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बुधवार, 31 जुलाई 2019

1475.. अभी कुछ बाक़ी है ......


।।उषा स्वस्ति।।


"उषे!बतला यह सीखा हास कहाँ?
इस नीरस नभ में पाया है
तूने यह मधुमास कहाँ?
अन्धकार के भीतर सोता
था इतना उल्लास कहाँ?
सूने नभ में छिपा हुआ था
तेरा यह अधिवास कहाँ?
यदि तेरा जीवन जीवन है
तो फिर है उच्छ्वास कहाँ?
अपने ही हँसने पर तुझको
क्षण भर है विश्वास कहाँ?"
-रामकुमार वर्मा
हमारे जीवन भी कुछ ऐसें ही प्रश्नों से भरी है..
सवेरे -सवेरे की उजास भरी बातों के
साथ लिंकों पर नजर डालें...
जिसमें रचनाकारों के नाम क्रमानुसार पढ़ें..✍
💢💢
आदरणीय चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल
आदरणीय पलाश जी,
आदरणीया अनुराधा चौहान जी,
आदरणीया रश्मि शर्मा  जी,
आदरणीय डॉ जफ़र जी

💢💢


मेरे ही लिए क्यूँ के रस्ता न जाने

मैं हूँ वह के जो आबलो पा न जाने
तेरे सिम्त होता है अल्लाह क्या क्या

यहाँ पे तो होता है क्या क्या न जाने
नज़र की हो तेरे इनायत है ख़्वाहिश..

💢💢

कोई साथ रहने लगा, शहर-ए-ख्यालों में

रातें करवटें औ ख्वाब बदल रहे आजकल
वो जवाब बन आने लगा, मेरे सवालों में

जिक्र करना भी है, औ छुपाना भी सबसे
बेसबब नही तेरा आना, मेरी मिसालों में

चंद रोज की हैं मुलाकातें, उनकी अपनी
महसूस हुआ, जो होता नही है सालों में..

💢💢



ज़िंदगी की चादर पर
कितना भी झाड़ों,फटको
बिछाकर सीधा करो
कहीं न कहीं से कोई 
समस्या आ बैठती
निचोड़ती,सिकोड़ती..
💢💢

तुम भूल गए कल की बातें
या याद अभी कुछ बाक़ी है !!
पथरा गए एहसास सभी
या प्यार अभी कुछ बाक़ी है..
💢💢

जनता मफ़लर,पंखी में सिमटती रही,
नेताजी को सिगड़ी का पुख्ता इंतेज़ाम जारी रहा,

लोग स्टार नाईट को तरसते रहे देर तक,
उनका चुनावी पैगाम जारी रहा,
💢💢
हम-क़दम का नया विषय
💢💢
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍

मंगलवार, 30 जुलाई 2019

1474...सादगी पूर्ण जीवन, ज़िंदगी का सार समझाता है

सादर अभिवादन
आज कोई गलती नही हुई
रोज थोड़े न ही होती है गलतियाँ...


चलिए पढ़ें आज की रचनाएँ.....

साँझ के बादल - धर्मवीर भारती

नीलम पर किरनों 
की साँझी 
एक न डोरी 
एक न माँझी ,
फिर भी लाद निरंतर लाती 
सेंदुर और प्रवाल!


बोलते हैं ये चेहरे....अजय कुमार झा

हे
मधुसुदन_
नाग_नाथन_हार
मैं हूँ 
एक कोई भी_
बेहद खूबसूरत ‘जवान’_लड़की_
रंग, सुगन्ध_अलबत्ता_
अलग ही है मेरी
अलबेली रचते हो तुम_


पुष्प कुटज के .... शशि पुरवार

श्वेत चाँदनी पंख पसारे 
उतरी ज्यों उपवन में 
पुष्प कुटज के जीवट लगते 
चटके सुन्दर, वन में

