---

शनिवार, 25 मई 2024

4137 ज़मीर जागृत नहीं तो उसका बिकना तय है

 सादर अभिवादन

हाथों से कमाने वाले सिर्फ पेट भरते हैं
दिमाग से कमाने वाले तिजोरियां भरते है
यही सत्य है
कुछ रचनाएं

एक शब्द है ज़मीर सालों से इसके साथ अत्याचार हो रहा है
एक व्यंग्यालेख पढ़िए



आज के इस लंपट दौर में हम ज़मीर के बारे में सोच रहे हैं और उसकी असलियत या क्षमता की तलाश भी कर रहे हैं। उसकी असल धातु ख़ोज रहे हैं। ज़मीर का रिश्ता हमारी अस्मिता और परिपुष्ट अंतःकरण से ही सीधे जुड़ा है। ज़मीर की संबद्धता अंतरात्मा और विवेक क्षमता से होती है। यूँ ज़मीर अरबी भाषा का शब्द है लेकिन इसकी बेलि बहुत फैल गई है। अब तो वह यूं तो जगजाहिर है लेकिन उसके उपयोग में बुरी तरह से कोताही बरती जाती है। प्रायः कोई ज़मीर की या उसके जागृत करने की बात तक नहीं किया करता। कुछ लोग अपना-अपना ज़मीर बेचने के लिए बैचेन हैं। उन्हें हर हाल में सफलता मिलनी चाहिए।इसलिए ज़मीर बेचने का बाज़ार सजा हुआ है। ज़मीर जागृत नहीं तो उसका बिकना तय है और जब अच्छी खासी क़ीमत मिल रही हो तो कोई क्यों न बेचें। उसका चटनी अचार तो रखना नहीं।




बेतहाशा गर्मी की अपरान्ह बेला में घंटी की ध्वनि पर दरवाजा खोला, तो सामने बिनोद खड़ा था ! बहुत दिनों पर आया था ! अंदर बुला, बैठाया और पूछा, अरे बिनोद ! कहां थे इतने दिनों तक ? नजर नहीं आए !''

गांव गया था, भईया !''
गांव ! कहां पर ! इतनी गर्मी में ?
गिरिडीह, झारखंड ! ऊ का है कि.........वोट देने खातिर गया था !''
सिर्फ वोट देने ! इतनी दूर!पर पहले तो तुम .!''
नहीं ! इस बार सोचे कि वोट देना जरूरी है ! आपहिं तो बताए थे कि कइसे एक ठो वोट से भी केतना फर्क पड़ जाता है !




जेठ की धूप
सुबह- सवेरे ही
जला अलाव
छत पे जा बैठे हैं
सूरज दादा
सकुचाई -सी नदी
सिकुड़ा ताल
सूने हैं उपवन




अब अपनी मछली को साथ में रखता है
उसकी आँख पर अब भी उसकी नजर होती है

अर्जुन का निशाना आज भी नहीं चूकता है
बस जो बदल गया है वो
कि मछली भी मछली नहीं होती है





गांव में कतारबद्ध पेड़ों पर
छतरियों से फैले रहते थे सुर्ख फूल
गुलमोहर के
शहर के इस तंग मुहल्ले में
एक ही पेड़ था
जो ठीक मेरी खिड़की के नीचे खिलता था




नदियां झरने तालाब सूखे ,
पानी सारा तमाम है ,
बूंद बूंद पानी बना अब,
बोतल बंद सामान है ।




जब सब घर पहुंचे तो कर्नल साहब बड़ी बेचैनी से सब का इन्तजार कर रहे थे | उन्होंने तुरन्त जल्दी से मेज पर नाश्ता लगवाया और फिर कुछ  वैसे ही औपचारिक बात करने के बाद सलिल से बोले – “  आपने वर्तिका बेटी की पढाई पूरी हो जाने के बाद इसके बारे में क्या सोचा है | इसे सरकारी नौकरी में भेजेंगे या इसकी शादी करेंगे ?”

सलिल – “ अभी तो इन बांतों पर कुछ ख़ास सोचा नहीं है | वैसे शादी के लिए तो ये बिलकुल मना कर रही है | कहती है कि मैं कभी शादी नहीं करूंगी | मैं तो बस जीवन भर आपकी व गरीबों की सेवा करूंगी |”



आज बस
कल फिर मैं
सादर वंदन

4 टिप्‍पणियां:

आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें

आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! आप से निवेदन है आप टिप्पणियों द्वारा दैनिक प्रस्तुति पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।

टिप्पणीकारों से निवेदन

1. आज के प्रस्तुत अंक में पांचों रचनाएं आप को कैसी लगी? संबंधित ब्लॉगों पर टिप्पणी देकर भी रचनाकारों का मनोबल बढ़ाएं।
2. टिप्पणियां केवल प्रस्तुति पर या लिंक की गयी रचनाओं पर ही दें। सभ्य भाषा का प्रयोग करें . किसी की भावनाओं को आहत करने वाली भाषा का प्रयोग न करें।
३. प्रस्तुति पर अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .
4. लिंक की गयी रचनाओं के विचार, रचनाकार के व्यक्तिगत विचार है, ये आवश्यक नहीं कि चर्चाकार, प्रबंधक या संचालक भी इस से सहमत हो।
प्रस्तुति पर आपकी अनुमोल समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक आभार।