सादर अभिवादन
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रविवार, 26 मई 2024
4138 .. धप से रोक लेती हूं जुबां से फिसलते शब्द
6 टिप्पणियां:
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दहलीज़ पर बैठे हैं शब्द असमंजस में, देहली पार करें या नहीं ? ये घर हमारा है भी या नहीं ! शब्दों को रोकने की खूब कही ! धन्यवाद सखी ! रचनाएँ पढना बाकी है अभी. शीर्षक और भूमिका से नज़र उलझ गई !
जवाब देंहटाएंसुन्दर अंक
जवाब देंहटाएंशुभ इतवार। गर्मी सच में बहुत है, अपना और अपनों का ख्याल रखें।
जवाब देंहटाएंरचनाओं का सुंदर संकलन। दिल से आभार।
सभी रचनाएं पढ़ लीं सखी ! और सुखद अनुभूति हुई। लिखने वालों का अनुभवी रचना संसार । धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंदेर से आने के लिए खेद है, रचनाएँ अभी पढ़ती हूँ, 'मन पाये विश्राम जहां' को स्थान देने हेतु आभार !
जवाब देंहटाएंआपको जन्मदिवस पर अशेष शुभकामनाएं
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