श्वेत श्याम सा रूप सलोना 
फूल सुगन्धित काया 
काला कड़वा नीम चढ़ा है 
ग्राही शीतल माया
छाल जड़ें और बीज औषिधि 
व्याधि हरे जीवन में 
पुष्प कुटज के जीवट लगते 
चटके सुन्दर, वन में

'भारतरत्न' डॉ. ए.पी.जे.अब्दुल कलाम ...अनीता सैनी 

व्यक्तित्व में झलकता नूर,
जीवन कोहिनूर-सा चमकता है ,
इंसान के लिबास में,
धरा पर आया  फ़रिश्ता,
कर्तव्यनिष्ठा का पाठ उनकी  छवि में झलकता है |

मेहंदी के रंग ....अनुराधा चौहान

नारी का असीम स्नेह है मेहंदी,
प्रीतम का अगाध प्यार है मेहंदी।
बिना मेहंदी कोई रौनक नहीं,
त्यौहारों की शान है मेहंदी।

उत्सवों की परंपरा है मेहंदी,
युवतियों की जान है मेहंदी।
मेहंदी मिटकर भी चहेती है,
नारी के जीवन का रंग है मेहंदी।

क्या कोई सुन सकता है ...रेवा

मन के अंदर छुपी बैठी वो 
अलिखित कविता 
वो मन के कोने में बैठा 
एक छोटा सा बच्चा

महीने भर का हिसाब किताब 
और उसमे छिपा बचत
उस बचत से जाने 
क्या कुछ न ख़रीद लेने की 
योजनाएं
.......

अब बारी विषय की
आज का विषय इसी अँक से
विषय
मेंहदी
उदाहरण

नारी का असीम स्नेह है मेहंदी,
प्रीतम का अगाध प्यार है मेहंदी।
बिना मेहंदी कोई रौनक नहीं,
त्यौहारों की शान है मेहंदी।
रचनाकार-आदरणीय अनुराधा चौहान

अंतिम तिथि- 03 अगस्त 2019
प्रकाशन तिथि- 05 अगस्त 2019
प्रविष्ठियाँ ब्लॉग सम्पर्क प्रारूप में ही मान्य
कृपया ब्लॉग आई डी अवश्य लिखें
सादर
यशोदा













सोमवार, 29 जुलाई 2019

1473...हम-क़दम का इक्यासिवाँ अंक.....सिगरेट...धूम्रपान निषेध अंक

स्नेहिल अभिवादन
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सोमवारीय विशेषांक में आप सभी का स्वागत है।
सिगरेट
प्रोफ़ेसर वेस्ट कहते हैं कि सिगरेट की लत पड़ने की वैज्ञानिक वजह है. असल में तंबाकू में एक केमिकल होता है जिसका नाम है-निकोटिन. जब आप सिगरेट का धुआं अपने अंदर खींचते हैं, तो आपके फेफड़ों की परतें, इस धुएं से निकोटिन सोख लेती हैं. कुछ ही सेकेंड के अंदर ये निकोटिन आपके दिमाग़ की नसों तक पहुंच जाता है. निकोटिन के असर से हमारा दिमाग़, डोपामाइन नाम का हार्मोन छोड़ता है. इससे हमें बहुत अच्छा एहसास होता है.
तंबाकू में पाया जाने वाला निकोटिन हमारे दिमाग़ के उस हिस्से पर नियंत्रण कर लेता है, जिसके ज़रिए हम सोच-विचार करते हैं. फ़ैसला लेते हैं. जब निकोटिन दिमाग़ तक पहुंचता है, तो ये बस हमारे दिमाग़ की सोचने-समझने की ताक़त छीन लेता है. फिर ये हमारे दिमाग़ को बार-बार सिगरेट-बीड़ी या तंबाकू का दूसरा नशा करने के लिए उकसाता है.
अतः सिगरेट पीना
अनेक प्रकार की असाध्य और कष्टकारी शारीरिक और मानसिक बीमारियों को न्योता देना है।

