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शनिवार, 13 जुलाई 2024

4185 ...वह महिला निर्भर नहीं किसी पुरुष पर

 सादर अभिवादन



बंधु, उस सावन सी
बात नहीं है
दिव्य रुचिर हैं
ये नन्हीं बूँदें,
हरियाली भी
आज नवल है
लेकिन बंधु
इस मौसम में,
उस मौसम सी
कोई बात नहीं है

चलें रचनाओं की ओर



सिखला दो ना जरा
'रिसायकल बिन' भरना भी कभी,
ताकी कर सकूँ दफ़न
तुम्हारी बीती रूमानी बातों को।

सिखला दो ना जरा
'एम्प्टी' करना भी कभी
'रिसायकल बिन', मिटा दे जो
तुम्हारे अर्थहीन वादों को।





इलाहाबाद में निरंजन चौराहे पर
एक ट्रैफिक कांस्टेबल हुआ करता था। 
उसकी खासियत यह थी कि
वो चौराहे पर एक साथ
सारी तरफ के ट्रैफिक को
रोक देता था
फिर थोड़ी देर बाद
एक साथ सबको छोड़ देता था।


मूलाधार


चार पंखुड़ी का कमल,रंग चक्र का लाल।
साधे मूलाधार को,ऊँचा होगा भाल।।
स्वाधिष्ठान
श्रोणि क्षेत्र के चक्र को,कहते स्वाधिष्ठान।
रंग संतरी सूर्य का, करता ऊर्जावान।।





सुबह उस समय अंधेरा ही था, जब वे टहलने गये; आकाश में बादल थे।छह बजे के समाचार सुने और फिर विविधभारती पर भजन। बचपन से घर में सुबह इसी तरह रेडियो के साथ होती थी। नाश्ते में किनोवा की उपमा बनायी, उसे पता ही नहीं था कि बथुआ के बीज को किनोवा कहते हैं, इससे होने वाले अनेक फ़ायदों के बारे में अवश्य सुना था।





वह महिला निर्भर नहीं
किसी पुरुष पर,
उसे नहीं चाहिए
किसी की मंज़ूरी,
नहीं चाहिए
किसी का सहारा,
किसी का समर्थन.




हवा नहीं है, जीव नहीं है
मानवता की नींव नहीं है
रूखा-सूखा, धूल सना सा
किसी काम का कुछ भी नहीं है
रूप-नूर सब झूठी बातें
ख़ुद का प्रकाश भी पास नहीं
सदियों से जिसे जग ने पूजा
उसको है इंकार मेरा




कमाओ कीर्ति
कमाओ कुमुदिनी कर कमल
करें कोटिजन करतल कलरव
करें किरीटाभिषेक !  


बस
कल फिर
सादर वंदन

5 टिप्‍पणियां:

  1. जी ! .. सुप्रभातम् सह नमन संग आभार आपका .. मेरी बतकही को मंच देने के लिए .. .. बस यूँ ही ...😊

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात ! विविधरंगी रचनाओं के गुलदस्ते से सजा अंक, आभार !

    जवाब देंहटाएं
  3. जी ! .. सुप्रभातम् सह नमन संग आभार आपका .. मेरी बतकही को मंच देने के लिए .. .. बस यूँ ही ...😊
    ( उपरोक्त प्रतिक्रिया हमने सुबह भी लिखी थी , पर मंच पर अभी तक दिखी नहीं। तो .. अभी दोबारा ...)🤔

    जवाब देंहटाएं
  4. आज की आपकी भूमिका से .. कुछ बतकही ...
    "उस मौसम सी कोई बात नहीं है।" -
    बंधु ! .. बात तो वैसे भी .. मौसम में नहीं, मन में होती है .. शायद ...
    मन हर्षित हो, तो जेठ-आषाढ़ की गर्मी में भी मन-मयूर "ता-थैया, ता-थैया, हो~~~" करने लग जाता है, वर्ना ...

    जवाब देंहटाएं
  5. दोनों एक साथ आ गई
    आभार आपका
    वंदन

    जवाब देंहटाएं

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