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बुधवार, 30 सितंबर 2015

अनमोल है बेटी और शिक्षा का महत्त्व---अंक 74


जय मां हाटेशवरी...

आज  के आनंद की हलचल   में आपका स्वागत है।

श्राद्ध आरम्भ हो चुके हैं।
ये समय है उन लोगों को याद करने का...
जो हमारे पूरवज हैं...
जिनकी कुर्वानी से आज हमारा सुखद आज है...
जिन्हे हम भूल चुके हैं...
श्राद्ध  का हमारी संस्कृति में बहुत महत्व है...
हमारी संस्कृति में सब को मान दिया है...
जीते जी भी और मरने के बाद भी...
चलते हैं...आज की हलचल की ओर....

अनमोल है बेटी
बेटी जो संतान तेरी , तो तूने किया धरा पर उपकार
कन्यादान है बेटी , महादान है बेटी , बेटी करे तेरा उद्धार
बेटी करे तेरा जनम सफल , होगी तेरी भी नैया पार
समझ सके तो समझ ले , बेटी की महिमा का सार
कहे हित, जिसने इसको ठुकराया, उसका जनम समझो बेकार


कोई रंगीन सी उगती हुई कविता.... फाल्गुनी
सिर्फ जानते हो तुम
और तुम ही दे सकते हो
कोई रंगीन सी उगती हुई कविता
इस 'रंगहीन' वक्त में....




इंदौर: कभी पी नहीं, फिर भी कर रहे शराब की बुराई
दो दिन पहले इंदौर में बकरीद पर हुई नमाज के बाद अपनी तकरीर में शहर काजी ने कहाकि कुछ स्थानों पर मुश्लिम महिलाएं नशे का सेवन कर रही हैं, उन्हें इससे दूर
रहना चाहिए। हालाकि नशा करना ठीक नहीं है, ये बात सौ प्रतिशत सही है, पर मुझे पता नहीं क्यों लगता है कि अब मुश्लिम महिलाएं भी देश की मुख्यधारा से जुड़ने की
कोशिश कर रही हैं।

शिक्षा का महत्त्व
उसने अपनी  क्षमता को पहचाना 
थी सब के मुंह पर एक ही बात
बेटी हो तो ऎसी हो
शिक्षा का महत्व जानती हो

भगवान के भी नहीं ...

संभावनाओं के युग मे असीमित समभावनाओ
के संसार मे
सोच को विस्तारित  करने का  वक्त है शायद
सडी   गली मान्यताओं को
तिलांजलि देने का वक्त है शायद
गाय हमारी माँ  है  के साथ साथ
जन्म देने वाली माँ के लिए  कर्तव्य  निभाने का वक्त है शायद
मान्यताए कितनी भी  सडी गली क्यों न हों
माँनवता की खुशबू से सराबोर होनी चाहिए
पांच लिंकों का चयन कर चुका था...
तभी मेरी नजर Priti Surana  जी की एक रचना पर गयी...
इस रचना को लिंक किये बिना न रहा गया...
क्योंकि ये रचना एक अटल सत्य बता रही है...
व्यवस्था से हटकर ये अंतिम रचना...


जीवन में दुःख की क्या भूमिका है???
         बहुत सोचने के बाद मुझे तो यही लगता है कि दुःख एक ऐसी परिस्थिति है जिसमें व्यक्ति सही और गलत में से किसी एक को चुनकर कुछ ऐसे फैसले लेता है जो उसकीजिंदगी के सारे गणित बदल कर रख देती है । जो दुःख से डर गया वो पलायन करता है और जो इस डर से जीत गया वो परिस्थियों को अपना गुलाम बनाकर राज करता है ।कोई दुःख
से निराश होकर अपना सब कुछ खोता चला जाता है और कोई दुःख को सुख में बदलने के प्रयास में जीता चला जाता है। कोई दुःख में अपना हुनर भूल जाता है और किसी का दुःख
में हुनर निखर जाता है ।


धन्यवाद...



 

मंगलवार, 29 सितंबर 2015

भूकंप में नहीं गिरते घर....पृष्ठ तिहत्तर

सादर अभिवादन करती है यशोदा




आज अतीव हर्षित हूँ
पाँच लिंकों का आनन्द के

नए चर्चाकार के रूप में 
आदरणीय संजय भास्कर का
स्वागत करती हूँ



चलिए आज सीधे 
पसंदीदा रचनाओं की ओर....


भूकंप में नहीं गिरते घर 
गिरते हैं मकान
मकान ही नहीं गिरते
गिरती हैं उनकी छतें
छतें भी यूँ ही नहीं गिरती


मैं कौन हूँ. 
मेरे चेहरे से 
जो नाम जुड़ा है 
वो किसका है. 
मेरे गले में पड़ी 
नाम की तख्ती पे 
क्या दर्ज है आखिर।


निकले हैं दीवार से चेहरे 
बुझे बुझे बीमार से चेहरे 

मेरे घर के हर कोने में 
आ बैठे बाजार से चेहरे 


आप तो शराब में आकर अटक गए. 
चलो शायद मंत्रीजी चाहते हैं 
दिल्ली वाले झूम बराबर झूम की तरह रहे. 
यहां शराब को बैन करने की मांग होती रही है, 
लेकिन ऐसा लगता है कि मंत्री जी चाहते हैं 
पी ले पी ले ओ मोरी जनता.


अब वक़्त वो नही है जो रिश्तों को रखे कायम।
ज़िंदगी की बढ़ रही है जो रफ़्तार धीरे धीरे।।

आबाद कर दिया अपने बच्चों को उसने लेकिन।
बर्बादी के आ गए उसकी आसार धीरे धीरे।।


तेरे जिस्म में रुह कितना आजाद है हमसे पूछ
किसी मसले का क्या निजाद है हमसे पूछ

तुझे क्यों लगा कि उसका एहसान है तेरा होना
तेरा होकर जीना उसका मफाद है हमसे पूछ


सनम जब तक तुम्हें देखा नहीं था
मैं पागल था मगर इतना नहीं था

बियर, रम, वोदका, व्हिस्की थे कड़वे
तुम्हारे हुस्न का सोडा नहीं था


मतला-
लौट जो आए तिरे दरबार से
मत समझना हम हुए लाचार से

हुस्ने मतला-
नाव तो हम खे रहे पतवार से
क्या बचा पाएँगे इसको ज्वार से





आज्ञा दें यशोदा को..
फिर मिलेंगे..













सोमवार, 28 सितंबर 2015

पागलपन में सभी कुछ, होता बिल्कुल माफ...अंक बहत्तर

तुम्हें नींद नहीं आती 
तो कोई और वजह होगी..
अब हर ऐब के लिए 
कसूरवार इश्क तो नहीं..!!
सादर अभिवादन....


अगर मेंढक को गर्मा गर्म उबलते पानी में डाल दें 
तो वो छलांग लगा कर बाहर आ जाएगा
हमारे सारे इंसानी रिश्ते, राजनीतिक और सामाजिक भी, ऐसे ही होते हैं, पानी, तापमान और मेंढक जैसे। ये तय हमे ही करना होता है कि हम जल मे मरें या सही वक्त पर कूद निकलें।


प्रकाश स्तम्भ
नहीं एक मंज़िल,
सिर्फ़ एक संबल
दिग्भ्रमित नौका को,
दिखाता केवल राह


गहन अँधेरों के वासी हो 
तुम उजाला क्या करोगे - 
भूखा रहने की पड़ी है 
आदत तुम निवाला क्या करोगे - 


किसी मंदिर सा था...
हमारा प्रेम...
अखंड था...
मंदिर में स्थापित...
मूरत सा था..हमारा प्रेम...
धुनों में गूंजता था...
मंदिर में बजती...


पागलपन में हो गयी, वाणी भी स्वच्छन्द।
लेकिन इसमें भी कहीं, होगा कुछ आनन्द।।

पागलपन में सभी कुछ, होता बिल्कुल माफ।
पागल का होता नहीं, कहीं कभी इंसाफ।।



पर, अजीब होती हैं औरतें
प्रयोरिटीज़ में हर लम्हे रहते हैं
बेबी या बाबू .......!
बच्चो की चिंता
चेहरे पे हर वक़्त शिकन!!


हे गणेश गजानन गौरी नंदन 
मेरी आस्था मुझे लौटा दो 
मुझ में विश्वास जगा दो 
जो कुछ हूँ तुमसे ही हूँ 
भक्ति भाव जगा दो
मुझे अपने तक पहुचा दो|



आज्ञा दें यशोदा को
फिर मिलेंगे....












रविवार, 27 सितंबर 2015

कितनी अजीब मूर्खता है हमारी-अंक 71

जय मां हाटेशवरी...

शब्द किस तरह
कविता बनते हैं
इसे देखो
अक्षरों के बीच गिरे हुए
आदमी को पढ़ो
क्या तुमने सुना कि यह
लोहे की आवाज़ है या
मिट्टी में गिरे हुए ख़ून
का रंग।

लोहे का स्वाद
लोहार से मत पूछो
घोड़े से पूछो
जिसके मुंह में लगाम है।------धुमिल
अब बारी है....आज के 5 लिंकों की....