आज की लिखी उपर्युक्त भूमिका संकलित है।
यह अंक यशोदा दी के  सहयोग के द्वारा 
संयोजित किया गया है। 
★★★
तो चलिए पढ़ते है हम
आज की रचनाएँ

शुरुआत कालजयी रचनाओं से
स्मृतिशेष अमृता प्रीतम..
1919-2005
यह आग की बात है
तूने यह बात सुनाई है
यह ज़िंदगी की वो ही सिगरेट है
जो तूने कभी सुलगाई थी

चिंगारी तूने दे थी
यह दिल सदा जलता रहा


आदरणीय सजीव सारथी
तलब से बेकल लबों पर,
मैं रखता हूँ - सिगरेट,
और सुलगा लेता हूँ चिंगारी,
खींचता हूँ जब दम अंदर,
तो तिलमिला उठते हैं फेफडे,
और फुंकता है कलेजा,
मगर जब धकेलता हूँ बाहर,
निकोटिन का धुवाँ,
वक़्त कलम पकड़ कर
कोई हिसाब लिखता रहा

क्यों मौत बुला रहे हो? ... शम्भूनाथ
क्यों कश लगा रहे हो, 
धुआं उड़ा रहे हो।   
अपने आप अपनी, 
क्यों मौत बुला रहे हो।।

क्यूं यार मेरे खुद ही, 
खुद का गला दबा रहे हो। 

◆◆◆◆◆◆◆

ब्लॉग सम्पर्क प्रारूप द्वारा प्राप्त रचनाएँ
आदरणीय सुबोध सिन्हा

दोषी मैं कब भला !?
साहिब !
मुझ सिगरेट को कोसते क्यों हो भला ?
समाज से तिरस्कृत ... बहिष्कृत ...
एक मजबूर की तरह
जिसे दुत्कारते हो चालू औरत या
कोठेवाली की संज्ञा से अक़्सर ....

◆◆◆◆◆◆◆◆

आदरणीया अनुराधा चौहान
रोगों से जब घिरे
तब आँखें खुली और आया याद
यह बीमारी नहीं
यह तो सिगरेट की है सौगात
हीरोगिरी के चक्कर में
बनाते रहे धुंए के छल्ले

◆◆◆◆◆◆◆◆

आदरणीया साधना वैद
धूम्रपान ....

लग जानी है
अब उपचार में
दौलत सारी

नहीं निशानी
सिगार सिगरेट
मर्दानगी की

◆◆◆◆◆◆

आदरणाया आशा सक्सेना
सिगरेट  .....

अधरों के बीच दबा सिगरेट 
खूब धुएँ के छल्ले निकाले 
पर कभी न सोचा कितना धुआँ
घुसेगा शरीर के रोम रोम में !
श्वास लेना भी दूभर होगा 
खाने में भयानक कष्ट 
◆◆◆◆◆◆◆

आदरणीया अभिलाषा चौहान
जिंदगी सिगरेट- सी

धीमे-धीमे सुलगती,
जिंदगी सिगरेट-सी।
तनाव से जल रही,
हो रही धुआं-धुआं।
◆◆◆◆◆◆

आदरणीया अनीता सैनी

सिगरेट के कस का कमसिन दम
सिगरेट के कस  का  कमसिन दम,
महकते  जीवन  में लगा  कम, 
धुँए   में  उड़ा  ज़िंदगी, 
ज़ालिम धुँए में  गया   रम  |

◆◆◆◆◆◆◆
आशा है आपको हमक़दम का यह अंक
अच्छा लगा होगा।
आप सभी की प्रतिक्रिया अपेक्षित है।
हमक़दम के नये विषय में जानने के लिए 
कल का अंक पढ़ना न भूलें।
कल आ रही हैं यशोदा दी।

