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मंगलवार, 6 अगस्त 2024

4209...खिलते हुए फूलों की नीरवता

 मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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शतरंज

शह-मात खेल..?

ये तेरा घर,

ये मेरा घर,

सफेद पर फ़तह,

काले की जंग...

धोखा-छल,

दुख-मौत

क़िस्मत-बदकिस्मती

चालबाजियाँ और षड्यंत्र

जीत-हार,

फिर समय की धार,

आँख में बाल.....

तख़्तापलट

बिसात नई

प्यादे वही,खिलाड़ी पुराने

कोई बचेगा नहीं...

खेल रचेगा नयी...

बारूद के ढेर पर सिंहासन

मिट जाएँगे दोनों ही

जो हारेगा वो भी

जो जीतेगा वो भी...।

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आज की रचनाएँ-


यदि मेरे हृदय में होती इतनी नीरवता
इतनी शांति 
तो मैं गाता कोई गीत इस निर्जन आकाश में 
मेरे शब्द गूंज उठते , धीमे धीमे छा जाते आकाश में
और फिर हमेशा के लिए खो जाते हवाओं में.



मुक्ति उन्हें भी मिलेगी,

जो पीछे छूट जाएंगे,

वे झूमेंगे-नाचेंगे,

ख़ुश नज़र आएँगे,

तुम देख सकते,

तो भ्रम में पड़ जाते 

कि यह क्या है, 

तुम्हारी शव-यात्रा या बारात? 






जब भी तुम्हें 
असह्य पीड़ा हो, 
जब भी छल 
तुम्हारा ह्रदय करे विदीर्ण;
 तुम रोना और 
तब तक रोना,
जब तक उस पीड़ा या 
छल का ठोस गोला, 
गीला होकर 
पिघल न जाये!


परिचय:अपरिचय


काहे की शुरुआत, यहां तो शुरुआत से पहले वापसी की फिकर है। कोई भरोसा है बरसात का , कब तेज हो जाए ; कब रास्ता ब्लॉक हो जाए बरसाती पानी से !!! "  
शुरुआत, फिर से, नए सिरे से, नई जगह से !!! नए चेहरे ? नया नाम ?? पुराना चेहरा, पुराना नाम, पुराना इंसान !!!! फिर नया क्या है ? नया विचार ? नमया सवाल , नया जवाब ??  कितने ही प्रश्न, कितने ही ख्याल एक साथ बोलने लगे, शोर मचाने लगे। 

और फिर से नज़र इधर उधर भटकने लगी, अनजाने चेहरे और लोग; कोई परिचय या परिचित नहीं। क्या हर समय, हर जगह कोई परिचय की रस्सी या लाठी होना जरूरी है ? क्या इसके बिना आगे बढ़ा नहीं जाता ?



पिछले 53 साल का अनुभव है कि बांग्लादेश जब उदार होता हैतब भारत के करीब होता है। जब कट्टरपंथी होता हैतब भारत-विरोधी। शेख हसीना के नेतृत्व में अवामी लीग की सरकार के साथ भारत के अच्छे रिश्तों की वजह है 1971 की वह ‘विजय’ जिसे दोनों देश मिलकर मनाते हैं। वही विजय  कट्टरपंथियों के गले की फाँस है। पिछले 15 वर्षों में अवामी लीग की सरकार ने भारत के पूर्वोत्तर में चल रही देश-विरोधी गतिविधियों पर रोक लगाने में काफी मदद की थी। भारत ने भी शेख हसीना के खिलाफ हो रही साजिशों को उजागर करने और उन्हें रोकने में मदद की थी। शायद उन्हें इस हिंसा के पीछे खड़ी ताकतों के प्रति आगाह भी किया होगा।

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आज के लिए बस इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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5 टिप्‍पणियां:

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