इरादों की खेती करेंगे
अपने इरादों का दुपट्टा ओढ़कर
बाहर निकलो --
मैं साइकिल लिए खड़ा हूँ
सड़क पर
तुम्हारे पीछे बैठते ही
मेरे पाँव
इरादों के पैडिल को घुमाने लगेंगे---

जिन्दगी --- एक दिन
   अब स्कूल का समय भी ख़त्म होने को था। ऑफिस को ताला लगा कर बाहर  आ गयी। विमला बाई को सामान भंडार घर में रखवा कर ताला लगाया। छुट्टी की घंटी बजते ही बच्चे
उछलते -खिलखिलाते दौड़ लगते हुए कुछ धकियाते हुए बाहर जाने लगे।
     आरुषि को ये बच्चे चिंता रहित  खिलते हुए, महकते हुए फूलों की तरह लगे। सोच रही थी इन बच्चों को सही दिशा मिलेगी तभी तो देश की दशा सुधरेगी। वह भी ताला
लगा कर घर की ओर चल पड़ी।
   
पागलों के साथ कौन खड़ा होना चाहता है 
किसी में नहीं है
हिम्मत सच के
लिये खड़े होने
के लिये हर कोई
सच को झूठा
बनाना चाहता है

कितनी अजीब मूर्खता है हमारी
-----Ojasvi Hindustan की फ़ोटो.----

हमे और हमारी सरकारों को धिक्कार है जो अभी तक हर भारतीय को अंग्रेजी जैसी फालतू और अवैज्ञानिक भाषा समझाने में तो एडी छोटी का जोर लगाती रही पर संस्कृत जैसे
अत्यंत महत्वपूर्ण, वैज्ञानिक और अपने देश की ही भाषा का महत्व तक नही समझा सके. जब तक संस्कृत शिक्षा में नही आयेगी तब तक लोगों को इसका महत्व और तर्कसंगतता
का पता चलना कठिन है. देश को आग बढ़ाना है तो संस्कृत की जरूरत है अंग्रेजी कि नही.


बेटी बिना

हैं वे ही भाग्यशाली जो
बेटी पा पुलकित होते
उसे घर का सम्मान समझते
सजाते सवारते पढ़ाते लिखाते
इतना सक्षम उसे बनाते
गर्व से कह पाते
है मेरी बेटी मेरी शान
दौनों कुल की रखती आन
अच्छी बेटी ,बहन ,माँ हो
देती प्रमाण अच्छी शिक्षा का
माता पिता के सहयोग का
उनके उन्नत  सोच का
 कोई विकल्प न होता
बेटी बिना घर सूना होता |

धन्यवाद...




शनिवार, 26 सितंबर 2015

चांदनी



सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष

आज इस साल का 269 वां दिवस है

गर्मी उमस बर्दाश्त के बाहर होती जा रही है
दिल ढूंढता है
कब शाम हो और चांदनी मिले

झरोखा पे चांदनी

चांदनी की शीतल छांव
ताल में डूबा रहे पाँव
कंकरों की चक्करघिन्नी
कुंठा मिटाने का मिले दांव


मेरासागर पे चांदनी

खोये-खोये से चांद पर,
जब बारिश की बूंदे बैठती,
और बादल की परत,
घूंघट में हो, उसे घेरती,



ये चाँद भी क्या हंसी सितम ढाता है

बचपन में चंदा मामा और
जवानी में सनम नजर आता है
एक शाम मेरे नाम पर अक्सर कोई गीत, कोई ग़ज़ल या रिकार्डिंग आपको सुनवाता रहा हूँ।
पर आज इन सबसे अलग एक ऐसी धुन सुनवाने जा रहा हूँ
जो मूलतः तो एक तमिल गीत के लिए बनाई गई थी पर
पिछले एक हफ्ते से मेरे दिलो दिमाग पर कब्ज़ा जमाए बैठी है।
किसी धुन के अंदर बहते संगीत पर किसी सरहद की मिल्कियत नहीं होती।


कविता पे चांदनी

वो चांदनी रात हम और तुम
फूलों से सजी बगिया उपवन
वो सपनो का झूला वो सजन का साथ
उन यादों को भूल न पाया ये मन !!


सच में पे चांदनी

खुशनुमा माहौल में भी गम होता है,
हर चांदनी रात सुहानी नहीं होती।
भूख, इश्क से भी बडा मसला है,
हर एक घटना कहानी नहीं होती।


फिर मिलेंगे
तब तक के लिए
आखरी सलाम



विभा रानी श्रीवास्तव


शुक्रवार, 25 सितंबर 2015

सचमुच इतना ही सहज था सबकुछ ?....उन्हत्तरवां कदम

मेरी तमन्ना 
न थी 
तेरे बगैर रहने की .... 
लेकिन
मज़बूर को ,
मज़बूर की ,
मजबूरिया.. 
मज़बूर 
कर देती है ..!!!!
सादर अभिवादन..

चलते हैं आज की रचनाओं की ओर


नहीं,
नहीं था सरल मीरा का विषपान
उनकी हँसी
साधुओं की मंडली में उनका सुधबुध खोना
मूर्ति में समाहित हो जाना  …
कथन की सहजता
जीने की विवशता में
बहुत विरोधाभास होता है


स्थापित ' मैं ' की परितृप्त परिभाषाएँ
केवल पन्नों पर ही गरजती रहती है
बाहर अति व्यक्तित्व खड़े हो जाते हैं
और भीतर चिता सजती रहती है


क्या दिल-क्या आशिकी, 
क्या शहर-क्या आवारगी
रफ्ता रफ्ता दास्ताँ है, 
......औ रफ्ता रफ्ता जिंदगी ?



हाँ !
तुम कहो ख़ूब
और सब सुने
दिल लगाकर
कुछ नया
कुछ चटपटा
फिर धीरे - धीरे
हम तक पँहुचे
उस की चटाक


कसक बची  उर बीच एक है 
पग घुघरू बाँध मैं  आऊँ कैसे
आ आ कर तेरे पास प्रिये मैं 
भर  बाँहों  में  इठलाऊँ  कैसे



जिसने माथे खींच दी, दुख की अनमिट रेख
क्यों न पहले लिखा वहीं, सहने का आलेख ।


कितनी अच्छी अच्छी बातें,हमें जानवर है सिखलाते 
उनके कितने ही मुहावरे , हम हैं रोज काम में लाते 

भैस चली जाती पानी में ,सांप छुछुंदर गति हो जाती 
और मार कर नौ सौ चूहे ,बिल्ली जी है हज को जाती 


मैं भी रंग गई पिया के रंग में
अतिक्रमण करके..

आखिर कब तक रोककर रखेंगे
पसंदीदा रचनाओं को
पढ़ना-पढ़ाना तो पड़ेगा ही न
विदा दें....यशोदा को














गुरुवार, 24 सितंबर 2015

अड़सठवें पन्ने में....ज्ञान दर्पण

सादर अभिवादन स्वीकार करें
सैकड़े से मात्र
अट्ठाईस कदम

दूरी पर है..
पाँच लिंको का आनन्द

चलिए चलते हैं आज की रचनाओं की ओर...


अधकचरा यानी अधूरा ज्ञान हमेशा हर जगह नुकसानदायक होता है और यह तब और ज्यादा नुकसान करता है जब अधूरे ज्ञान वाला स्वयंभू ज्ञानी शिक्षक, नेता, साधू के रूप में अपने अधूरे ज्ञान को अपने उद्बोधनों में बांटते फिरते है तथा लेखक आने वाली पीढ़ी के लिए अपने अधूरे ज्ञान के सहारे पुस्तकें लिखकर भ्रांतियां खड़ी कर देते है| 


जिन्दा रहे तो हमको कलन्दर कहा गया
सूली पे चढ़ गये तो पैगम्बर कहा गया 


जब से तुमसे मिली...
मैं प्रेम को लिखने लगी...
जब तुम्हारी आखों की,
गहराईयों में उतरी तो...
अंतहीन..अद्रश्य...
प्रेम को मैं लिखने लगी...


चलो अच्छा हुआ
आइनों ने ही 
तुमको तुम्हारा सच
समझा दिया



जा जा जा बेवफा, 
कैसा प्यार कैसी प्रीत रे
तू ना किसी का मीत रे, 
झूठी तेरी प्यार की कसम





ढूँढ रही हूँ इन दिनों
अपना खोया हुआ अस्तित्व
और छू कर देखना चाहती हूँ
अपना आधा अधूरा कृतित्व
जो दोनों ही इस तरह
लापता हो गये हैं कि
तमाम कोशिशों के बाद भी
कहीं मिल नहीं रहे हैं,


जब आप बीमार थे
तो कभी सोचा न था
यूँ चले जाओगे
और चले गए तो
आप इतना याद आओगे...


जुखाम बहुत है...
खांसी भी आ रही है

आँसू पोंछने वाले तो
बहुत मिलते हैं....
कंधो को छूते है

पीठ थपथपाते हैं
परन्तु.....
नाक पोंछने को
कोई नहीं आता....
आज्ञा दें यशोदा को

एक गीत आपने ऊपर सुना
एक गीत फिर सुनिए







बुधवार, 23 सितंबर 2015

सब ठीक है...अंक 67

जय मां हाटेशवरी...

लम्बे अरसे से देशवासी जानना चाहते हैं कि सुभाष चन्द्र बोस का क्या हुआ? क्या वे विमान दुर्घटना
में मारे गए थे, या रूस में उनका अंत हुआ? या फिर सन् 1985 तक वे गुपचुप गुमनामी बाबा बनकर उत्तर प्रदेश के अयोध्या शहर में रहे?
दूसरी तरफ आवाजें उठ रही हैं कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अति पिछड़े वर्गों को दिये जा रहे जातिगत आरक्षण को  समाप्त कर आर्थिक आधार पर आरक्षण को लागू किया जाना चाहिये...अर्थात
  आरक्षण के मुद्दे पर पुनर्विचार होना चाहिये।
ऐसे ही अनेकों मामले हैं...जो  चुनाव के समय    पर राजनीति  बनकर कभी एक दल  का पलड़ा भारी करते हैं तो कभी दूसरे का...
न इन मामलों पर कोई अपनी राय दे सकता है....और न इन का कोई हल ही खोजना चाहता है....किसी ने ठीक ही कहा है...भारत में जो चल रहा है...सब ठीक है...