#श्वेता सिन्हा

रविवार, 28 जुलाई 2019

1472....कुछ देर के लिए ही, ज़ुबान मिल जाये ।।।

जय मां हाटेशवरी......
सादर अभिवाादन.....
एक प्रसंग के अनुसार एक दिन एक युवक  स्वामी विवेकानंद  के पास आया। उसने कहा- मैं आपसे गीता पढ़ना चाहता हूं। स्वामीजी ने युवक को ध्यान से देखा और कहा- पहले छ: माह प्रतिदिन फुटबॉल खेलो,‍ फिर आओ, तब मैं गीता पढ़ाऊंगा।
 युवक आश्चर्य में पड़ गया। गीताजी जैसे ‍पवित्र ग्रंथ के अध्ययन के बीच में यह फुटबॉल कहां से आ गया? इसका क्या काम? स्वामीजी उसको देख रहे थे।
 उसकी चकित अवस्था को देख स्वामीजी ने समझाया- बेटा! भगवद्गीता वीरों का शास्त्र है। एक सेनानी द्वारा एक महारथी को दिया गया दिव्य उपदेश है। अत: पहले शरीर का
बल बढ़ाओ। शरीर स्वस्थ होगा तो समझ भी परिष्कृत होगी। गीताजी जैसा कठिन विषय आसानी से समझ सकोगे।
 जो शरीर को स्वस्थ नहीं रखता, सशक्त-सजग नहीं रख सकता अर्थात् जो शरीर को नहीं संभाल पाया, वह गीताजी के विचारों को, अध्यात्म को कैसे संभाल सकेगा। उसे पचाने
के लिए स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन ही चाहिए। गीता के अध्यात्म को अपने जीवन में कैसे उतार पाएगा?
अब देखिये आज के लिये मेरी पसंद.....


दोहे "देंगे मिटा गुरूर"
 अपने सेनाध्यक्ष ने, किया यहाँ ऐलान।
पूरा ही कश्मीर है, भारत का उद्यान।।
--
महिला हों या पुरुष हों, सभी आज उन्मुक्त।
यही कामना कर रहे, न्याय मिले उपयुक्त।।
--
अब आधा कश्मीर है, हमें नहीं मंजूर।
पी.ओ.के. को छीनकर, देंगे मिटा गुरूर।।


कंगन भी कटार हो जाता है जी ..
जव मुंह चुराने लगे वफ़ादारी,
मंगल भी इतवार हो जाता है जी -
जब प्यास खून से बुझने लगे ,
सूना-सूना संसार हो जाता है जी -



कानून - 1919 में पारित रौलेट एक्ट का इतिहास और उसका स्वाधीनता संग्राम पर प्रभाव / विजय शंकर सिंह
यह एक्ट ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में उभर रहे आज़ादी के राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलने के उद्देश्य से  बनाया गया था। इस कानून में कुछ प्राविधानों के अनुसार सरकार को यह अधिकार प्राप्त हो गया था कि वह किसी भी भारतीय पर अदालत में बिना मुकदमा चलाए उसे जेल में बंद कर सकती है। इस क़ानून के तहत अपराधी को उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करने वाले का नाम जानने का अधिकार भी समाप्त कर दिया गया था।

वाह रे पागलपन
खड़ा होता हूँ
मौजूदा जीवन की सावनी फुहार में
झुलस जाता है
भीतर बसा पागलपन
जानता हूं
तुम भी झुलस जाती होगी
स्मृतियों की 
सावनी फुहार में--

अज्ञातवास - -
है डेरा, फिर तुम्हारे स्पर्श से जग उठे हैं सीने
के अनगिनत अज्ञातवास। क्या यही है
इंगित पुनर्जीवन का या फिर कोई
ख़्वाबों का उच्छ्वास। वो
शबनमी अनुराग है
कोई, या घुमन्तु
मेघ, हाथ
बढ़ाते सिर्फ़ दे जाए एक सिक्त अहसास, - - -

ख्यालों में
बैचैनियां तडपती है और सुकून मिलता है
कुछ अलग सा है ये हाल, गुजरे हालों मे
वो घडी कोई नही, कि हम नशे में न हो
अजब कशिश है उन निगाहों के प्यालों में
वक्त काफी गुजरता है उनके ख्यालों में
कोई साथ रहने लगा है शहर में.

