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शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2024

4273...रतन नवल टाटा नहीं रहे

सादर अभिवादन



एक अपूरणीय क्षति
रतन जी भाई टाटा नहीं रहें
उनके बोल
-अगर आप तेज चलना चाहते हैं ,
तो अकेले चलिए लेकिन अगर आप दूर तक चलना चाहते हैं तो ,
साथ-साथ चलें।

-अगर लोग आप पर पत्थर मारते हैं तो 
उन पत्थर का उपयोग अपना महल बनाने में करें।

ईश्वर उन्हें शांति प्रदान करे

आज की शुरुआत



जाओ, पहले राम को खोजो,
इतना ताक़तवर बनाओ उसे
कि अंत कर सके सारे रावणों का,
जिस दिन ऐसा हो जाएगा,
बुला लेना हमें,
उसी दिन मनाएंगे हम दशहरा.

 




दूर तक नजर दौड़ाए
छमकते-छमकाते पलकों के साथ
आसमान की ओर नजरें थमी
तो जेहन खन-खन बजता रहा
घनघनाती रही बेसुरी सांसे
पर लफ्ज नहीं बुदबुदाते
मोड़कर पलकें
जमीं की ओर
लौटती रही आंखें




सुख में  घर और  द्वार रहे
दुख के नहीं  पहाड
निर्भीक  होकर  कर्म  करो
सिंह  सी  भरो दहाड़




दो गर्वोन्नत अहंकारी बादल
बढ़ा रहे थे असमय हलचल
मैंने भी देखा उन्हें
नभ में  
घुमड़ते-इतराते हुए
डराते-धमकाते हुए
आपस में टकराए  
बरस गए
बहकर आ गए

आज बस
वंदन

4 टिप्‍पणियां:

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