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सोमवार, 16 दिसंबर 2024

4339 ... धूप खुल कर हँसी हैं कई दिनों के बाद

 सादर अभिवादन



वर्ष 2024 की विदाई  
बस अब होने को है
एक नई पहल
बंद ब्लॉगों को
ऑक्सीजन का प्रदाय

आज पम्मी जी बाहर है
कुछ अद्यतन रचनाए भी देखेंः-




इसलिए कठोर हृदय हूं
मुझे कोमलता से क्या सरोकार
आंसुओं को जब्त कर लेता हूं
पर आत्मा तो एक है
वो कहां मानती है भेदभाव
जन्मों से उसका आवागमन है
कभी पुरुष तो कभी स्त्री का
वेश धारण किया है उसने
पुरुष की कठोरता है उसमें
तो स्त्री की कोमलता भी है
मुझे (पुरुष) भी दर्द होता है




कभी लहरों पे तिरते हैं कभी मिलते सफीनों पर
परिंदे हैं ये संगम के नहीं रहते जमीनों पर

ग़ज़ल के शेर अब मज़दूर की गलियों में मिलते हैं
कभी शायर ग़ज़ल कहते थे शाहों और हसीनों पर






जी चाहता है बहुत दूर वादियों में
कहीं खो जाना,धुंध भरी राहों
में, बूँद बूँद मुक्कमल बिखर
जाना, तुम्हारी गर्म साँसों
की तपिश में है मंज़िल
ए निशां, इक रूहानी
अनुबंध में हों जैसे
शमअ ओ
परवाना,
डूबता





गुजरा पल तो बीत गया
तू कल को है सीच
इस पल में जब ज्योत जली
रोशन है हर चीज




जिसका मुँह टेढ़ा वह आइने को तमाचा मारता है।
कायर सिपाही हमेशा हथियार को कोसता है।।

जो लिखना नहीं जानता वह कलम को खराब बताता है।
भेड़िए को मेमना पकड़ने का कारण अवश्य मिल जाता है।।




धूप खुल कर हँसी हैं
कई दिनों के बाद
ठिठुरन से अकड़ी कोंपलें
अभी-अभी अँगड़ाई के मूड में
आईं ही थीं कि..,
वह नटखट लड़की सी
जा छिपी बादल की गोद में


कल मिलिएगा श्वेता जी से
आपके नजर नें कोई
बंद ब्लॉग नजर आया हो
तो लिंक के साथ सूचित करिएगा
अग्रिम आभार

6 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात।
    सुंदर पठनीय रचनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात ! बहुत सुन्दर सूत्र संयोजन ।संकलन में सृजन को सम्मिलित करने के लिए सादर आभार सहित धन्यवाद आदरणीय दिग्विजय अग्रवाल जी ।

    जवाब देंहटाएं
  3. आभार आपका. सादर प्रणाम. सभी लिंक्स पठनीय और सुंदर

    जवाब देंहटाएं
  4. सुप्रभात ! पठनीय रचनाओं से सजा सुंदर अंक

    जवाब देंहटाएं
  5. सुंदर रचनाओं का संकलन।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार 💐

    जवाब देंहटाएं

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