कुछ देर के लिए ही, ज़ुबान मिल जाये ।।।
उसकी गहराइयों में डुबकियां लगाती हूँ
दुख से छिटककर एक अलग पगडंडी पर,
नए अर्थ तलाशती हूँ,
अवश्यम्भावी मृत्यु से पहले,
अकाट्य सत्य लिखने की कोशिश करती हूँ,
ताकि अनकहे,अनलिखे लोगों के चेहरे पर,
एक मुस्कान तैर जाए,

धन्यवाद।

शनिवार, 27 जुलाई 2019

1471..सावन


सावन में अब ना रहा...पहले जैसा सार
ना झूला ना पाटली... कजरी ना मल्हार
बदरा बैरी हो रहे... देती बरखा पीर
बिन पिय के भाये नहीं...चुभती कुटिल बयार
©अंकिता कुलश्रेष्ठ (आगरा)

सावन में बदरा छेड़े मन के तार,
विरह में तड़पे बहुरि गंगा के पार,
बरखा में भींग छुपाये अपने अश्रु,
मन करत सजना से करे मिल के प्यार।
©प्रभास सिंह (पटना)

ek kavita roz: baarish aane se pehle by gulzar

सबको यथायोग्य
प्रणामाशीष

चढ़ता वेग ऊँची पेंग ढ़लता पेग सब सावन में सपना
टिटिहारोर कजरीघोर छागलशोर अब सावन में सपना
व्हाट्सएप्प सन्देश वीडियो चैट छीने जुगल किलोल
वो झुंझलाहट कब हटेगा मेघ है जब सावन में सपना

VILLAGE VOICE,VILLAGE STORY,VILLAGE ISSUE
“फैली खेतों में दूर तलक
मखमल सी कोमल हरियाली..”
मल्लब कि जिन घासों को बैल और गधे तक नहीं चरते
उनका भी सौंदर्य आज देखते बन रहा है. जिन पेड़ों के पत्ते
बसन्त की भी नहीं सुनते वो सावन में हरियरी के मारे नाच रहें हैं…

सावन
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बरस बरस दिल जमके भीगा,
बूँदों पे है कैसी मस्ती छाई,
क्यों है ये जुदाई मुझपे आई,
यूँ ना बरसो मुझे मत तड़पाओ,
मेरे प्यार को ज़रा बुलाके लाओ,

सावन
बारिश पर कविता
आस्मां के बुलावे पर जब जब
श्वेत वस्त्र धारण कर उपर पहुची
दुनिया पूकार उठी बादल बादल
याद सताने लगी यार की बुंदों को
मशाल जला तब देखा बुंदों ने निचे
चोंच खोल पक्षी तलाश रहे बुंदों को

सावन


था भीगा-सा आँचल, थी गालों पर बूँदें,
मन में थी कोई हलचल, थी दिल में उम्मीद।
मेरे गर्म हाथों में, तेरा नर्म हाथ था,
तू थी पास इस कदर, जैसे जन्मों का साथ था।
दोनों भीग रहे थे, नज़दीकियाँ बढ रही थी,

एक टूटी अभिलाषा
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सावन की रिमझिम है फीकी
इस इन्द्रधनुष के रंग भी
सपनों ने अब साथ है छोड़ा
नहीं आज कोई मेरे संग भी
नहीं देता कोई मुझे दिलासा !


