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सोमवार, 27 मई 2024

4139 ..‘उलूक’ नारद नहीं नारायण नहीं

 सादर अभिवादन

दो बच्चों में आपसी बात-चीत
खाक़ ठीक कह रही है ! पापा आप समझते क्यों नहीं कि 
जब तक लड़ाई करके उसे दो थप्पड़ न जड़ दूं 
मैं असली पापा कैसे बनूंगा ?“
कुछ रचनाएं



कुल्हाड़ी की मूंठ बनने से अच्छा
वीथिका बन
हवनकुंड में
आहुति कहलाऊँ




‘उलूक’ नारद नहीं
नारायण नहीं
भज ले कोई व्यापार
रोज एक ना
सही कभी तो कर
पर कर बकवास
दो चार |





ऐसा भी क्या जीना कि बरसात से डरें,
फेंकिए छाता, भीगिए पानी में.

बड़ा कमज़ोर था, जो हवा में उड़ता था,
डूबकर मर गया बित्ता-भर पानी में.





समेटता गया सब कुछ ज़िन्दगी की नाव में
समझ नहीं सका जरूरी है इतनी जगह का होना
की सहेज सकूँ लूटी हुई पतंगों के मांझे
गुलाब के सूखे फूल, भीगते लम्हे के किस्से
खुशियों की गुल्लक, यादों के मर्तबान




हर ओर है धुआँ और धुंध
साँसों पर पहरा है
हवाओं का

शोर इतना है कि
कान का बहरा जाना भी
है सम्भव


आज बस
कल सखी आएगी
सादर वंदन

3 टिप्‍पणियां:

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