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बुधवार, 10 मई 2023

3753..कांच के उपहार ..

 ।। ऊषा स्वस्ति।।


हार गए वे, लग गई इलेक्शन में चोट।
अपना अपना भाग्य है, वोटर का क्या खोट?
वोटर का क्या खोट, ज़मानत ज़ब्त हो गई।
उस दिन से ही लालाजी को ख़ब्त हो गई॥
कह ‘काका’ कवि, बर्राते हैं सोते सोते।
रोज़ रात को लें, हिचकियाँ रोते रोते॥
काका हाथरसी

बदलते परिवेश,पहर, प्रश्नों के बीच कुछ पल बिना विवाद के बस यहीं पर, नज़र डालें ...✍️

लट्टू गए तो साथ में कंचे चले गए.
बजते थे जिनके नाम के डंके चले गए.

नाराज़ आईना भी तो इस बात पर हुआ,
दो चार दोष ढूँढ के अन्धे चले गए.
⚜️




समझौता कहें या मजबूरी , शब्दों की है
कारीगरी, वास्तविकता ये है कि
उन दो स्तंभों के मध्य की
दूरी, रस्सियों से थी
पूरी, ज़िन्दगी
ने जिसे तय किया, व्यक्तित्व मेरा क्या -

⚜️

दीदार की नर्म #आंच में !


क्या तुम्हे है पता , कोई तुम्हे है देखता .

#दीदार की नर्म #आंच में, दिलों को है #सेकता।

रहते हो काम में अपने व्यस्त,

बूंदें पसीने की गिरती हो टप टप,

और उलझी उलझी सी रहती है लट,

पर तुम्हे देखकर कोई रहता है मस्त।

⚜️

अनायास मन में आईं कुछ पंक्तियां....

 १. कुछ लम्हों ने तान छेड़ी फिर

      वो लाएं हैं उन्हें हृदय में फिर

       जिनमे है दर्द चुप्पी और निराशा।

        आशा! हां इसी के लिए यूं जी रहा था मैं

⚜️

बुढ़ापा ऐसा आया है ,
हो गई प्यार की छुट्टी 
रोज हीअब तो लगती है,
हमें इतवार की छुट्टी 

झगड़ते ना मियां बीवी
⚜️
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत दिनों बाद काका को पढ़ा
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. आदरणीय मेम ,
    मेरी लिखी रचना ब्लॉग "दीदार की नर्म आंच में" को इस मंच में स्थान देने के लिए बहुत धन्यवाद ।
    सभी संकलित रचनाएं बहुत ही उम्दा है सभी आदरणीय को बधाइयां ।
    सादर ।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर एवं मनभावन संकलन...मन में जाग गयी नयी तरंग

    जवाब देंहटाएं

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