दिये का रिश्‍ता देखो बाती से
---s400/ganesha-diya<br>------


स्‍नेह से दिये ने
अपने मस्‍तक लिया जब भी
'' तमसो मा ज्‍योतिर्गमय ''
का संदेश 'दीप' ने सदा
अंतिम श्‍वास तक दिया


Parashara`s Light Full version कुंडली सॉफ्टवेयर डाउनलोड करे
के बाद आपको एक सेटिंग और करनी होगी आपको इसी के फोल्डर में एक Parashara's Light 7.0 Professional Crack+instructions का फोल्डर
भी मिलेगा उसे ओपन करके आपको उसमे दी गयी फाइल को कॉपी करके आपको c ड्राइव में आकर GeoVision वाले फोल्डर के अंदर PL7 वाले फोल्डर को खोलकर आपको ये फाइल इसमें
पेस्ट करनी है जैसा आप ऊपर चित्र में देख रहे है
बस आपको इतनी ही सेटिंग करनी है अब सॉफ्टवेयर को ओपन करे और किसी की भी कुंडली बनाये



महाभारत का युद्ध 13 अक्टूबर 3139 ई. पू. को आरम्भ हुआ 
भारत के  संस्कृति व  पर्यटन मंत्री श्री महेश शर्मा जी ने आई-सर्व के द्वारा आयोजित प्रदर्शनी की सराहना करते हुए कहा कि प्रदर्शित वैज्ञानिक तथ्यों एवं साक्ष्यों के माध्यम से युवक युवतियों
को विश्वास हो जायेगा कि रामायण तथा महाभारत कोई काल्पनिक उपन्यास नहीं है अपितु भारत की प्राचीन ऐतिहासिक घटनाओं का संकलन है।
श्री कृष्ण गोपाल जी ने कहा कि आज से 100 वर्ष पहले ईसाई धारणा थी कि धरती की सरचना 4004 ई. पू. हुई और उसी समय के भीतर सब एतिहासिक घटनाओ को पिरो दिया गया
I कौन सोच सकता था कि आज वैज्ञानिक साक्ष्यों के आधार पर ऋग्वेद से आज तक 10000 वर्षों की भारतीय संस्कृति की निरतरता सिद्ध हो जाएगी।

जीना ही होगा
नहीं उनसे विश्व पालित,
यहाँ सबका ठिकाना है।

नहीं अमृत का कलश है,
प्राप्ति में श्वेदान्त रस है,
उपेक्षा का अर्क, पीना ही होगा,
तुझे जीना ही होगा।

गोपी गीत का माधुर्य
टीवी पर मुरारी बापू बोल रहे हैं. वे झकझोर देते हैं, कभी तो भीतर की सुप्त चेतना पूरी तरह से जागेगी, कभी-कभी करवट लेती है फिर सो जाती है. वे कब तक यूँ पिसे-पिसे
से जीते रहेंगे. अब और नहीं, कब तक अहंकार का रावण भीतर के राम से विलग रखेगा, जीवन में विजयादशमी कब घटेगी. संत जन प्रेरित करते हैं, कोई जगे तो प्रेम से भरे,
आनंद से महके.. वे जो राजा का पुत्र होते हुए कंगालों का सा जीवन जीते हैं. सूरज बनना है तो जलना भी सीखना पड़ेगा, अब और देर नहीं, न जाने कब मृत्यु का बुलावा
आ जाये, कब उन्हें इस जगत से कूच करना पड़े, कब वह घड़ी आ जाये जब ‘उससे’ सामना हो तब वे क्या मुँह दिखायेंगे ?



अब अंत में...एक संदेश देती ये कहानी....
धन्यवाद...

मंगलवार, 22 सितंबर 2015

मगज.....जहाँ पर विचार जन्म लेते हैं.........अंक छैंछठ

जेब का वजन 
बढ़ाते हुए
अगर दिल पर 
वजन बढे….
तो समझ लेना
कि सौदा 
घाटे का ही है..!
सादर अभिवादन...

आज्ञा मिल गई
यानि कुछ सुना नहीं

ये रही आज की पंसंदीदा रचनाओं का सिरा


आस्था के नाम पर,
बिकने  लगे हैं भ्रम
कथ्य को विस्तार दो ,
यह आसमां है कम .



इंटरनेट की दुनिया में बहुत सी ऐसी साइट मौजूद है जो सच में बड़े काम की होती है लेकिन अक्सर देखा गया है काम की वेबसाइट बहुत ही काम लोगो को मिल पाती है आज मैंने आपके सामने एक ऐसी ही वेबसाइट लेकर आ रहा हु जो आपके बहुत काम आएगी


देखा कुछ ? 
हाँ देखा 
दिन में 
वैसे भी 
मजबूरी में 
खुली रह जाती 
हैं आँखे 
देखना ही पड़ता है 


अभी अभी पता चला कि आज अपनी बीबी की तारीफ करने का दिन है । 'सोशल मीडिया' पर बहुत 'एक्टिव' रहने में यह भी भय रहता है कि जो काम बाकी लोगों ने कर दिया और आपने नहीं किया या बाद में किया तो लगता है 


यादों के झरोखों से
एक याद अब भी आती है
वो बचपन की अठखेलियां
दोस्तों के साथ की सैकड़ों मस्तियां
मुझे अब भी याद आती है


कुछ अनदेखी तस्वीरें
कब्रों की...


चल रही है
चल रही है
चल रही है जिंदगी

ढल रही है
ढल रही है
ढल रही है जिंदगी


आज चाय में ऐसा क्या पड़ गया 
क्यों क्या हुआ ?
गलती से शायद ! अच्छा बन गया


न मैं तुमसे
मांग रहा हूं
भिक्षा अपने जीवन की
न जीवित तुम्हे 
जाने दूंगा आज
यही है सैनिक धर्म मेरा...


अपने मगज के उस हिस्से को 
काट देने का मन होता है
जहाँ पर विचार जन्म लेते हैं  
और फिर होती है
व्यथा की अनवरत परिक्रमा,  


इज़ाज़त मांगता है दिग्विजय

और सुनिए ये गीत




सोमवार, 21 सितंबर 2015

पर्युषण का पर्व है ,रोज भजो नवकार.... अंक पैंसठ

आसमां टुकड़ो में न बाटों उजाले के लिए,
डूब न जाए कहीं सूरज कई सालों के लिए.
- दुष्यंत कुमार

सादर आभिवादन....

सीधे चलते हैं रचनाओं का ओर.....



हर अदा तेरी
अधिक समीप लाती
तू ही तू नज़र आती
स्वप्नों में सताती |
जुम्बिश अलकों की


गंध-मुग्ध मृगी एक निज में बौराई, 
विकल प्राण-मन अधीर भूली भरमाई . 
कैसी उदंड गंध मंद नहीं होती, 
जगती जो प्यास ,पल भर न चैन लेती . 


प्याज में मात्र
भोजन की सीरत सूरत स्वाद सुगंध
बदलने की कूबत ही नहीं
सत्ता परिवर्तन की भी क्षमता है.
प्याज और सरकार
एक दूसरे के पर्याय हैं.


नाम चरणामृत का लेकर
विष  पिला डाला किसी नें 
जब सुमिरनी  हाथ में ली
तोड़  दी  माला  किसी नें 


पर्यूषण दोहे 
पर्यूषण का पर्व है ,रोज भजो नवकार |
अंतरमन को शुद्ध कर ,होंगे दूर विकार ||

महामंत्र नवकार है ,सुनना सुबह शाम |
सबसे अच्छे पर्व का, पर्यूषण है नाम ||


दो दिनों से तबियत में कुछ नरमी सी है
फिर भी ठीक हूँ...



अपनी आगाज से आज तक..
'जिंदगी' तेरे हीं याद में गुम रही ...
फिर भी जाने क्यूँ ये एहसास है ,
जैसे चाहत मेरी कम रही .....!!

--सोनू अग्रवाल--
आज्ञा दें यशोदा को...
फिर मिलते हैं न...












रविवार, 20 सितंबर 2015

असहाय एकलव्य--अंक 64


जय मां हाटेशवरी...

