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बुधवार, 15 मई 2024

४१२७ ...मैं सुनती हूँ ध्वनियाँ जो कविता बोलती है

 सादर अभिवादन

पम्मी सखी के घर पर कोई आवश्यक कार्य है
एक बुधवार और आऊँगी मै
कुछ रचनाएं




वो बहती है आत्माओं में भी
और उभर आती है
सशरीर
मैं सुनती हूँ ध्वनियाँ
जो कविता  
बोलती है
अनगिनत भाषाओं में...




मैं बांध सका हूँ कब हिय को,
उस मोहपाश आकर्षण से।
अभिव्यक्त भाव हो जातें है,
शब्दों के प्रेम समर्पण से।।

कल्पित से मेरे जीवन मे,
प्रतिपल तेरी ही छाया है।
सर्वस्व समर्पित करके ही,
हिय ने तुझको अपनाया है।
यह मूढ़ विभोर हृदय व्याकुल,
जाने क्या रीति-अनीति को।
यह जग ज्ञानी समझाता है,
तज सदा कलंकित प्रीति को।
मैं हुआ समाहित हूँ तुझमें,
कैसे मुख मोडूँ दर्पण से।
मुझमें कोई रसधार नही,
अनुपम मादक शृंगार नही।




सरपट दौड़े जिंदगी,
कोई न हो परेशान,
है ईश्वर इस संसार में,
दे सबको यह #वरदान ।

फिसले न कोई राहों में,
चाहे गति कितनी असमान ,
अच्छे भले सब घर पहुंचे ,
बिना कोई नुकसान ।





कुछ न कहिये जनाब  स्वतंत्र हैं हम........
बोलने की आजादी है --तो
नफ़रत फैलाने की स्वतन्त्रता---- भी
लिखने पर कोई रोक टोक नही --तो
शब्दों की गरिमा भी समाप्ति की.....
देहरी पर सांसे गिनती दम तोड़ रही है....




जो लफ़्ज़ों में बयां ना हो
वो आंखों से समझ लेना
कि करती हूँ मोहब्बत कितना
तुमसे वो समझ लेना
मुझको दीवानगी की हद
तक मुहब्बत हो गई तुमसे
मत कुछ पूछना जो कहें
ख़ामोशियाँ वो समझ लेना ।


आज बस
कल भाई रवीन्द्र जी आएंगे
सादर वंदन

2 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय मेम ,
    मेरी लिखी रचना "सरपट दौड़े जिंदगी " को इस अंक में सम्मिलित करने हेतु बहुत धन्यवाद .
    इस अंक में संकलित सभी रचनाएँ बहुत ही सुन्दर है . सभी आदरणीय को बहुत बधाइयाँ .
    सादर .

    जवाब देंहटाएं

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