---

मंगलवार, 17 दिसंबर 2024

4340...गोल रोटियों का भय

मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
-------
 साल की बोतल में बची दिसंबर की
ठंडी बूँदों को घूँट-घूँट पीता समय
 दार्शनिकता बघारने लगता है-

सुबह का चलकर शाम में ढलना/जीवन का हर दिन जिस्म बदलना
हसरतों की रेत पे दर्या उम्मीद की/ख़ुशी की चाह में मिराज़ सा छलना
चुभते हो काँटें ही काँटे तो फिर भी/जारी है गुल पे तितली का मचलना
वक़्त के हाथों से ज़िंदगी फिसलती है/नामुमकिन इकपल भी उम्र का टलना
अंधेरे नहीं होते हमसफ़र ज़िंदगी में/सफ़र के लिये तय है सूरज का निकलना।
      #श्वेता🍁
------------
आज की रचनाएँ-

रोटियों को गोल बेलने में 
शताब्दियों से भय जी रही औरतों ने 
क्यों नहीं उठाई आवाज़ 
यह बात भी मुझे आज तक समझ नहीं आई 
जबकि रोटियों के गोल होने या न होने से 
नहीं बदलता , न ही संवर्धित होता है उसका स्वाद 


ये गंध,
सुगंध है की दुर्गंध?
अवलंबित है इस पर की 
किसी परिस्थिति विशेष में,
आपके हृदय की भावनाएं क्या है,
वो कौन सी अनुभूति है
जो मुझको, तुमको नियंत्रित करती हैं 
क्या ये भावनाएं 
किसी मीर या किसी निराला के उद्यान से है 
या फिर किसी विक्षिप्त के 
नराधम सड़े हुए मस्तिष्क की कुंठा के बांसी अवशेष।


"लड़कों को ऐसा होना चाहिए" 
कहने वाले 
लड़कों की फिक्र नहीं कर रहे थे 
"लड़कियां तो ऐसी अच्छी लगती हैं" 
कहने वाले 
लड़कियों की अच्छाइयाँ नहीं सोचते 



दिन भर चलकर सूरज लौटा, फैल रहा है अंधेरा। 
खग कलरव कर उड़ते जाते,खोज रहे हैं बसेरा। 
तुम भी अपने घर को पहुंचो, मधु रजनी का बेरा। 
मन का दीप जलाओ, सुख से रैन बिताओ। 
जीवन को रंगी बनाओ, जो मन भाये रे !
दिन बीता जाए !


लड़कियों को सबल सशक्त बनाने का अभियान इतना तेज़ हुआ कि ये लड़कियाँ कब सही-गलत, उचित-अनुचित, न्याय-अन्याय की सीमा रेखा को क्रॉस करके प्रताड़ित होने अबला नारी की भूमिका से बाहर निकल कर प्रताड़ित करने वाली जल्लाद खलनायिका की भूमिका में आ गईं किसीको पता ही नहीं चला ! आजकल समाज में लड़कियाँ ज़रा भी दीन हीन और कातर नहीं रह गई हैं ! नारी जाति में भी घटिया सोच और आपराधिक प्रवृत्ति की अनेकों स्त्रियाँ हैं जिन्होंने इन कानूनों का दुरुपयोग कर अनेकों भले और सज्जन पुरुषों की और अपने ससुराल वालों की नाक में दम कर दी है ! 

--------

आप सभी का आभार।
आज के लिए इतना ही 
मिलते हैं अगले अंक में।

4 टिप्‍पणियां:

  1. साल की बोतल में बची दिसंबर की
    ठंडी बूँदों को घूँट-घूँट पीता समय
    दार्शनिकता बघारने लगता है-

    जवाब देंहटाएं
  2. सुबह का चलकर शाम में ढलना
    जीवन का हर दिन जिस्म बदलना
    हसरतों की रेत पे दर्या उम्मीद की
    ख़ुशी की चाह में मिराज़ सा छलना
    जबरदस्त
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर सूत्रों से सजी आज की हलचल ! मेरे आलेख को आज की हलचल में स्थान दिया ! आपका हृदय से बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! सप्रेम वन्दे !

    जवाब देंहटाएं

आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें

आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! आप से निवेदन है आप टिप्पणियों द्वारा दैनिक प्रस्तुति पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।

टिप्पणीकारों से निवेदन

1. आज के प्रस्तुत अंक में पांचों रचनाएं आप को कैसी लगी? संबंधित ब्लॉगों पर टिप्पणी देकर भी रचनाकारों का मनोबल बढ़ाएं।
2. टिप्पणियां केवल प्रस्तुति पर या लिंक की गयी रचनाओं पर ही दें। सभ्य भाषा का प्रयोग करें . किसी की भावनाओं को आहत करने वाली भाषा का प्रयोग न करें।
३. प्रस्तुति पर अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .
4. लिंक की गयी रचनाओं के विचार, रचनाकार के व्यक्तिगत विचार है, ये आवश्यक नहीं कि चर्चाकार, प्रबंधक या संचालक भी इस से सहमत हो।
प्रस्तुति पर आपकी अनुमोल समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक आभार।