जब दुनिया भर में नासा का नाम लेकर  यह खबर फैली कि 15 दिन के लिये पूरी पृथवी पर   अंधेरा छा जाएगा, तो हर तरफ यही शोर सुनाई देने लगा... लोग जानने
के लिये उत्सुक हो गये कि उस दिन से अगले 15 दिनों तक ऐसा क्या होने वाला है, कि इतनी लंबी रात हो जायेगी?ये खबर सुनकर मैं भी कुछ उतसाहित हुआ कि चलो अपने जन्मकाल में भी कुछ नया देखने को मिलेका... तभी पता चला कि नासा ने इसे अफवाह करार दिया है। नासा ने कहा कि नवंबर20 के महीने में ऐसा कुछ भी नहीं होनेवाला है जिससे दुनिया भर में 15 दिन के लिए अंधेरा हो जाएगा। दरअसल
वेबसाइट Newswatch33 ने 14 जुलाई को अपने पोस्ट में नासा का झूठा हवाला देते हुए यह जानकारी दी कि
15 नवंबर को सुबह तीन बजे से लेकर 30 नवंबर दोपहर 4:15 तक अंधेरा छाया रहेगा। लेकिन नासा ने इस दावे को बेबुनियाद
बताया और कहा कि धरती पर 'नवंबर ब्लैकआउट' जैसी चीज नहीं होती बल्कि यह वीनस (शुक्र) और जूपिटर (बृहष्पति) ग्रहों पर होनेवाली खगोलीय घटना होती है। आज कीसी भी प्रकार की अफवाह  फैलाना भी कितना आसान हो गया है...चंद मिनटों में ही एक अफवाह  सारी दुनियां में फैल जाती है...
अब चलते हैं... आज के पांच  लिंकों की ओर...

असहाय एकलव्य
पर बहुत से धर्म-युद्ध
अभी भी लड़े जाने हैं.
अर्जुन, विश्व के सबसे बड़े धनुर्धर,
तुम्हारे पास लड़ने का समय नहीं
और मैं लड़ नहीं सकता,
क्योंकि मैंने तो अपना अंगूठा
तुम्हें सर्वश्रेष्ठ बनाने के लिए
कब का गुरु-दक्षिणा में दे दिया था.


अमर क्रान्तिकारी - मदनलाल ढींगरा जी की १३२ वीं जयंती
२३ जुलाई १९०९ को ढींगरा के केस की सुनवाई पुराने बेली कोर्ट में हुई। अदालत ने उन्हें मृत्युदण्ड का आदेश दिया और १७ अगस्त सन् १९०९ को फाँसी पर लटका कर उनकी
जीवन लीला समाप्त कर दी गई । मदनलाल मर कर भी अमर हो गये।
 भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अप्रतिम क्रान्तिकारी - मदनलाल ढींगरा जी की १०६ वीं पुण्यतिथि पर हम सब उन्हें शत शत नमन करते है !


श्री गणेश जन्मोत्सव
 त्यौहारों के आगमन के साथ ही घर-घर से भांति-भांति के पकवानों की महक से वातावरण खुशनुमा हो जाता है। इसमें भी अगर मिठाईयां न हो तो त्यौहारों में अधूरापन लगता
है। दूध मिठाईयों का आधार है। इसी से निर्मित मावे और घी से अनेक व्यंजन तैयार होते हैं, लेकिन आज यह अधिक मुनाफे के फेर में मिलावटी बनकर स्वास्थ्य के लिए
हानिकारक सिद्ध हो रहा है। मिलावटी दूध, घी हो या मावा सेहत के लिए वरदान नहीं बल्कि कई बीमारियों की वजह बनती है। इसलिए बाजार से मिठाई-नमकीन आदि जाँच-पड़ताल
कर ही खरीदें, अच्छा तो होगा यही होगा कि त्यौहार में घर पर पकवान बनाएं और स्वस्थ्य तन-मन से पूजा-अर्चना करें!



अपाहिज होती व्यवस्था
खून चूसता तंत्र, अपाहिज होती व्यवस्था
सड़ी गली राजनीति , कुंठित प्रतिभाएं
व्यवसाय बनी ये शिक्षा, महज़
चपरासी और क्लर्क पैदा कर रही हैं ...

तलाक-तलाक-तलाक बोलिए-और काम पे चलिए
बेचारी "बीवी उसकी खडी सोचती ही रह गयी कि या खुद ये क्या ज़ुल्म हो गया ?? अब मेरे तीन बच्चों का क्या होगा ?सात साल से दोनों बड़े प्यार से रह रहे थे ना जाने
किसका मुंह देख कर चले थे कि ज़ुल्मी तलाक ही दे गया मामूली सी नहस पर ! तीनो बच्चे और वो महिला बस अड्डे पर जोर-जोर से रो रहे थे तो लगों के पूछने पर इस महिला
ने ये बात बताई !


शनिवार, 19 सितंबर 2015

विभा जी की लेखनी



सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष


वैराग्य छोड़ बाँहों की विभा संभालो
चट्टानों की छाती से दूध निकालो
है रुकी जहाँ भी धार शिलाएं तोड़ो
पीयूष चन्द्रमाओं का पकड़ निचोड़ो


खोये-खोये से चांद पर,
जब बारिश की बूंदे बैठती,
और बादल की परत,
घूंघट में हो, उसे घेरती,
तब फिसल कर गाल पर,
एक तब्बसुम खिलने लगे,

विभा जी की लेखनी

कुछ मंद-मंद मुस्कान सी,
आंखें चमक बिखेरती,
हाथों की लकीरों पे हो जैसे,
नाम अम्बर फेरती,
यूं धरा का रंग जैसे,
अम्बर के रंग रंगने लगे,

विभा जी की लेखनी

जब प्यार का अमृत बरस के,
गिरता धरा की गोद पर,
और हवाएं छू के बदन को,
भीनी-सी खुशबू बिखेरती,
तब कहीं, रंगीन कलियों का बिछौना,
इस धरा पर बिछने लगे,

 विभा जी की लेखनी

देखो चांदनी रात में, “तारिका”
अम्बर धरा, फिर मिलने लगे।

साभार ~~प्रीती बङथ्वाल “तारिका

विभा यानि ज्योत्स्ना
आत्ममुग्ध होना हक़ है न
स्वाभिमान को अहंकार ना समझना कभी

विभा जी को जानिये

फिर मिलेंगे
तब तक के लिए
आखरी सलाम


विभा रानी श्रीवास्तव


शुक्रवार, 18 सितंबर 2015

क्या फर्क पड़ता है.....बासठवा पन्ना

सैकड़े की तरफ
अग्रसर होता ये

पाँच लिंकों का आनन्द...
अभिभूत हूँ मैं
आप सभी ने इसे
हाथों-हाथ लिया...

चलिए आज की रचनाओं की ओर...


गणपति, गणनायक हरें, सभी के दुःख क्लेश।
शिव-गौरी के लाड़ले, प्रथम पूज्य गणेश।।


क्या फर्क पड़ता है 
मैं स्त्री हूँ या पुरुष 
मानव सुलभ इर्ष्याओं से तो ग्रस्त रहता ही हूँ 


आह्वान हे बन्धु फिर से
कृण प्रेरित चीर का,
अन्याय के प्रतिकार में विकर्ण के स्वर का,



चाँद को हाथ में थामे
पिघलते पारे सी
बहा करती है
नदी रात भर


नहीं तुम मिले मै गमन कर रहा हूँ 
यहाँ  रात में अब शयन कर रहा हूँ 

न तस्वीर से ही मुलाकात होती 
मिलो सामने यह जतन कर रहा हूँ 

कल अतिक्रमण हुआ
अच्छा ही हुआ
किसी न किसी को तो करना ही था
आभार.....

आज्ञा दें...
सादर

यशोदा













गुरुवार, 17 सितंबर 2015

आज अतिक्रमण किया है मैंने....इकसठवां पन्ना

सादर अभिवादन...
कल इन लोगों की
हरतालिका तीज
सम्पन्न हुई...

आज ये सब निढाल हैं..

आज अतिक्रमण किया है मैंने
देखिए आज की रचनाएँ....



कलम ने उठकर
चुपके से कोरे कागज़ से कुछ कहा
और मैं स्याही बनकर बह चली
मधुर स्वछ्न्द गीत गुनगुनाती,
उड़ते पत्तों की नसों में लहलहाती।


देखे गये तमाशे
को लिखने पर
कैसे सोच लेता है
कोई तमाशबीन
आ कर अपने ही
तमाशे पर ताली
जोर से बजायेगा


....कल हिन्दी का दिवस आया और
बीत गया
सुबह से ही प्रतियोगिताएं
हिन्दी का सामान्य ज्ञान
जानने की सभी को पड़ी थी
भारतेन्दु हरिश्चंद्र
हिन्दी के प्रथम कवि थे
बहुतों ने सही उत्तर लिखा


पुराने बक्से में झाँका तो बहुत कुछ पुराना सामान था। ये सामान पुराना तो था लेकिन कनिका कि यादें नई कर गया। एक डिबिया में एक अंगूठी थी। जिस पर यीशु और मरियम की तस्वीर थी। आयरिश ने बहुत प्यार से दी थी उसे। विवाह के बाद जब एक बार ऊँगली में पहनी तो पति देव ने कहा सोने कि है क्या ये ! वह हंस कर बोल पड़ी थी कि नहीं ये तो प्लेटिनम से भी महंगी है।


तमसो मा ज्योतिर्गमय--
हम बाते कर ही रहे थे कि उनकी  बीस वर्षीय पोती हाथ में मुंशी प्रेमचन्द का उपन्यास' सेवा सदन' लिए हमारे बीच आ खड़ी हुई ,दादी क्या आपने यह पढ़ा है ?आपसी रिश्तों में उलझती भावनाओं को कितने अच्छे से लिखा है मुंशी जी ने |

ऐसा किया है मैंनें अतिक्रमण...
बाबुल की सोन चिरैया 
अब बिदा हो चली
महकाएगी किसी और का आँगन
वो नाजुक सी कली
माँ की दुलारी
बिटिया वो प्यारी


हुए धुप से बेहाल
पीत  पड़े पत्ते बेचारे
कशमकश में उलझे
अपनी शाखा से बिछुड़े
झड़ने लगे खिरने  लगे


तसव्वुर में छिपे थे जो नजारों में उतारा है 
जरा इतना तो कह दो जान तुझपे आज वारा है

किसी की ख्वाहिशों में तुम सदा शामिल बने रहते 
कभी यह देखना तुम बिन पिता कितना बिचारा है 

अतिक्रमित रचनाओं के सूत्र के साथ 
आज कुल आठ रचनाएँ प्रस्तुत हैं

आज्ञा दें दिग्विजय को..




























