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शुक्रवार, 22 नवंबर 2024

4315 .... जेठ मास जो दिन में सोवे, ताको जुर अषाढ़ में रोवे।

 सादर अभिवादन

माता अन्नपूर्णा का महीना
पवित्र महीना



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छतें
स्वेटर बुन रही हैं
भाभियों वाली,
बतकही, चुगली
कड़कती
चाय की प्याली,
लाँन में
हर फूल
खुशबू और गमला है.





नियति कैसी हुई है अपनी
प्राण, दास बनकर बैठा है
सतत् संघर्ष भरा है पथ में
दुर्बल तन-मन ऊब चुका है।
शीत पवन के शक्ति बल से
थककर मैं तो गिरी बहुत हूं





एक दिन यह सब भी बदल गया। बायर नाम के एक जरमन केमिकर ने 1865 में डामर से नीला रंग बना कर दिखा दिया। यह माट के नीले रंग का पहला तोड़ था। नीलीसन्धान की नई विधि - सिंथेटिक डाई। कुछ बरसों बाद कार्ल ह्यूमेन नाम के दूसरे जरमन ने इसके बड़े पैमाने पर उत्पादन को सम्भव कर दिखाया। सस्ता, सुंदर एवं टिकाऊ रंग। परिणाम ये हुआ कि बीस ही सालों में बाजार का 95 फीसदी नील डामर का बना हुआ था। जाहिर है, माट उठाने की रीत उठ गई। यों, कुछ रंगारे अब भी माट में नील रंगते हैं। परन्तु उनमें भी नील घोली जाती है सज्जी-सोडे आदि से। एकदम साफ सुथरे ढंग से। बाकी रंगों की ही मानिंद।






घाघ व भड्डरी की कहावतें प्रसिद्ध हैं, जहां घाघ ने नीति, खेती व स्वास्थ्य संबंधी कहावतें कहीं है वहीं भड्डरी ने ज्योतिष, वर्षा आदि से संबंधित कहावतें कहीं हैं, यदि हम घाघ का अर्थ खोजते हैं तो घाघ किसी हठी, जिद्दी व्यक्ति को कहा जाता है, वहीं यदि हम भड्डरी के अर्थ को देखते हैं तो इसका शाब्दिक अर्थ भंडार का अध्यक्ष होता है, वैसे ये एक हिन्दू जाति में लगाया जाने वाला ‘‘सरनेम’’ भी है।

प्रातकाल खटिया से उठि के पिये तुरन्ते पानी।
वाके घर मा वैद ना आवै बात घाघ कै जानी।।
*****
क्वार करैला चैत गुड़, भादौं मूली खाय।
पैसा खरचै गांठ का, रोग बिसावन जाय।।
****
चैते गुड़ बैसाखे तेल, जेठ में पंथ अषाढ़ में बेल।
सावन साग न भादों दही, क्वारे दूध न कातिक मही
*****
सावन हरैं भादौं चीता, क्वार मास गुड़ खाहू मीता।
कातिक मूली अगहन तेल, पूस में करे दूध सो मेल।
माघ मास घी खिचरी खाय, फागुन उठि के प्रात नहाय।
चैत मास में नीम सेवती, बैसाखहि में खाय बसमती
जेठ मास जो दिन में सोवे, ताको जुर अषाढ़ में रोवे।





टोली संग निकलते फरियादें करने  
बन जाते बाहुबली  चुनाव के बाद।

सभाएं करते हैं बड़े बड़े वादे करने  
बन जाते घोटालेबाज चुनाव के बाद।

बस


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