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शुक्रवार, 12 जुलाई 2024

4184....विस्मृत अधूरी प्रीत कोई...

 शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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किसी भी देश का विकास उस देश के युवाओं पर ही हमेशा से निर्भर करता रहा है। हम यह कह सकते हैं कि युवा ही राष्ट्र का संरचनात्मक और कार्यात्मक ढांचा है। प्रत्येक राष्ट्र की तरक्की का आधार उसकी युवा पीढ़ी होती है, जिसकी उपलब्धियों से उस राष्ट्र का विकास होता है। 

किंतु,पुणे,नागपुर या मुबंई नाबालिग,बिगड़ैल, शराबी अमीरजादों  के मँहगी,बेकाबू गाड़ियों से कुचलकर लोगों को मार डालना  और आनन-फानन में जमानत हासिल करने जैसी दुस्साहस पूर्ण घटनाओं  ने असंख्य सवालों को जन्म दिया है।

किशोरावस्था विकास की एक बहुत ही आत्म-केंद्रित अवस्था होती है क्योंकि युवा स्वप्नों के हिंडोले में अपनी स्वयं की जरूरतों में व्यस्त हो जाता है, और दूसरों की जरूरतों के प्रति उदासीन हो जाता है। पर यहाँ आश्चर्य तो इस बात पर है कि माता-पिता अपने किशोर नाबालिग बच्चे को शराब पीने की छूट दे रहे मँहगी गाड़ियों की चाभी पकड़ा रहे और तो और किसी की जान लेने पर शहजादों को छुड़ाने के लिए अपने पैसों और रूतबे का इस्तेमाल कर उनकी गलतियों पर उन्हें शह दे रहे!! ऐसे युवाओं का ख़ुद का भविष्य प्रश्नों के घेरे में ये देश का कैसा भविष्य बनेंगे आप ही समझ सकते हैं।पैसों के बल पर दुनिया को खरीदने का स्वप्न देखने वालेनाबालिगों को मासूम न समझे,जब अपराध करने में उनकी उम्र आड़े नहीं आयी तो उन्हें कड़ी से कड़ी सजा मिलनी ही चाहिए न और अपराधी बनाने के जिम्मेदार माता-पिता को भी दंडित किया जाने का कानून बनना चाहिए ताकि समाज को सकारात्मक संदेश मिले। 

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आज की रचनाएँ-


गाती हो अनुराग-राग 
या फिर विरह का गीत कोई?
अहर्निशं मथती जाती कदाचित 
विस्मृत अधूरी प्रीत कोई !
गाती जाती बस अपनी धुन में
ना कहती  कुछ उत्तर में !
 

तुम हमेशा
मेरे करीब आने से डरती हो
कहती हो
कि, लोग तरह तरह की कहानी गढ़ेंगे
लिख देंगें
उपन्यास 


मरीज़: डॉ साहब, आपकी दवा से बहुत फायदा हुआ है। लेकिन बी पी कभी कभी बढ़ जाता है। 
डॉक्टर: अच्छा, कब बढ़ता है ?
मरीज़: एक तो तब बढ़ता है जब मैं टी वी पर नेताओं की बहस सुनता हूं। लेकिन जब मैं टी वी बंद कर देता हूं, तब 5 मिनट में नॉर्मल हो जाता है। 
दूसरा जब मैं अख़बार पढ़ता हूं।



▪️ चोरों के कारण जेलें हैं, जेलर हैं, जेलों के लिए पुलिस भी है। कितने लोगों को काम मिलता है।

▪️ मोबाइल, लैपटॉप, कोई इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, साइकिल, वाहन जैसी कई उपयोग में आने वाली चीजें चोरी हो जाती हैं तो लोग नई खरीद लेते हैं, इस खरीद फरोख्त से देश की आर्थिक स्थिति को मजबूती मिलती है और कितने लोगों को काम मिलता है।





अतीत हमेशा से बहुत सुंदर और मोहक लगता है। अब याद करती हूं तो याद आता है कि जब मेरी उम्र कहानियां और उपन्यास पढ़ने की हुईतब तक लाइब्रेरी बंद हो चुकी थी। वैसे किताब की दुकान तो अब भी नहीं है वहांवहीं ही क्‍यों..शहरों में भी एक-एक कर सभी दुकानें बंद हो चली है...और अब सारा ज्ञान लोग मोबाइल से प्राप्त करते हैं। बदलते गांव को देखती हूं तो निराशा होती है। अब न वहां पहले की तरह प्यार है न व्यवहार। भले ही सिर से पल्लू उतर गया होऔरतें हाट-बाजार करने लगी हैंमगर यह किसी के ख्याल में नहीं आया कि मरती हुईलाइब्रेरी को बचा लिया जाएया गाँव में पढ़ने की संस्कृति विकसित हो। बल्कि अब वो गाँव कस्बा हो गया है और निरंतर कई होटल और मॉलनुमा दुकानें खुल गई हैंमगर बौद्धिक विकास के लिए अब भी वहां कोई प्रयास नहीं किया जा रहा।   


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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में ।
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8 टिप्‍पणियां:

  1. अप्रतिम अंक
    धारदार अग्रालेख
    राजनीतिक दलों को चंदा
    इन्हीं बिगड़ैल शहजादों के
    परिवार से ही मिलता है
    आभार
    सादर वंदन

    जवाब देंहटाएं
  2. सशक्त भूमिका बेहतरीन प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर प्रयास। बड़े बाप के बिगड़ैल बच्चों पर बहुत सही लिखा है। इसमें मां बाप भी उतने ही अपराधी हैं जितने बच्चे।

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रिय श्वेता, एक अरसे बाद अपनी रचना को अपने प्रिय मंच पर देखकर मन आहलादित् है! ब्लॉग से इतने दिन दूर रहकर कुछ लिखा नही गया! पर ब्लॉग के जन्मदिवस पर अपने पाठकों का आभार किये बिना रह न सकी! पाँच लिंक मंच को नमन करते हुए अपने सभी स्नेही पाठकों को प्रणाम करती हूँ जिनमे प्यार और प्रोत्साहन ने लेखन में रंग भरे?! और तुम्हारी भूमिका मानो मेरे ही अंतरमन के प्रश्न हैं! आज के युवाओं को लापरवाही की परवरिश देने वाले माता_ पिता निश्चित रूप से दोषी हैं! गुरुकुल परम्परा के देश में इन सिरफिरे दबंग युवाओं पर लगाम कसने का प्रभावी कदम बहुत जरूरी है! अन्यथा इनके बेलगाम रथ के नीचे न जाने कितने निर्दोष लोग कुचले जायेंगे! आज की रचनाएँ अच्छी लगी! रश्मि जी का लेख बहुत अच्छा लगा! निश्चित रूप से अभी हाल के समय में न किताबें बचने की उम्मीद है ना गाँव का देहातीपन के बचने की! पर एक उम्मीद मन में जरूर है कि औद्योगीकरण और प्रदूषण के सताये लोग गाँव की और लौटेंगे जरूर! सभी को मेरी शुभकामनाएं और आभार! तुम्हें भी मेरा प्यार और आभार ❤❤🌺🌺



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  5. सही कहा आपने परन्तु इन बिगड़ैल अमीरजादों तक पहुँचने के लिए तो कानून के हाथ छोटे पड़ जाते है ,फिर सजा कैसे मिलनी इन्हें...
    विचारणीय भूमिका के साथ लाजवाब प्रस्तुति। सभी लिंक बेहद उत्कृष्ट ।

    जवाब देंहटाएं

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