बुधवार, 16 सितंबर 2015

वक़्त गया वो बीत---अंक 60

जय मां हाटेशवरी...


एक आदमी एक सेठ की दुकान पर नौकरी करता था। वह बेहद ईमानदारी और लगन से अपना काम करता था। उसके काम से सेठ बहुत प्रसन्न था और सेठ द्वारा मिलने वाली तनख्वाह
से उस आदमी का गुज़ारा आराम से हो जाता था। ऐसे ही दिन गुज़र रहे थे।
एक दिन वह आदमी बिना बताए काम पर नहीं गया। उसके न जाने से सेठ का काम रूक गया।  तब उसने सोचा कि यह आदमी इतने दिनों से ईमानदारी से काम कर रहा है। मैंने कबसे
इसकी तन्ख्वाह नहीं बढ़ाई। इतने पैसों में इसका गुज़ारा कैसे होता होगा?
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सेठ ने सोचा कि अगर इस आदमी की तन्ख्वाह बढ़ा दी जाए, तो यह और मेहनत और लगन से काम करेगा। उसने अगले दिन से ही उस आदमी की तनख्वाह बढ़ा दी। उस आदमी को जब एक
तारीख को बढ़े हुए पैसे मिले, तो वह हैरान रह गया। लेकिन वह बोला कुछ नहीं और चुपचाप पैसे रख लिये...
धीरे-धीरे बात आई गई हो गयी। कुछ महीनों बाद वह आदमी फिर फिर एक दिन ग़ैर हाज़िर हो गया। यह देखकर सेठ को बहुत गुस्सा आया। वह सोचने लगा- कैसा कृतघ्न आदमी है।
मैंने इसकी तनख्वाह बढ़ाई, पर न तो इसने धन्यवाद तक दिया और न ही अपने काम की जिम्मेदारी समझी।  इसकी तन्खाह बढ़ाने का क्या फायदा हुआ? यह नहीं सुधरेगा!
और उसी दिन सेठ ने बढ़ी हुई तनख्वाह वापस लेने का फैसला कर लिया।
अगली 1 तारीख को उस आदमी को फिर से वही पुरानी तनख्वाह दी गयी। लेकिन हैरानी यह कि इस बार भी वह आदमी चुप रहा। उसने सेठ से ज़रा भी शि‍कायत नहीं की। यह देख
कर सेठ से रहा न गया और वह पूछ बैठा-
बड़े अजीब आदमी हो भाई। जब मैंने तुम्हारे ग़ैरहाज़िर होने के बाद पहले तुम्हारी तन्ख्वाह बढ़ा कर दी, तब भी तुम कुछ नहीं बोले। और आज जब मैंने तुम्हारी ग़ैर
हाज़री पर तन्ख्वाह फिर से कम कर के दी, तुम फिर भी खामोश रहे। इसकी क्या वजह है?
उस आदमी ने जवाब दिया- जब मैं पहली बार ग़ैर हाज़िर हुआ था तो मेरे घर एक बच्चा पैदा हुआ था। उस वक्त आपने जब मेरी तन्ख्वाह बढ़ा कर दी, तो मैंने सोचा कि ईश्वर
ने उस बच्चे के पोषण का हिस्सा भेजा है। इसलिए मैं ज्यादा खुश नहीं हुआ। ...जिस दिन मैं दोबारा ग़ैर हाजिर हुआ, उस दिन मेरी माता जी का निधन हो गया था। आपने
उसके बाद मेरी तन्ख्वाह कम कर दी, तो मैंने यह मान लिया कि मेरी माँ अपने हिस्से का अपने साथ ले गयीं.... फिर मैं इस तनख्वाह की ख़ातिर क्यों परेशान होऊँ?

यह सुनकर सेठ गदगद हो गया। उसने फिर उस आदमी को गले से लगा लिया और अपने व्यवहार के लिए क्षमा मांगी। उसके बाद उसने न सिर्फ उस आदमी की तनख्वाह पहले जैसे कर
दी, बल्कि उसका और ज्यादा सम्मान करने लगा।
मैं भी आज कुछ पुरानी रचनाएं पढ़कर आनंदित हो रहा था...
पढ़ते-पढ़ते रचनाओं की संख्या पांच हो गयी....
तो आज के अंक में  आप भी लिजिये इन पांच रचनाओं का ही आनंद...

कही कोई नहीं है जी .......
मुझे सपने देखने की आदत है
एक सच्चा सपना गलती से देख लिया था कोई नहीं है जी , कोई नहीं है ....
सच में ...पता नहीं लेकिन कभी कभी मैं गली के मोड़ तक जाकर आती हूँ
अकेले ही जाती हूँ और अकेले ही आती हूँ ..कही कोई नहीं है जी ..
कोई नहीं ...



फेयरवेल डियर फाबिया, यू वेयर द बेस्ट कार एवर

चलोगी...मगर मुझसे नहीं होता. मैं नहीं गयी. यहाँ हूँ. अनगिन तस्वीरों में घिरी हुयी. आज कार के पेपर्स साइन हो गए. किसी और के नाम हो गयी गाड़ी...अब शायद वे
उसके स्पेयर पार्ट्स करके बेच देंगे...बॉडी कोई कबाड़ी उठा लिए जाएगा.
बच जाती हूँ मैं. गहरी उदास. डियर फाबिया. आई एम सॉरी कि मैंने तुमसे कभी कहा नहीं.
आई लव यू. तुम मेरी पहली कार थी...और मेरा पहला पहला प्यार रहोगी.
हमेशा. हमेशा. हमेशा.


महारानी
रानी का चोला पहनाकर सब्जबाग दिखलाया।    
फिर जज्बातों से खेले कैसा मुझको भरमाया।
मैं नादान नहीं पहचानी।।

कुंठित मन बेचैन स्वयं को कैसे धीर बंधाऊं।
किस्मत की हेठी हूँ या अपनों का दोष बताऊँ।
भीगी पलकें मति बौरानी।।


वक़्त गया वो बीत !
जिनको पंछी की रही,नहीं कभी पहचान !
कह दूँ कैसे मैं उन्हें ,सुन कोयल की तान !
---------------------------------------
सूखा दरख़्त कह रहा.वक़्त गया वो बीत !


एअर कंडीशन नेता

राज्य की बोलो जय ।
काका का दर्शन प्राप्त करो, सब पाप-ताप हो जाए क्षय ॥
मैं अपनी त्याग-तपस्या से जनगण को मार्ग दिखाता हूँ ।
है कमी अन्न की इसीलिए चमचम-रसगुल्ले खाता हूँ ॥
गीता से ज्ञान मिला मुझको, मँज गया आत्मा का दर्पण ।
निर्लिप्त और निष्कामी हूँ, सब कर्म किए प्रभु के अर्पण ॥
आत्मोन्नति के अनुभूत योग, कुछ तुमको आज बतऊँगा ।
यह रचना काका हाथरसी की है और आज के समय में भी प्रासंगिक है . आप भी कविता पढ़िए और आनंद उठाइये.
धन्यवाद...

मंगलवार, 15 सितंबर 2015

कर लो हिन्दी से मुहब्बत दोस्तो....पृष्ठ उनसठ

सादर अभिवादन...

14 सितम्बर हिंदी दिवस है 
लेकिन हिंदी दिवस 
एक दिन या एक महीने के लिए नहीं 
अपितु हिंदी दिवस रोज मनाएँ। 
हिंदी सिर्फ भाषा नहीं मातृभाषा है, 
हिंदी का विकास हमारा विकास है। 
शान से कहें हिंदी है हम। 

हिंदी दिवस पर विशेष शुभकामनाएँ।
-शशि पुरवार



अपरिहार्य कारणों से 
थोड़ा अवयवस्थित हो गया हूँ

ये मैंनें कल पढ़ा...
और प्रभावित हुआ
आप भी देखिये....



स्वभाषा गिरा
आंग्ल को प्रतिष्ठा दी,
अपनों ने ही।


मैं सो सकूं मौला मुझे इतनी थकान हो
आकाश को छूती हुई चाहे उड़ान हो

सुख दुःख सफ़र में बांटना आसान हो सके
मैं चाहता हूँ मील के पत्थर में जान हो


कर लो हिन्दी से मुहब्बत दोस्तो
है बड़ी उसमें नज़ाकत दोस्तो

रूह तक में वो समाती जा रही
लफ्ज़ में रखती नफ़ासत दोस्तो


कुछ पल तुम्हारे कुछ मेरे 
आओ बाँट लें
जिंदगी में यूँ तो
हम एक ही हैं 


वहां-  उस गांव में, कौन रहता है अब...?
जहां सुबह तुलसी चौरे पर दिया बालती
जोर जोर से घंटियां हिलाती अम्मा से 
हम, सुबह अंधेरे ही उठा देने के गुस्से में,
कहते अम्मा बस करो, हम जाग गए हैं,
अम्मा आरती गातीं, आंखों को तरेरतीं, 
हमें चुप रहने का संकेत करतीं थीं जब....?

व्यवस्था से हटकर आज एक लिंक अधिक....


