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गुरुवार, 10 अक्टूबर 2024

4272...रेत पर टिकते नहीं घर!

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया अनीता जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में आज प्रस्तुत हैं पाँच चुनिंदा रचनाएँ-

रेत पर टिकते नहीं घर

आँख भरकर देख लो बस

मुस्कुरा लो साथ मिलकर,

किंतु न बाँधो उम्मीदें

रेत पर टिकते नहीं घर!

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शब्द से ख़ामोशी तकअनकहा मन का (२६)

एक इंसान के चले जाने पर उससे जुड़े सभी इंसानों के मनोभाव पृथक होते है । ईश्वर के रचे इस संसार में बेशक हम सबकी सोच भिन्न है परंतु हम सब एक दूसरे के पूरक भी हैं

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माँ

करे गर्भ जब अठखेली,धड़कन सरगम बनती,

कोख सींच आशाओं से,मन द्वार सजाती है।।

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गुनाहों का देवता: एक मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण

भारती जी ने समय के सापेक्ष एक अजर अमर साहित्य रचा है. उन्होंने चंदर को महानायक बनाकर नहीं प्रस्तुत किया वरन सामान्य दिखाने का प्रयास किया. हम जिस माहौल में रहते हैं वहाँ अति आदर्श का क्या हश्र होता हैजरा सा मानसिक असंतुलन होने पर भयंकर कुंठा के रुप में किस तरह निकलता है, यह सब दिखाता है यह किरदार. मध्याह्न के पहले से बाद तक कहानी बिल्कुल ही बदल जाती है. *****

कद्दू

अपनी नारंगी चमक के साथ, यह प्यारा कद्दू पतझड़ की सजावट में चार चाँद लगा देता है। इन दिनों हर घर के एंटरेंस पर कद्दू सजा है जो हमारे भारतीय कद्दूओं की साइज से कही ज्यादा बड़ा होता है । यहाँ पर कद्दुओं को खोखला कर उन पर कार्विंग की जाती है और उसके अंदर कैंडल जलायी जाती है जिसे जैक ओ 'लैंटर्न के नाम से जाना जाता है, इसके पीछे एक लोकल कहानी है । एक किवदंती यह भी है कि कद्दू बुरी आत्माओं को दूर भगाते है इसलिये हैलोवीन में हर घर के प्रवेशद्वार पर आपको कद्दू मिलेगा।

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 फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 


2 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात ! माँ कालरात्रि की कृपा सब पर बनी रहे, सुंदर प्रस्तुति, बहुत बहुत आभार रवींद्र जी !

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