।।उषा स्वस्ति।।
"उषे!बतला यह सीखा हास कहाँ?
इस नीरस नभ में पाया है
तूने यह मधुमास कहाँ?
अन्धकार के भीतर सोता
था इतना उल्लास कहाँ?
सूने नभ में छिपा हुआ था
तेरा यह अधिवास कहाँ?
यदि तेरा जीवन जीवन है
तो फिर है उच्छ्वास कहाँ?
अपने ही हँसने पर तुझको
क्षण भर है विश्वास कहाँ?"
-रामकुमार वर्मा
हमारे जीवन भी कुछ ऐसें ही प्रश्नों से भरी है..
सवेरे -सवेरे की उजास भरी बातों के
साथ लिंकों पर नजर डालें...
जिसमें रचनाकारों के नाम क्रमानुसार पढ़ें..✍
साथ लिंकों पर नजर डालें...
जिसमें रचनाकारों के नाम क्रमानुसार पढ़ें..✍
💢💢
आदरणीय चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल
आदरणीय पलाश जी,
आदरणीया अनुराधा चौहान जी,
आदरणीया रश्मि शर्मा जी,
आदरणीय डॉ जफ़र जी
मेरे ही लिए क्यूँ के रस्ता न जाने
मैं हूँ वह के जो आबलो पा न जाने
तेरे सिम्त होता है अल्लाह क्या क्या
यहाँ पे तो होता है क्या क्या न जाने
नज़र की हो तेरे इनायत है ख़्वाहिश..
कोई साथ रहने लगा, शहर-ए-ख्यालों में
रातें करवटें औ ख्वाब बदल रहे आजकल
वो जवाब बन आने लगा, मेरे सवालों में
जिक्र करना भी है, औ छुपाना भी सबसे
बेसबब नही तेरा आना, मेरी मिसालों में
चंद रोज की हैं मुलाकातें, उनकी अपनी
महसूस हुआ, जो होता नही है सालों में..
ज़िंदगी की चादर पर
कितना भी झाड़ों,फटको
बिछाकर सीधा करो
कहीं न कहीं से कोई
समस्या आ बैठती
निचोड़ती,सिकोड़ती..
अभी कुछ बाक़ी है ......
तुम भूल गए कल की बातें
या याद अभी कुछ बाक़ी है !!
पथरा गए एहसास सभी
या प्यार अभी कुछ बाक़ी है..
जनता मफ़लर,पंखी में सिमटती रही,
नेताजी को सिगड़ी का पुख्ता इंतेज़ाम जारी रहा,
लोग स्टार नाईट को तरसते रहे देर तक,
उनका चुनावी पैगाम जारी रहा,
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