><
आज अब बस...
अब विषय देखिए ये भी 
कुछ अनोखा सा ही है
इक्यासिवां विषय
धूम्रपान निषेध
सिगरेट
इनको देखो ज़रा - 
ये दिवाली पर अस्थमा की मरीज़ बन जाती है 
और सुट्टे लगाते वक्त तंदरुस्ती की चमकार। 
इसकी अम्मा इससे भी दस कदम आगे बढ़ गई है, 
वो सिगार फूंक रही है जमाई के साथ। 
ये हैं हिंदुस्तानी महिलाओं की रोल मॉडल। 
क्या बात! क्या बात! क्या बात! 
इन माँ-बेटी के मुंह पर एक ज़ोरदार झन्नाटेदार लात। 
भक्क! साली मक्कार, झूठी, पाखंडी औरत।
...........
उपराक्त चित्र फेसबुक वाल से
सौजन्यः तुषार राज रस्तोगी

प्रेषण तिथि- 27 जुलाई 2019 तीन बजे तक
प्रकाशन तिथि- 29 जुलाई 2019
प्रस्तुतियाँ ब्लॉग सम्पर्क प्रारुप पर ही मान्य




शुक्रवार, 26 जुलाई 2019

1470...अपना ही लद्दाख है, अपना ही कशमीर।

स्नेहिल नमस्कार
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कारगिल दिवस

 भारतीय सैनिकों की शौर्यगाथा से जुड़ा 
एक अविस्मरणीय दिन है।
60 दिन तक चले भारत-पाक युद्ध का अंत
26 जुलाई 1999 को हुआ।
कारगिल में शहीद हुये
सैनिकों के सम्मान और विजयोपहार
को याद करने के लिए यह दिन 
कारगिल दिवस के रुप में 
घोषित किया गया।
वैसे तो हम देशवासियों का 
हर दिन हर पल 
इन वीर जवानों का कर्ज़दार है।
सैनिकों के त्याग और बलिदान 
के बल पर हम अपनी सीमाओं में सुरक्षित
जाति-धर्म पर गर्व करते हुये
सौ मुद्दों पर आपस में माथा फुटौव्वल करते रहते हैं।
अपने देश में अपनी सुविधा में उपलब्ध चारदीवारी में  
चैन की नींद सो पाते हैं
तो बस हमारे सीमा प्रहरियों की वजह से।
 सिर्फ़ दिन विशेष ही नहीं
अपितु हर दिन एक बार 
हमारे वीर जवानों का उनके कर्तव्य के नाम पर किये गये बहुमूल्य बलिदानों के लिए हृदय से हमें धन्यवाद 
अवश्य करना चाहिये।
तो चलिए पढ़ते हैं कुछ रचनाएँ
जो विशेषतः आज के दिन के लिए
शब्दबद्ध की गयी हैंं-
★★★★★★
आदरणीय रुपचंद्र शास्त्री जी
कारगिल विजय दिवस

सैन्य ठिकाने जब हुए, दुश्मन के बरबाद।
करगिल की निन्यानबे, हमें दिलाता याद।
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अपना ही लद्दाख है, अपना ही कशमीर।
कभी न देंगे पाक को, हम अपनी जागीर।।


★★★★★★

आदरणीय विश्वमोहन जी
कारगिल की यही कहानी

स्वयं काली ने खप्पर लेकर,
चामुंडा संग हुंकार किया।
रक्तबीजों को चाट चाटकर,
पाकिस्तान संहार किया।

'द्रास', 'बटालिक' बेंधा हमने
'तोलोलिंग' का पता लिया।
मारुत-नंदन 'नचिकेता' ने
यम का परिचय बता दिया।


आदरणीया कुसुम जी
कारगिल विजय

राहें विकट,हौसले बुलंद थे,
चीरते सागर का सीना
पांव पर्वतों पर थे,
आंधी तुम तूफान तुम
राष्ट्र की पतवार तुम।

हो शान देश की
मशाल तुम ,मिशाल तुम।

★★★★★★
आदरणीया अनिता सैनी जी
कारगिल पर था तिरंगा लहराया

हर आहट पर सिहर उठे मन,
 फिर तू यादों में उमड़ आया,
लहराया तिरंगा  जिस शान से, 
वह दृश्य फिर आँखों में उभर आया |
क़ुर्बानी  पर क़ुर्बत यह जन्म,
चौखट पर तेरा चेहरा  नज़र आया ,
शौर्य  को  संभाला दिल ने ,
साँसों में वही जूनून उभर आया |
★★★★★★★
आदरणीय रवींद्र जी

