️

आग और हवा

उसने कहा कि आग लिखो

तुम्हारी लेखनी में आग नहीं है

सवाल तो बहुत सारे हैं लेकिन

शिकायतें और आक्षेप नहीं हैं

✨️

।।इति शम।।

धन्यवाद 

पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️

रविवार, 24 नवंबर 2024

4317 ..."निन्दक नियरे राखिए" यानी कि शादी अवश्य कीजिए

 सादर अभिवादन

शनिवार, 23 नवंबर 2024

4316 ..इस अंक में दो टके का दो टूक

शुक्रवार, 22 नवंबर 2024

4315 .... जेठ मास जो दिन में सोवे, ताको जुर अषाढ़ में रोवे।

 सादर अभिवादन

माता अन्नपूर्णा का महीना
पवित्र महीना



पसंदीदा रचनाएं




छतें
स्वेटर बुन रही हैं
भाभियों वाली,
बतकही, चुगली
कड़कती
चाय की प्याली,
लाँन में
हर फूल
खुशबू और गमला है.





नियति कैसी हुई है अपनी
प्राण, दास बनकर बैठा है
सतत् संघर्ष भरा है पथ में
दुर्बल तन-मन ऊब चुका है।
शीत पवन के शक्ति बल से
थककर मैं तो गिरी बहुत हूं





एक दिन यह सब भी बदल गया। बायर नाम के एक जरमन केमिकर ने 1865 में डामर से नीला रंग बना कर दिखा दिया। यह माट के नीले रंग का पहला तोड़ था। नीलीसन्धान की नई विधि - सिंथेटिक डाई। कुछ बरसों बाद कार्ल ह्यूमेन नाम के दूसरे जरमन ने इसके बड़े पैमाने पर उत्पादन को सम्भव कर दिखाया। सस्ता, सुंदर एवं टिकाऊ रंग। परिणाम ये हुआ कि बीस ही सालों में बाजार का 95 फीसदी नील डामर का बना हुआ था। जाहिर है, माट उठाने की रीत उठ गई। यों, कुछ रंगारे अब भी माट में नील रंगते हैं। परन्तु उनमें भी नील घोली जाती है सज्जी-सोडे आदि से। एकदम साफ सुथरे ढंग से। बाकी रंगों की ही मानिंद।






घाघ व भड्डरी की कहावतें प्रसिद्ध हैं, जहां घाघ ने नीति, खेती व स्वास्थ्य संबंधी कहावतें कहीं है वहीं भड्डरी ने ज्योतिष, वर्षा आदि से संबंधित कहावतें कहीं हैं, यदि हम घाघ का अर्थ खोजते हैं तो घाघ किसी हठी, जिद्दी व्यक्ति को कहा जाता है, वहीं यदि हम भड्डरी के अर्थ को देखते हैं तो इसका शाब्दिक अर्थ भंडार का अध्यक्ष होता है, वैसे ये एक हिन्दू जाति में लगाया जाने वाला ‘‘सरनेम’’ भी है।

प्रातकाल खटिया से उठि के पिये तुरन्ते पानी।
वाके घर मा वैद ना आवै बात घाघ कै जानी।।
*****
क्वार करैला चैत गुड़, भादौं मूली खाय।
पैसा खरचै गांठ का, रोग बिसावन जाय।।
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चैते गुड़ बैसाखे तेल, जेठ में पंथ अषाढ़ में बेल।
सावन साग न भादों दही, क्वारे दूध न कातिक मही
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सावन हरैं भादौं चीता, क्वार मास गुड़ खाहू मीता।
कातिक मूली अगहन तेल, पूस में करे दूध सो मेल।
माघ मास घी खिचरी खाय, फागुन उठि के प्रात नहाय।
चैत मास में नीम सेवती, बैसाखहि में खाय बसमती
जेठ मास जो दिन में सोवे, ताको जुर अषाढ़ में रोवे।





टोली संग निकलते फरियादें करने  
बन जाते बाहुबली  चुनाव के बाद।

सभाएं करते हैं बड़े बड़े वादे करने  
बन जाते घोटालेबाज चुनाव के बाद।

बस