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शनिवार, 17 दिसंबर 2016

519 .... आपदा




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सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष


लीले
आपदा
सनै सनै
दंड वरदा
बदहाल जीव
लहुलुहान चेन्नै
ना !
चारा
सम्पत्ति
परिवृत्ति
चले कुचाल
कर्म दिष्ट धारा
शक्ति फल विपत्ति



विभूति दुग्गड़ मुथा



न चाहते हुए भी धन जला रहे हैं लोग
नोटों की गड्डियां गंगा में बहा रहे हैं लोग

बदलाव भी चाहते हैं
और बदलना भी नहीं चाहते, ये कैसी चाहत है



को अहम्


वह बात जो छूटी है
वह लम्हा जो ठहरा है

एक लम्स जो बाक़ी है













तेरा वहम जायज है,
मेरे मन में चोर है.

मां की दुआएं साथ हैं,
उजाला चारों ओर है.






मैं कलकत्ता में हूँ


देश कतार में है


फिर मिलेंगे ..... तब तक के लिए

आखरी सलाम


विभा रानी श्रीवास्तव




6 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात दीदी
    सादर नमन
    हरदम की तरह एक
    अनूठा संकलन
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. मेरी रचना "अभी मस्त चांदनी है" शामिल करने के लिए धन्यवाद विभा जी...

    जवाब देंहटाएं
  3. मेरी रचना "अभी मस्त चांदनी है" शामिल करने के लिए धन्यवाद विभा जी...

    जवाब देंहटाएं
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