जब पींगें बढ़ी मित्रता की 
था फरवरी महीना,
पाकिस्तानी सेना को रास न आया 
दो मुल्कों का अमन से जीना। 

उधर धीरे-धीरे रच डाला  
साज़िश मक्कारी का खेल, 
साबित किया पाकिस्तान ने 
मुमकिन नहीं केर-बेर का मेल।

★★★★★★
आदरणीया अनुुुराधा जी

गोली,बम,धमाकों की आवाज़ से 
कारगिल की चोटी गूँज उठी
वीरों के लहु से लहुलुहान हो
भारत माता सिसक उठी
वीर अड़े रहे और लड़ते रहे
पाकिस्तान को हराकर रुके
दुश्मनों को मार गिराया

★★★★★★
आदरणीया अभिलाषा जी

मातृभूमि के दीवानों ने,
प्राण अपने वार दिए,
विजय का हार लिए,
तिरंगे के मान रखा !
कारगिल पर पांव रखा !
देश की करके रक्षा,
पूरी कर ली अपनी इच्छा,
बहनों की नम आंखें हुईं,
मां-बाप की खुशियां खोईं,

★★★★★★

आज का यह अंक आपको
कैसा लगा
कृपया अपनी बहुमूल्य
प्रतिक्रियाओं के द्वारा अपने विचार अवश्य रखें।

हमक़दम का विषय है

कल का अंक पढ़ना न भूलेंं
कल आ रही हैं विभा दी अपनी विशेष
प्रस्तुति के साथ

गुरुवार, 25 जुलाई 2019

1469..भेजा है आकाँक्षाओं को लपेटकर हमने चंद्रयान-2 अपना...



सादर अभिवादन। 

भेजा है 
आकाँक्षाओं को 
लपेटकर हमने 
चंद्रयान-2 अपना,
लिख रहा भारत 
नई इबारत 
सच होगा 
एक और सपना। 
-रवीन्द्र 

आइये अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें- 

सुनो चाँद !-- कविता.......रेणुबाला 

चंद्रयान के चित्र के लिए छवि परिणाम

बहुत भरमाया सदियों तुमने ,
गढ़ी झूठी कहानी थी;

 थी वह तस्वीर एक धुंधली  ,

नहीं  सूत कातती नानी थी;

युग_युग से बच्चों के मामा -
 क्या कभी आये लाड़ लगाने?चाँद !

  




यही कारण है कि 
मैं हमेशा होता हूँ शोक में 
किसी के जीवित रहते हुए भी 
किसी के मृत्यु को प्राप्त करते हुए 
क्योंकि हर पल मर रही है मनुष्यता  !




जाने आज भी तुम्हारी 
मुस्कराहटों का तिलिस्म, मुझे मरने 

नहीं देता, लगे सांसों के इर्द गिर्द 

कोई अमरबेल तुम्हारा ही 

है लगाया सा। कहाँ 
से लाएं पहली 
सी चाहत
उम्र के साथ आईना भी लगे है धुंधलाया सा। 




प्रसव पीड़ा से 
छटपटाती माँ की तरह
पीकर विष का घूँट
रखकर मान-अपमान परे
संतान की खुशियाँ
जुटाने के लिये 
निरंतर कर्मशील
बिना चीखे
वो सहता रहता है
सपनेे जन्मने के बाद भी
आजीवन
प्रसव का दर्द।




मधुर स्वर में रिझाना हो ,
कोई गान प्रीत का गाना हो,
रिमझिम बरसती घटाओं को,
गुफ़्तुगू  में उलझाना हो,
शब्दों के भँवर में उलझ,
ख़ामोश रह जाती हूँ मैं |




हम-क़दम का नया विषय




आज बस यहीं तक 
फिर मिलेंगे अगले गुरूवार। 

रवीन्द्र सिंह यादव