विश्व फलक पर चमक रही है
हिंदी  मधुरम भाषा
कोटि कोटि जन के नैनों की
सुफल हुई अभिलाषा.

आज्ञा चाहता है दिग्विजय

बच्चों को नींद आ रही है...





















सोमवार, 14 सितंबर 2015

क्यों बनती है नारी ही नारी की दुश्मन...अंक अंट्ठावन

ये जो तुम 
बार बार हवा देते हो, 
तो ये यादों के 
पन्ने फड़फड़ाते हैं….!!
भूल जाने दो अब, 
क्यों मुझे 
बार बार 
जगा देते हो…..!!!
सादर अभिवादन....


क्यों बनती है नारी ही नारी की दुश्मन?
हम कहते है, नारी शोषित है, नारी पर बहुत अत्याचार होते है! लेकिन क्या नारी अत्याचार के लिए सिर्फ पुरुष वर्ग ही जिम्मेदार है? क्या नारी स्वयं नारी की दुश्मन नही बनती है? वास्तव में स्त्री-पुरुष का रिश्ता परस्पर पूरकता पर आधारित है| 


सुना है गिरना बुरा है 
देखती हूँ आसपास 
कहीं न कहीं, 
कुछ न कुछ 
गिरता है हर रोज़. 


किस्सा-ए-बदतमीज़ शाहज़ादा, पागल लड़की और नीली स्याही
इक दुष्ट शहजादा था...हाँ, वही...जिसने लड़की का दिल चुरा लिया था...इस बार वो उसकी नीली स्याही की दवात लिए भागा है...बताओ, शोभा देता है उसको...शहजादा होकर भी ऐसी हरकतें...उफ़...आपको कहीं मिले तो समझाना उसे...ठीक?


ऐ मेरे मन
किसी के कहने पर कुछ न कहना
किसी दूसरे की भावनाओ में न बहना
अपने भीतर के प्रकाश को कमजोर कर जाता है


चलता रहे सफ़र... !!
एक एक रंग
आपस में मिल कर 
अलग अलग पर्मुटेसन कॉम्बिनेसन में 
रच सकते हैं अनेक रंग


आज्ञा दें दिग्विजय को

आज घर,

घर नहीं बाजार हो गया
छोटी-बड़ी सालियों
और छोटे-बड़े बच्चों से
घर गुल-ए-गुलजार हो गया
सादर...
















रविवार, 13 सितंबर 2015

१२२ साल पहले शिकागो मे हुई थी भारत की जयजयकार--अंक 57

जय मां हाटेशवरी...

आज  हिंदी को  भी...
अपने ही देश में...
पावन सीता की तरह...
अगनी परीक्षा देकर ही...
अपनी श्रेष्ठता का...
प्रमाण देना होगा क्या?...
नहीं नहीं अब नहीं...
 हिंदी अब...
रुकमणी बनकर...
अपना पथ खुद...
 बनाना जानती है...
अब चलते हैं...
आज के पांच लिंकों की ओर...



manoj sharma जी  कह रहे हैं...
अरे बाप रे बाप
हिंदी का महासम्मेलन  मध्यप्रदेश में आयोजित हुआ लेकिन सम्मलेन कम विरोधियो पर अपनी भड़ास निकालते हुए , नाकामयाबी और हताशा में चुनावी मंच समझ प्रधानमंत्री
बोलते नज़र आये ।क्या इसी तरह से हिन्दी को सम्मान दे रहे थे प्रधान मंत्री ? देश के गरिमामय पद पर विराजमान प्रधानमंत्री जी चुनावी मोड़ से निकल देश के प्रधानमंत्री
मोड़ में अभी तक नहीं आ पाए हैं ।अभी तक प्रधानमंत्री ने अपने मंत्रियो के बारे में कुछ न बोलने का प्रण लिया हुआ हैं ,बहुत अच्छी बात हैं आरोपी बनने से अच्छा
हैं की आरोपों को स्वीकार ही न करो देश की जनता को ज़बाब देने के बजाये विपक्ष को कोसते रहो पर कब तक चलेगा  आप की बात मन की बात कब तक ? प्रजा की बात कब ?


सुशील कुमार जोशी जी  कुछ अपने उसी अंदाज में  यूं कह रहे हैं...

दसवाँ हिंदी का सम्मेलन कुछ नया होगा सदियों तक याद किया जायेगा

विश्व का है
हिंदी का है
सम्मेलन बड़ा है
छोटी मोटी बात
से नहीं घुमायेगा
छोटा होता होगा
तेरे घर के आसपास
उसी तरह का कुछ
बड़ा बड़ा किया जायेगा
जमाना अंतःविषय
दृष्टिकोण का होना
बहुत जरूरी हो
गया है आजकल
एक विषय पर ही
बात करने से
दूसरे विषय का
अपना आदमी
कहाँ समायोजित
किया जायेगा

शिवम् मिश्रा  जी याद दिला रहे हैं...

१२२ साल पहले शिकागो मे हुई थी भारत की जयजयकार


स्पष्ट तौर पर मात्र एक भाषण ने ऐसी ज्योति प्रज्ज्वलित की, जिसने पाश्चात्य मानस के अंतर्मन को प्रकाश से आलोकित कर दिया और ऊष्मा से भर दिया। इस भाषण ने सभ्यता
के महान इतिहासकार को जन्म दिया। अर्नाल्ड टोनीबी के अनुसार- मानव इतिहास के इन अत्यंत खतरनाक क्षणों में मानवता की मुक्ति का एकमात्र तरीका भारतीय पद्धति है।
यहां वह व्यवहार और भाव है, जो मानव प्रजाति को एक साथ एकल परिवार के रूप में विकसित होने का मौका प्रदान करता है और इस परमाणु युग में हमारे खुद के विध्वंस
से बचने का यही एकमात्र विकल्प है।





Madan Mohan Saxena जी सुना रहे हैं...
सुन्दर हिंदी प्यारी हिंदी में प्रकाशित ग़ज़ल


उलझन आज दिल में है कैसी आज मुश्किल है
समय बदला, जगह बदली क्यों रिश्तें आज बदले हैं
जिसे देखो बही क्यों आज मायूसी में रहता है
दुश्मन दोस्त रंग अपना, समय पर आज बदले हैं



Virendra Kumar Sharma जी का कहना है...

अनादिकाल से सूर्य ओम (ॐ )का जाप कर रहा है

वैज्ञानिको का आश्चर्य वास्तव मे *समाधि* की उच्च अवस्था का चमत्कार था जिससे ऋषियों ने वह ध्वनि सुनी अनुभव की और वेदो के हर मंत्र से पहले उसे लिखा और महामंत्र
बताया |
ऋषि कहते है ये ॐ ध्वनि परमात्मा तक पहुचने का माध्यम है उसका नाम है |महर्षि पतंजलि कहते है *तस्य वाचक ? प्रणव * अर्थात परमात्मा का नाम प्रणव है , प्रणव
यानि कि ॐ |
प्रश्न यह उठता है कि सूर्य मे ही ये ध्वनि क्यूँ हो रही है ? इसका उत्तर *गीता * मे दिया गया है | भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते है -*जो योग का ज्ञान मैंने
तुझे दिया ,यह मैंने आदिकाल मे सूर्य को दिया था |* देखा जाए तो तभी से सूर्य नित्य-निरन्तर मात्र ॐ का ही जाप करता हुआ अनादिकाल से चमक रहा है |या जाप सूर्य
ही नहीं , सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड कर रहा है |

धन्यवाद...

शनिवार, 12 सितंबर 2015

हरारत हताशा से क्या हारेगी अपने घर में ही *हिंदी*


सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष
~~

शादी के बाद ...... मेरे पापा की लिखी चिट्ठी ...... मुझे लिखी , पढ़ने को मिली(शादी के पहले हमेशा साथ रहने की वजह) .... चिट्ठी की ख़ासियत ये होती थी कि ..... कभी वे भोजपुरी से शुरुआत करते तो ..... मध्य आते आते हिंदी में लेखन हो जाता था या ..... कभी हिंदी से शुरुआत करते तो मध्य आते आते भोजपुरी में लेखन हो जाता था ..... बेसब्री से इंतजार रहता था उनकी चिट्ठियों का .... तब मोबाइल नहीं था .... लैंड लाइन भी तो नहीं था .......
~~~~~~~~~~~ मेरे माइके में हम सभी घर में भोजपुरी में बात करते थे ...... सहरसा में जबतक हमारा परिवार रहा ; घर के बाहर मैथली का बोलबाला था , सबसे मैथली में बात करना पड़ा ...... बहुत ही मीठी बोली है *मैथली* ....... जब पापा सहरसा से सीवान आ गए तो घर बाहर केवल भोजपुरी का सम्राज्य हो गया .... आरा छपरा घर बा कवना बात के डर बा
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ शादी के बाद रक्सौल आये तो घर बाहर भोजपुरी का ही राज्य था लेकिन केवल मेरे पति को मुझसे हिंदी में बात करना पसंद था ..... फिर राहुल का जब जन्म हुआ तो राहुल से सब हिंदी में ही बात करने लगे ..... इनकी नौकरी में बिहार (तब झारखंड बना नहीं था) में कई जगहों पर रहने का मौका मिला .....


~~~~~~~~~~~~~~~ भोजपुरी+मगही+ मैथली+आदिवासी+हिंदी+उर्दू = खिचड़ी मजेदार लज्जतदार मेरी भाषा

शब्दों की खान
हिंदी उर्दू बहनें
भाषायें जान

ब्लॉग मित्र की लेखनी,

ब्लॉग मित्र की लेखनी

ब्लॉग मित्र की लेखनी

ब्लॉग मित्र की लेखनी

ब्लॉग मित्र की लेखनी

लगभग हिन्द के सभी राज्यों के कई शहरों को घुम कर देख चुकी हूँ......   हिन्द के हिस्सा होते हुए भी हिंदी ना बोलना ना समझना तमिलनाडु मंगलोर में देखी ...... कोशिश करें तो असम्भव नहीं ..... मेरी बहु मंगलोर की है बहुत अच्छा हिंदी बोलती है

कुछ लोग

आप कैसे हो
आप खा लो
आप पढ़ लो

आप के साथ ...... लो , हो , करो
ऐसी हिंदी मेरे समझ में नहीं आती

फिर मिलेंगे
तब तक के लिए
आखरी सलाम


विभा रानी श्रीवास्तव


शुक्रवार, 11 सितंबर 2015

मन परिंदा है.. उड़ कर आ बैठा...पचपनवीं डाल पर

मन परिंदा है 
रूठता है 
उड़ता है 
उड़ता चला जाता है 
दूर..कहीं दूर 
फिर रूकता है 
ठहरता है, सोचता है, आकुल हो उठता है 
-स्मृति आदित्य

चलते हैं लिंक्स की ओर..


गाद भरी  
झीलों की  
भाप से निकलते हैं | 
ऐसे ही  
मेघ हमें  
बारिश में छलते हैं |


हँस कर जीना सीख लिया 
हर पल रोना धोना क्या

धीरे धीरे कदम बढ़ा
डर कर पीछे होना क्या


छुट्टी ! 
मतलब नियमों- अनुशासनों से खुली छूट , 
लादी गयी व्यवस्था से मुक्ति , 
मनमाने मौज से रहने का दिन


हम जो गिर-गिर के संभल जाते तो अच्छा होता
वहशत ए दिल से निकल पाते तो अच्छा होता

बदनसीबी ने कई रंग दिखाए अब तक
बिगड़ी तक़दीर बदल पाते तो अच्छा होता


हम्म हम्म !
इको करती, गुंजायमान 
हमिंग बर्ड के तेज फडफडाते 
बहुत छोटे छोटे पर  !

आज्ञा दें यशोदा को
फिर मिलते हैं...


सुनिये कुछ नया-पुराना











गुरुवार, 10 सितंबर 2015

आज से प्रारम्भ दो दिवसीय विश्व हिन्दी सम्मेलन ....चौपनवाँ पन्ना














आज मध्य प्रदेश की राजधानी, भोपाल में
विश्व हिन्दी सम्मेलन
का शुभारम्भ हो रहा है,
हिन्दी कवि एवं लेखक उत्साहित हैं
इस सम्मेलन में उन्हें बहुत अपेक्षाएँ हैं
और क्यों न हो...
स्वाभाविक है...
हिन्दी नैपथ्य में जा रही है
और उसका स्थान
हिंग्लिश लेता जा रहा है
जो कि सोचनीय है....

चलिए चलते हैं आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर...


अब आया हिन्दी सोशल नेटवर्किंग साइट ‘मूषक’
दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन में शिरकत करने आए पुणे के अनुराग गौड़ एवं उनके साथियों ने आज यहां ‘ट्विटर’ की तर्ज पर पूरी तरह हिन्दी में काम करने वाला ‘मूषक’ सोशल नेटवर्किंग साइट देशवासियों और हिन्दी प्रेमियों के लिए पेश किया है।
हिन्दी सोशल नेटवर्किंग साइट ‘मूषक’ के मुख्य कार्यपालन अधिकारी :सीईओ: अनुराग गौड़ ने बताया कि जहां ट्विटर पर शब्दों की समय सीमा 140 शब्द हैं, वहीं हमने मूषक पर इसे 500 रखा है। कम्प्यूटर अथवा स्मार्टफोन पर हिन्दी टाइप करना रोमन लिपि पर आधारित है, इसलिए लोग हिन्दी लिखने से कतराते हैं।


बचे  न   मुल्क   वह   चिराग   जलाए   रखिये ।
उन  लुटेरों  की  सियासत  को  चलाए   रखिये ।।

खा  गए  शौक  से  चारा  जो  मवेशी  का यहां।
उनकी खिदमत में इलेक्शन को सजाये रखिये।।


हे ! जगत के पालन हार
सुन्दर सृष्टि रचने वाले
बना दिया सब कुछ तुमने
तुमको लाख प्रणाम .


सबको सबसे आस मुसाफिर
कुछ तो खासमखास मुसाफिर
कहते अक्सर लोग उसी ने
तोडा है विश्वास मुसाफिर


नेकियों के लिबास से, ढक लो बदन तुम अपना 
भगवान के घर कपड़ों की दुकान नहीं है
रूह बदलती है यहाँ रोज घरौंदा
उसका कोई अपना मकान नहीं है |


सुधिजन हिन्दी टायपिंग को लेकर परेशान हैं
मेरे सिवा...
मैंने यूनीकोड को बाहर लिकलवा लिया है
ये सभी कम्प्यूटर व लैपटॉप पर मौजूद रहती है
मैं सीधे इनस्क्रिप्ट की बोर्ड से सीधे हिन्दी मे टाईप करती हूँ
कोई भी कम्प्यूटर का जानकार दो मिनट में बाहर ला देगा

अब आज्ञा दें यशोदा को...


सुनिए भूले-बिसरे गीत...












बुधवार, 9 सितंबर 2015

संयुक्त राष्ट्र की भाषा बने हिंदी--अंक 53


जय मां हाटेश्वरी...
      भारत एकमात्र ऐसा देश है,जिसकी पांच भााषाएं विश्व की 16 प्रमुख भाषाओं की सूची में शामिल हैं। 160 देशों के लोग भारतीय भाषाएं बोलते हैं। विश्व के 93 देश ऐसे हैं, जिनमें हिंदी जीवन के बहुआयामों से जुड़ी होने के साथ,विद्यालय और विश्व विद्यालय स्तर पर पढ़ाई जाती है। चीनी भाषा मंदारिन बोलने वालों की संख्या, हिंदी बोलने वालों से ज्यादा जरूर है, किंतु अपनी चित्रात्मक जटिलता के कारण, इसे बोलने वालों का क्षेत्र चीन तक ही सीमित है। शासकों की भाषा रही अंग्रेजी का शासकीय व तकनीकी क्षेत्रों में प्रयोग तो अधिक है, किंतु उसके बोलने वाले हिंदीभाषियों से कम हैं। 1945 में संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषाएं 4 थीं,
    अंग्रेजी,रूसी,फ्रांसीसी और चीनी। ये भाषाएं अपनी विलक्षणता या ज्यादा बोली जाने के बनिस्वत, संयुक्त राष्ट्र की भाषाएं इसलिए बन पाईं थीं, क्योंकि ये विजेता महाशक्तियों की भाषाएं थीं। बाद में इनमें अरबी और स्पेनिश शामिल कर लीं गई। विश्व-पटल पर हिंदी बोलने वालों की संख्या दूसरे स्थान पर होने के बावजूद इसे संयुक्त राष्ट्र में शामिल नहीं किया गया है। यही नहीं भारतीय और अनिवासी भारतीयों को जोड़ दिया जाए तो हिंदी पहले स्थान पर आकर खड़ी हो जाती है। भाषाई आंकड़ों की दृष्टि से जो सर्वाधिक प्रमाणित जानकारियां सामने आईं हैं,उनके आधार पर संरा की छह आधिकारिक भाषाओं की तुलना में हिंदी बोलने वालों की स्थिति निम्न है,
      मंदारिन 80 करोड़, हिंदी 55 करोड़, स्पेनिश 40 करोड़, अंग्रेजी 40 करोड, अरबी 20 करोड़, रूसी 17 करोड़ और फ्रेंच 9 करोड़ लोग बोलते हैं। जाहिर है, हिंदी संरा की आंग्रिम पांक्ति में खड़ी होने का वैध अधिकार रखती है।
       हिंदी के साथ एक और विलक्षणता जुड़ी हुई है। हिंदी जितने राष्ट्रों की जनता द्वारा बोली व समझी जाती है, संयुक्त राष्ट्र की पहली चार भाषाएं उतनी नहीं बोली जाती हैं। हिंदी भारत के अलावा नेपाल, मॉरिशस, फिजी, सूरीनाम, गयाना, त्रिनिनाद, टुबैगो, सिंगापुर, भूटान, इंडोनेशिया, बाली, सुमात्रा, बांग्लादेश और पाकिस्तान में खूब बोली व समझी जाती है। भारत की राजभाषा हिंदी है तथा पाकिस्तान की उर्दू, इन दोनों भाषाओं के बोलने में एकरूपता है। दोनों देशों के लोग लगभग 60 देशों में आजीविका के लिए निवासरत हैं। इनकी संपर्क भाषा हिंदी मिश्रित उर्दू अथवा उर्दू मिश्रित हिंदी है। हिंदी फिल्मों और दूरदर्शन कार्यक्रमों के जरिए भी हिंदी का प्रचार-प्रसार निरंतर हो रहा है। विदेशों में रहने वाले दो करोड़ हिंदी भाषी हिंदी फिल्मों, टीवी सीरियलों और समाचारों से जुड़े रहने की निरंतरता बनाए हुए हैं।

      ये कार्यक्रम अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मन, जापान, आस्ट्रेलिया, कनाडा, हालैंड, दक्षिण अफीका, फ्रांस, थाइलैंड आदि देशों में रहने वाले भारतीय खूब देखते हैं। संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों की संख्या 191 है। संरा में हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने के लिए योग-दिवस की तरह एक प्रस्ताव लाना होगा,जिस पर 129 देशों की सहमति अनिवार्य होगी। यह सहमति बन जरती है तो संरा के विधान की धारा-51 में संशोधन होगा और उसमें संयुक्त राष्ट्र की भाषा के रूप में हिंदी जुड़ जाएगी। भोपाल में हो रहे विश्व हिंदी सम्मेलन में हिंदी प्रेमियों का यह दायित्व बनता है कि वे इस दिशा में उचित पहल करें,जिससे हिंदी पहले तो देश के राजनीतिक अजेंडे में
शामिल हो और फिर इसकी अगली कड़ी में इसे संरा की भाषा बनाने की मुहिम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज चलाएं। हिंदी संरा की भाषा बन जाती है तो इसे देश की राष्ट्रभाषा बनने में भी ज्यादा समय नहीं लगेगा। ऐसा होता है तो भारतवासियों के लिए भाषाई दासता से मुक्ति का द्वार भी खुलने लग जाएगा
-------प्रमोद भार्गव
हम उमीद कर सकते हैं कि...ये दिन भी अवश्य आयेगा...इस विश्वास के साथ पेश हैं आज के 5 लिंक...

संजय जैन  13 साल के इस मासूम का सुसाइड नोट 
‘जहां इंसान से ज्यादा पैसों की कीमत है,
उसे ऐसी दुनिया में नहीं जीना’.

गर्भकाल गर्भस्थ की पहली पाठशाला है
ब्रह्मऋषि  नारद जी की कुटिया में वे गर्भकाल में रहीं थीं क्योंकि स्वर्गका महाराजा इंद्र उनका अपहरण कर लाया था। ताकि हिरण्यकशिपु का वंश ही आगे न बढ़ सके जिसने देवताओं से राड़ ठान ली थी त्रिलोक को प्रकम्पित कर रखा था।


Windows 10, Windows 8, Windows 7, Windows xp में Virtual Wifi Network बनाने का तरीका


ेट को शेयर करके मोबाइल में भी नेट चला सकते हो

ये ट्रिक में इसलिए बता रहा हु की बहुत से लोग मेरी तरह अपने घर पर ब्रॉडबेन्ड का इस्तेमाल करते होंगे और उसी ब्रॉडबैंड के डेटा को अपने मोबाइल पर भी इस्तेमाल
करना चाहता होगा वैसे तो wifi मॉडेम के द्वारा भी हम एक साथ कई डिवाइस में नेट चला सकते है लेकिन कई लोग आज भी wifi मॉडेम के बिना भी नेट चलाते है आज की ट्रिक
करने के बाद वो बिना wifi मॉडेम के भी अपने नेट को शेयर कर सकते है

मै कौन हूँ
न मैं पहचान सकती हू
न जान सकती हूँ
एक तुम हो जो
मुझे  जानते भी हो और पहचानते भी
तुम्हारे हाथों मे पढ़ी, बड़ी हूँ मैं
तुम्हारे हांथ, कब लगे कुरेदने
तुम्ही जान सकते हो
तुम्ही बचा सकते हो मुझे
गली कूचों मे बिखरे दरिंदों से

शेर-ओ-शायरी - सुशील कुमार 'मानव 
• हाथों में हथियार लिए, कुछ मुर्दे घूम रहे हैं,
इंसानियत का तकाज़ा है, इन्हें दफ़नाओ नहीं, जिंदा करो।
• हिंदू का है, न मुसलमान का है
सियासत की देह का, कोढ़ है मज़हब।

धन्यवाद...

मंगलवार, 8 सितंबर 2015

आज विश्व साक्षरता दिवस पर शुभ कामनाएँ....अंक बावन














एक बार एक कवि हलवाई की दुकान पहुँचे,
जलेबी और दही ली और वहीं खाने बैठ गये।
इतने में एक कौंआ कहीं से आया और
दही की परात में चोंच मारकर उड़ चला।
हलवाई को बड़ा गुस्सा आया
उसने पत्थर उठाया और कौंए को दे मारा।
कौंए की किस्मत ख़राब,
पत्थर सीधे उसे लगा और वो मर गया।
कवि महोदय के हृदय में ये घटना देख  दर्द जगा।
वो जलेबी, दही खाने के बाद पानी पीने पहुँचे

तो उन्होने एक कोयले के टुकड़े से वहाँ एक पंक्ति लिख दी :-
"काग दही पर जान गँवायो"
कवि ने सही लिखा..

एक अन्य ने ऐसा पढ़ा..
"कागद ही पर जान गँवायो"

और एक असफल प्रेमी ने कुछ यूँ पढ़ा
"का गदही पर जान गँवायो"

यहाँ पर एक अधिक लिंक है....

चलिए चलते हैं लिंक्स की ओर....

"बड़े मियां बिल्ली तो आपने बेच दी। अब इस पुराने कटोरे का आप क्या करोगे? इसे भी मुझे ही दे दीजिए। बिल्ली को दूध पिलाने के काम आएगा। चाहे तो इसके भी 100-50 रुपए ले लीजिए।' 
.........
जुम्मन मियां ने जवाब दिया, "नहीं साहब, कटोरा तो मैं किसी कीमत पर नहीं बेचूंगा, क्योंकि इसी कटोरे की वजह से आज तक मैं 50 बिल्लियां बेच चुका हूं


आम बच्चों की तरह
कागज की कश्ती बनाना
उसे पानी में तैराना
तैरते देखना
खुश होना
तालियाँ बजाना
मैंने भी किया था


सुनते हैं कि बुढ्ढे के कुर्ते में एक कागज भी मिला है।"
- "ओह!"
- "हाँ भाई, सिर्फ एक पंक्ति लिखी हुई थी - दवाईयों और इलाज में काफी पैसे खर्च होते हैं, पर एक पुड़िया जहर तो २ रूपये में आता है ना!!!"


तोहरे साथ हमेशा  
धोखा होला गंगा माई | 
सिर्फ़ तमाशा देखत हौ  
हर टोला गंगा माई |

और ये आज का अंतिम सूत्र...


सूखे खेत चिंघाड़ते ही हैं
निर्विवाद सत्य है ये
फिर क्यों शोर मचा रही हैं
आकाश में चिरैयायें

आज्ञा दें....
फिर मिलेंगे और मिलते रहेंगे
यशोदा















सोमवार, 7 सितंबर 2015

विरोधों की सभी मानव जंजीरें टूट जाती हैं.....पृष्ठ इक्कावन

मेरी 
तमन्ना न थी 
तेरे बगैर रहने की .... 
लेकिन
मज़बूर को ,
मज़बूर की ,
मजबूरिया.. 
मज़बूर कर देती है ..!!!!
-यशोदा उवाच..

शनिवार को भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ
और रविवार से एक सप्ताह तक 
नन्द बाबा के घर में उत्सव चलता रहेगा....

आज की रचनाओ की ओर बढ़ें.....

संस्कृत में हास्य व्यंग्य - हिंदी भाषा टीका सहित
इयम् एकविंशतिः शताब्दी
पश्य सखे! आगता भारते।।
श्वानो गच्छति कारयानके
मार्जारः पर्यङ्के शेते,
किन्तु निर्धनों मानवबालः
बुभुक्षितो रोदनं विधत्ते।

हिन्दी अनुवाद...
भारत में आ रही साथियों
देखो इक्कीसवीं शताब्दी।।
कुत्ता चलता कार यान में
बिस्तर पर बिल्ली सोती है।
बेचारे गरीब की सन्तति
किन्तु भूख सहती रोती है।।


मुकेश अम्बानी के एक फैमिली फ्रेंड ने कहा :- 
"इसीलिए मैं मुकेश अम्बानी के घर नहीं जाता" 
एक बार मैं एंटीलिया गया,,,, नीता भाभी बोलीं--- 
"क्या लेंगे भाईसाहब, फ्रूट जूस...सोडा...चाय...कॉफी... हॉट चॉकलेट...इटैलियन चाय या फ्रोज़न कॉफी ?" 
उत्तर--- "चाय ले लूँगा, भाभी जी" 


काला चश्मा लगा 
कर सपने में अपने
आज बहुत ज्यादा 
इतरा रहा है 
शिक्षक दिवस 
की छुट्टी है खुली 
मौज मना रहा है 


दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन की तैयारियां जोर शोर से शुरू
दसवें विश्व हिंदी सम्मेलन में समकालीन मुद्दों और विषयों पर विचार-विमर्श किया जाएगा तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, सूचना प्रौद्योगिकी, प्रशासन और विदेश नीति, विधि, मीडिया आदि के क्षेत्रों में हिंदी के सामान्य प्रयोग और विस्तार से संबंधित तौर तरीकों पर चर्चा होगी। सम्मेलन का मुख्य विषय ‘हिंदी जगत: विस्तार एवं संभावनाएं’ है।


कितनी क्षीण पड़ जाती है हमारी आवाजें
विरोधों की सभी मानव जंजीरें टूट जाती हैं 
और हम भुला देते है 
उन सभी कारणों को 
जो भय उपजाते हैं हमारे भीतर

आज्ञा दें दिग्विजय को

और सुनें ये गीत...मेरे जन्म से पहले का है